Manas Ganit

 

What is Vedic Maths (वैदिक गणित क्या है)

आज वर्तमान समय में प्रत्येक वैदिक गणित प्रेमियों तथा जिज्ञासुओं के मन में यह प्रश्न आता है कि वैदिक गणित क्या है? (What is Vedic Maths?) इस प्रश्न का उत्तर सामान्य रुप में हम यह दे सकते हैं कि वैदिक गणित आज के गणित को हल करने के लिए कई वैकल्पिक विधियों का समावेश आधुनिक गणित के साथ करता है तथा यह परिस्थितियों के अनुसार वर्तमान गणित को हल करने के अनेक वैकल्पिक विधियों को आधुनिक गणित के साथ जोड़ता है जो आज के गणित की नीरसता, उबाऊपन तथा कठिन विधियों को सरल तथा रोचक बनाता है उदाहरण के लिए आधुनिक गणित में गुणन करने के एक ही प्रचलित विधि का वर्णन है जिसे "गोमूत्रिका विधि" के नाम से जाना जाता है जबकि वैदिक गणित में उसी गुणन प्रक्रिया को करने के लिए विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार 20 से 25 विधियों का वर्णन है। उसी प्रकार भाग करने की छः विधियों का वर्णन है। ये सभी विधियाँ गुणन तथा विभाजन के उत्तर मौखिक रूप से देने में सक्षम है। अतः वैदिक गणित को समावेशी गणित भी कह सकते हैं।
कुछ वैदिक गणित प्रेमी वैदिक गणित को मानते तो हैं परन्तु किसी किसी अज्ञात कारणों से यह प्रश्न उठाते हैं कि वैदिक गणित वेदों में होने का प्रमाण क्या है? ब्रम्हांड के सभी लिखित अलिखित ज्ञान विज्ञान का प्राचीनतम श्रोत वेद के बहुआयामी ऋचाएं ही है परन्तु कई बार हम उसके गणितीय आशय को समझने में असफल हो जाते हैं
एक श्लोक प्राचीन काल से प्रचलित है।


यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्‌।।
                                   —
याजुष ज्योतिषम


अर्थात्‌ जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि सबसे ऊपर रहती है, उसी प्रकार वेदांग और शास्त्रों में गणित सर्वोच्च स्थान पर स्थित है।
उपरोक्त श्लोक गणित की महानता तथा वेद वेदाङ्ग, उपनिषद् पुराण में सर्वव्यापकता को प्रदर्शित करता है।
यूं तो संपूर्ण चर अचर ब्रह्मांड गणित से ही प्रेरित होता है अतः गणित शुद्ध रुप से वैदिक के सिवाय और कुछ हो भी नहीं सकता।
गोवर्धन पीठ, पूरी के 143 वें शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज का जन्म 14 मार्च 1884 (चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में तृतीय तिथि विक्रम संवत १८२६) को हुआ था। बचपन में वेंकट रमण नाम से प्रसिद्ध आप अत्यंत विलक्षण प्रतिभाशाली छात्र जो कि हमेशा प्रत्येक कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करते रहे। आप संस्कृत भाषा में भी इतनी गूढ़ पकड़ रखते थे कि मद्रास संस्कृत संगठन ने जुलाई1899 ई. में आपको "सरस्वती" सम्मान से सम्मानित किया तब आप मात्र 16 वर्ष के थे। इनके द्वारा रचित वैदिक गणित उनके सतत साधना तथा गणितीय ज्ञान के चरम पर पहुंचने का प्रतिफल है, आपने इस गणितीय पद्धति को "वैदिक गणित" का नाम दिया। वैदिक गणित कि सुन्दरता उसके प्रयोग में है जो कम समय में प्रश्नों के सीधे उत्तर तक पहुंचा देता है जो पारंपरिक गणितशास्त्र के मुकाबले काफी सरल तथा रोचक है। वैदिक गणित हमारे दिमाग के दोनों पक्ष बांया तथा दांया पक्ष (तार्किकता तथा सृजनात्मकता क्रमशः) का समान रूप से विकास करता है जो हमें समाज में बहुमुखी प्रतिभावान बनाता है। वैदिक गणित हमारे लिए असीमित गणितीय ज्ञान को आनंददायक तथा सृजनात्मक बना देता है।  इनके सोलह सूत्र तथा तेरह उपसूत्र अकाट्य, सार्वभौमिक तथा सारगर्भित है। इन सूत्रों का प्रयोग अंकगणित (Arithmetic), बीजगणित (Algebra) , रेखा गणित (Geometry) , अवकलन (Calculus) , संगणक(Computer) इत्यादि के अलावा अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम (Space Science Program)  में भी इसका अनुप्रयोग होता है इस प्रकार के बहुउपयोगी वैदिक गणित को यदि वैदिक कहने में संकोच हो तो ये तो स्पष्ट है कि इसमें कुछ भी अवैदिक नह

Education Implications of Vedic Maths ( वैदिक गणित की शिक्षा में उलझनें ) 


भारत की विविधताजहाँ इसकी विशेषता है वहीं कुछ उलझनें भी हैं। भारत में वैदिक गणित की शिक्षा में उलझनें भी इसी विविधता से सम्बंधित है।
(1) स्पष्ट दृष्टिकोण का अभाव
विविध विचार, विविध भाषा, विविध मत, विविध पंथ तथा विविध भौगोलिक स्थिति से युक्त भारत में वैदिक गणित विषय को लेकर अनेक भ्रांतियां व्याप्त है। इसके पिछे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप अनेक कारण विद्यमान है परन्तु इसका समाधान बस यही है कि सामाजिक चेतना जागृत की जाए।

(2) शैक्षिक संस्थानों की उदासीनता :
भारत तथा वैश्विक पटल पर सरकारी तथा गैरसरकारी शैक्षिक संगठनों जैसे सी. बी, एस. सी., आई. सी. एस. सी., राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय, यू. जी. सी. इत्यादि में वैदिक गणित को लेकर उदासीनता स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है इसके लिए भी अंदरूनी तथा बाह्य कारण जिम्मेवार है।

(3) भाषा ज्ञान का अभाव :
भारत एक बहुभाषी प्रदेश है जहाँ देशी, विदेशी तथा क्षेत्रीय लगभग हजारों भाषाएं बोली जाती है। वैदिक गणित विषय की प्रारंभिक जानकारी तो अंग्रेजी में भी उपलब्ध है परन्तु इसके विशिष्ट ज्ञान की जानकारी के श्रोत ज्यादातर हिन्दी अथवा संस्कृत में ही उपलब्ध है। हिन्दी और संस्कृत का राजनीतिक उदासीनता के कारण विज्ञान की भाषा न रह कर किस्से कहानियों तथा कर्मकांड की भाषा बन कर रह गई है।

(4) आधुनिक गणित से प्रतियोगिता :
वैदिक गणित की प्रमुख उलझनों में एक उलझन यह है कि जब भी इसकी तथा इस के सूत्रों की बात होती है लोग इसे आधुनिक गणित के साथ तुलना करना शुरू कर देते हैं। अब वर्तमान में समस्या यह है कि आधुनिक गणित जोकि अस्पष्टता तथा विकल्प के अभाव के कारण विषय का बाजारीकरण कर दिया है तथा पूरे समाज में गणित का हऊआ (आतंक) खड़ा कर दिया है वहीं दूसरी तरफ वैदिक गणित स्पष्ट एवं बहुविकल्पीय होने के कारण निरंतर समाज में अपनी पहचान स्थापित कर रहा है।

(5) शिक्षक शिक्षा का अभाव :
वैदिक गणित की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वैदिक गणित के शिक्षकों में विषय के उपयुक्त ज्ञान का अभाव तथा विषय को लेकर उत्सुकता नहीं उत्पन्न हो पा रही है कारण कई हो सकते हैं परन्तु सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि वैदिक गणित को विषयानुरुप प्रतिष्ठा नहीं मिल पाई है इसके कारण विषय पर कार्य करने की रुचि में अभी कमी है।

(6) वैदिक गणित विषय तथा रोजगार में समन्वय का अभाव :
किसी भी विषय को आगे बढ़ाने का मूल कारण यह है कि विषय को रोजगार से जोड़ दिया जाए। सरकारी तथा गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा वैदिक गणित तथा इससे संबंधित क्रिया-कलापों को यदि रोजगार से जोड़ दिया जाय तो विषय के आगे बढ़ने में उत्प्रेरक का कार्य करेगा।

(7) आर्थिक सहायता का अभाव :
किसी भी विषय को आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक आवश्यकता बहुत ही आवश्यक है। देश-प्रदेश में कार्य कर रहे कुछ वैदिक गणित प्रेमी कई बार आर्थिक कमी के कारण विषय के विकास में उतना योगदान नहीं दे पाते जीतनी उनकी क्षमता है। आर्थिक अभाव के कारण कई वैदिक गणित प्रेमी के प्रतिभा का पूर्ण उपयोग नही हो पाता है जोकि वैदिक गणित के विकास के लिए बाधक है।

(8) राजनीतिक उपेक्षा :
विविधताओं से भरे देश भारत में विभिन्न भाषाओं, क्षेत्रों, समुदायों, धर्मों, संप्रदायों, विचारों इत्यादि पर आधारित सैकड़ों राजनीतिक दलों के होते हुए भी वैदिक गणित के साथ सौतेला व्यवहार होता रहा जिसके कारण यह विषय ही अल्पसंख्यक वर्ग में शामिल हो गया, राजनीतिक स्वार्थ, तुष्टिकरण तथा वोट बैंक के होड़ में वैदिक गणित को अनदेखा कर दिया गया। कुछ प्रदेशों में कुछ एक राजनीतिक दलों द्वारा वैदिक गणित को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया गया परन्तु सामाजिक सहयोग, शिक्षक शिक्षा का अभाव, आर्थिक सहायता का अभाव, उद्यम की कमी, आधुनिक दृष्टिकोण का अभाव इत्यादि अनेक कारणों की फलस्वरूप अभिष्ट उपलब्धि प्राप्त नहीं हो स्की।

समाधान :
ध्येय वाक्य "देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा" के अंतर्गत शिक्षा बचाव आंदोलन के प्रेरणास्रोत आदरणीय दीनानाथ बत्रा जी, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के वर्तमान राष्ट्रीय सचिव माननीय अतुल भाई कोठारी जी, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के वैदिक गणित विषय के राष्ट्रीय संयोजक डॉ कैलाश विश्वकर्मा जी (उत्तर प्रदेश) , शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के दिल्ली प्रांत सह-संयोजक अनिल कुमार ठाकुर(दिल्ली) , श्री राम चौथाई वाले, श्री राकेश भाटिया (हरियाणा), श्री सीतारामा राव (तेलंगाना), श्री बच्चु भाई रावल (गुजरात), प्रो. दिलिप ग्वेटांडिकर (नासिक), पी. देवराज (केरला), माया जी (नागपुर) इत्यादि अनेक विभुतियो के अथक प्रयास के फलस्वरूप वैदिक गणित तथा संबंधित विषयों पर विद्यालयों , महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में लगभग हजारों कार्यशालाओं का आयोजन कर वैदिक गणित को पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया जा रहा है। 

     

What are Sutras (सूत्र क्या है) 

वैदिक गणित के 16 सूत्र ,13 उपसूत्र  तथा विशिष्ट संकल्पनायें (16 Sutras and 13 UpSutras of vedic mathematics)

।। सूत्र (Sútras) ।।

सूत्र क्या है? (What are the Sutras ?)  The lexical meaning of the word Sútras is "thred", "string", "a key" or "a formula". Here of course, the last two meanings are applicable. The tradition of expressing all types of knowledge in Sútras form is as old as vedas. Pãnini codified Sanskrit grammar in the form of nearly 4000 Sútras. Veda Vyãs formulated Vedãnta philosophy in BrahmaSútra. For example ;
अथ योगानुशासनम् (atha yoganusasanam)
योगश्चित्तवृतिनिरोधः (yogascittavrutti nirodhah)

​​​​​(1) स्वल्पाक्षरम् (swalpãkšaram) - means having a minimum numbers of words.

(2) असंदिग्धम् (asandigdham) - means undoubted, unambiguous
(3) 
सारवद् (sãravad) - means essence, summarise.
(4)
विश्वतोमुखम् (vishvatomukham) - means applicable to all cases or examples
(5) 
अस्तोभम् (astobham) - means without stoppage, free from unnecessary explanations.
(6) 
अनवद्यम् (anavadyam) - means irreproachable, faultless, unobjectionable

 

।। वैदिक गणित के सूत्र।।

जगद्गुरु स्वामी श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित...


(1)
एकाधिकेन पूर्वेण - पहले से एक अधिक के द्वारा।
(By one more than the previous one.)

(2) निखिलं नवतश्चरमं दशत: -  सभी नौ मे से परन्तु अंतिम दस में से। (All from nine and last from ten.)

(3) ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् -  सीधे (खडे़) और तिरछे दोनों प्रकार से। (Vertically and crosswise).

(4) परावर्त्य योजयेत् -  पक्षान्तरण कर उपयोग करें। (Transpose and apply.)

(5) शून्यं साम्यसमुच्चये -  समुच्चय समान होने पर शून्य होता है (When the 'Samuchaya's are the same, that' Samuchaya' is zero.)

(6) अनुरूप्ये शून्यमन्यत् अनुरूपता होने पर दूसरा शून्य होता है। (If one is in ratio, the other one is zero.)

(7) संकलनव्यकलनाभ्याम् - जोड़कर और घटाकर (By addition and subtraction.)

(8) पूरणापूरणाभ्याम् -  अपूर्ण को पूर्ण कर के। (By completing.)

(9) चलनकलनाभ्याम् - चलन-कलन के द्वारा। (By calculus)

(10) यावदूनम् - जितना कम है अर्थात विचलन (The deficiency.)

(11) व्यष्टिसमष्टिः - एक को पूर्ण और पूर्ण को एक मानते हुए। (Whole as a one and one as a whole)

(12) शेषाण्यङ्केन चरमेण -  अंतिम अंक से अवशेष को। ((Remainder by the last digit.)

(13) सोपान्त्यद्वयमन्त्यम् -  अंतिम और उपान्तिम का दुगुना। (Ultimate and twice the penultimate).

(14) एकन्यूनेन पूर्वेण -  पहले से एक कम के द्वारा। (By one less than the previous one.)

(15) गुणितसमुच्चयः -  गुणितो का समुच्चय। (The whole product.)

(16) गुणकसमुच्चयः -  गुणको का समुच्चय। (Set of multipliers.)

।। उपसूत्र।।

(1) आनुरूप्येण -  अनुरूपता के द्वारा। (Proportionality.)

(2) शिष्यते शेषसंज्ञः -  बचे हुए को शेष कहते हैं। (Which remains, is called reminders)

(3) अद्यमाद्येनान्त्यमन्त्येन -  पहले को पहले सेअंतिम को अंतिम से। (First by the first and last by the last.)

(4) केवलैः सप्तकं गुण्यात् -  '', '', '', से 7 से गुणा करें। (Multiply 'ka' (1), 'va' (4), 'la' (3) by 7)  formula for 1/7.

(5) वेष्टनम् - विभाजनीयता परीक्षण की एक विशिष्ट क्रिया का नाम। (The occupation.)

(6) यावदूनं तावदूनं -  जितना कम उतना और कम। (What ever deficiency further lessen that much).

(7) यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत् - जितना कम उतना और कम करके वर्ग की योजना भी करें। (Lessen by the deficiency and added it's square.)

(8) अन्त्योर्दशकेअपि -  अंतिम अंको का योग दस। (Sum of last digits is ten.)

(9) अन्त्ययोरेव - केवल अंतिम द्वारा। (Only by the last)

(10) समुच्चयगुणितः सर्व गुणन। (Product of whole.)

(11) लोपनस्थापनाभ्याम् -  विलोपन एवं स्थापना द्वारा। (By elimination and retention.)

(12) विलोकनम् - अवलोकन द्वारा। (By observing.)

(13) गुणितसमुच्चयः समुच्चयगुणितः - गुणांकों के समूहों का गुणनफल और गुणनफल के गुणांकों का योग समान होगा। (Product of the whole is equal to whole of the product.)

अन्य विशिष्ट संकल्पनायें :-

(1) द्वन्द्वयोग -  द्वयात्मक पद। (Duplex.)

(2) शुद्ध शो़धित राशि। (Purity)

(3) ध्वजांक -  घात के स्थान का अंक। (Flag digit.)

वैदिक गणित के 16 सूत्र उदाहरण सहित (16 Sutras of Vedic Ganit with Examples)


सूत्र - 1


।। प्रथम सूत्र - एकाधिकेन पूर्वेण।।


गोवर्धन पीठ, पूरी के 143 वें शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों में प्रथम सूत्र "एकाधिकेन पूर्वेण" है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ होता है — "पहले से एक अधिक के द्वारा " ( One more than the existing one) जिसका प्रयोग गणित के विभिन्न संक्रियाओं में किया जाता है। सर्वप्रथम भारतीय संख्या पद्धति इसी क्रम में बढ़ती है, 1 से एक अधिक करने पर 2, 2 से एक अधिक करने पर 3 इत्यादि। इस सूत्र इस प्रकार ज्ञान देकर छात्र-छात्राओं को जोड़ना भी सिखाया जा सकता है, इस सूत्र के प्रयोग द्वारा  विशेष परिस्थितियों में गुणा  किया जा सकता है जब किसी दो संख्याओं के इकाई-अंकों का योग  दस हो तथा दहाई या शेष अंक  समान  हो।
जैसे - 25 × 25, 38 × 32, 46 × 44 

 

 

 

उपरोक्त उदाहरण (example) में इकाई अंकों का योग दस है -
5 + 5 = 10
8 + 2 = 10
6 + 4 = 10
इत्यादि
तथा दहाई या शेष अंक समान है -
2 - 2, 3 - 3, 4 - 4

बीजगणितीय विश्लेषण


उदाहरण :- (2)
              38 × 32
          = 3 × ( 3 + 1) / 8 × 2
          = 3 × 4 / 16
          = 12 16 (Ans)

उदाहरण :- (3)
             46 × 44
          = 4 × ( 4 + 1) / 6 × 4
          = 4 × 5 / 24
          = 20 24 (Ans)

अतः हम कह सकते हैं कि एकाधिकेन पूर्वेण सूत्र के माध्यम से हम संबंधित गणितीय संक्रिया को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

 

सूत्र - 2


।। द्वितीय सूत्र - निखिलं नवतश्मचरमं दशतः ।।


गोवर्धन पीठ, पूरी के 143 वें शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों में द्वितीय सूत्र "निखिलं नवतश्मचरमं दशतः " है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ होता है — "सभी नौ में से परन्तु अन्तिम दस में से " ( All from nine & last from ten) जिसका प्रयोग गणित के विभिन्न संक्रियाओं में किया जाता है। सर्वप्रथम भारतीय संख्या पद्धति में इस सूत्र का प्रयोग पुरक संख्या ( योग 9) तथा समपूरक संख्या ( योग 10) प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
पूरक संख्या ( योग 9) —
0
की पुरक संख्या 9
1
की पुरक  संख्या 8
2
की पुरक संख्या 7
3
की पुरक संख्या 6
4
की पुरक संख्या 5
इत्यादि
समपूरक संख्या ( योग 10) —
1
का समपूरक संख्या 9
2
का समपूरक संख्या 8
3
का समपूरक संख्या 7
4
का  समपूरक संख्या 6
5
का समपूरक संख्या
इस सूत्र के प्रयोग द्वारा  विशेष परिस्थितियों में गुणा  किया जा सकता है जब किसी दो संख्याओं में एक संख्या तो कुछ भी हो परन्तु दुसरी संख्या सिर्फ 9 की आवृत्ति में हो जैसे
2148 × 99994378 × 9999, 456 × 99999

उदाहरण — (2)

            4378 × 9999
         =  4377 / 5622
         =  43775622

उदाहरण — (3)
            456 × 99999
         = 455 / 99 / 544
         = 45599544

उपरोक्त उदाहरण में निखिलं नवतश्मचरमं दशतः के अलावा वैदिक गणित का एक अतिरिक्त सूत्र एकन्यूनेन पूर्वेण जिसका अर्थ "पहले से एक कम के द्वारा " ( One less than the existing one) होता है, का प्रयोग हुआ है।
अतः हम कह सकते हैं कि निखिलं नवतश्मचरमं दशतः सूत्र तथा एकन्यूनेन पूर्वेण सूत्र के माध्यम से हम संबंधित गणितीय संक्रिया को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।


सूत्र - 3


।। तृतीय सूत्र - ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम्।।


गोवर्धन पीठ, पूरी के 143 वें शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों में तृतीय सूत्र "ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् " है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ होता है — "सीधे ( खड़े) और तिरछे दोनों प्रकार से " ( Vertically & Crosswise )
 
ऊर्ध्व = सीधा ( खड़ा) = | ( उपर-नीचे)
 
तिर्यक् = तिरछा = \/
जिसका प्रयोग गणित के विभिन्न संक्रियाओं में किया जाता है।
इस सूत्र के प्रयोग द्वारा किसी भी परिस्थितियों में दो संख्याओं को गुणा  किया जा सकता है जैसे
23 × 54, 123 × 211, (2p + 3) ( 3p + 5)

उदाहरण — (1)
             25 × 54
   
हल -
                 2     3
             ×  5    4
         - - - - - - - - - - - - -
          12 /  4 / 2
(1)
प्रथम स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                       3
                   ×  4
                  - - - - - - -
                     12
(2)
प्रथम तथा द्वितीय स्तंभ का तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणन फल का योग
                 2     3
             ×  5    4
       - - - - - - - - - - - - - - -
         ( 2 × 4) + ( 3 × 5)
           = 8 + 15
          = 23
   23 +
अतिरिक्त अंक
  23 + 1 = 24
(3)
द्वितीय स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                       2
                   ×  5
               - - - - - - - - -
                    10
  10 +
अतिरिक्त अंक
  10 + 2 = 12
अंतिम बायें खण्ड में 12 पूरा का पूरा लिख दें।
  
अतः उत्तर = 1242

उदाहरण — (2)
             123 × 211
    
हल
                     1         2        3 
              ×     2         1        1
         - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
               2  /  5 /  9 /  5 / 3
(1)
प्रथम स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                     3
                ×   1
             - - - - - - - - - -
                    3
(2)
प्रथम तथा द्वितीय स्तंभ का तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणन फल का योग
                 2     3
             ×  1    1
       - - - - - - - - - - - - - - -
         ( 2 × 1 ) + ( 3 × 1 )
             =  2 + 3  =  5
(3)
प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्तंभों में बाहर-बाहर के स्तंभों का तिर्यक् गुणा तथा मध्य स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा कर, प्राप्त गुणनफलों का योग।
                    1         2        3 
              ×     2         1        1
         - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
       ( 1 × 1) + ( 2 × 3) + ( 2 × 1)
             = 1 + 6 + 2 = 9
(4)
दायें से द्वितीय तथा तृतीय स्तंभों तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणनफल का योग प्राप्त करें।
                 1    2
             ×  2    1
       - - - - - - - - - - - - - - -
         ( 1 × 1 ) + ( 2 × 2 )
             =  1 + 4  =  5
(5)
दायें से तृतीय स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                      1
                ×   2
             - - - - - - - - - -
                    2
  
अतः उत्तर = 2 5 9 5 3

अतः हम कह सकते हैं कि ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सूत्र के माध्यम से हम संबंधित अंकगणितीय तथा बीजगणितीय संक्रिया को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

 

सूत्र - 4


।। चतुर्थ सूत्र - परावर्त्य योजयेत्।।


गोवर्धन पीठ, पूरी के 143 वें शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों में चतुर्थ सूत्र " परावर्त्य योजयेत् " है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ होता है — " पक्षान्तरण कर उपयोग करें " ( Transpose & Apply ) इस सूत्र के प्रयोग द्वारा भाग संक्रिया करेंगे। भाजक आधार से छोटा है या बड़ा है इस बात का विधि पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। सूत्र का अर्थ है " चिन्ह परावर्तित कीजिए और संक्रिया आरंभ कीजिए "।

उदाहरण (2)
           X + 25 = 75
       
या, X + 25 - 25 = 75 - 25
       
या, X = 50
विश्लेषण
(1)
समीकरण के सामान्य गुण को परावर्त्य योजयेत् सूत्र द्वारा स्पष्ट करने के लिए चिन्ह + को करके या पक्षान्तर करके संक्रिया किया जाता है
(2)
यहां + 25 को —25 बना कर समीकरण के दोनों तरफ योग किया गया
(3)
अतः समीकरण को हल करने पर X = 50 प्राप्त हुआ।


अतः हम कह सकते हैं कि परावर्त्य योजयेत् सूत्र के माध्यम से हम संबंधित अंकगणितीय भाजन क्रिया तथा बीजगणितीय समीकरणों  को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

 

सूत्र - 5


।। पंचम-सूत्र - शून्यं साम्यमुच्चये ।।


गोवर्धन पीठ, पूरी के 143 वें शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों में तृतीय सूत्र "शून्यं साम्यमुच्चये " है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ होता है — "समुच्चय समान होने पर शून्य होता है। " (When the Samuchaya are the same, that Samuchaya is Zero. ) जिस सूत्र के प्रयोग द्वारा विषेश प्रकार के एक घातीय समीकरणों का हल मात्र अवलोकन से ही एक पंक्ति में लिखा जा सकता है।

उदाहरण - (1)
समीकरण ( X + 3) + ( 2X + 5) + 4 = 2 ( X + 6) को सरल कीजिए।
हल -
दोनों तरफ X रहित परस्पर समान है = 12
अतः X = 0 ( Ans)
उपरोक्त एकघाती समीकरण के दोनों पक्षों में चर राशि रहित ( स्वतंत्र पद) समान होते हैं तो चर राशि का मान शून्य होता है।

उदाहरण - (2)
समीकरण  1 / ( 2x - 1)  + 1/ ( 3x - 1) = 0 को हल कीजिए।
हल
दोनों भिन्नों का अंश परस्पर समान = 1 है।
अतः
हरों का योग शून्य होगा।
  ( 2x - 1)  + ( 3x - 1) = 0
या, 5x - 2 = 0
या, 5x = 2
अतः x = 2 / 5 ( Ans)

 

 


विश्लेषण
उपरोक्त प्रश्न में अंश समान है अर्थात साम्य्
अतः हरों का योग शून्य होगा अर्थात शून्य साम्यमुच्चये

उदाहरण - (3)
(x - 3) /(x-4) + (x-4) /(x-5) = (x-2) /(x-3) + (x-5)/(x-6)
बायां पक्ष के अंशों का योग = दायाँ पक्ष के अंशों का योग
      ( x - 3) + ( x - 4) = ( x - 2) + ( x - 5)
                       2x - 7 = 2x - 7
हरों का समुच्चय शून्य होगा
( x - 4 ) + ( x - 5 ) = ( x - 3 ) + ( x - 6 ) = 0
                   2x - 9 = 2x - 9 = 0
                     
या 2x - 9 = 0
              
अतः x = 9 / 2
विश्लेषण
उपरोक्त प्रश्न में बायां पक्ष के अंशों का योग = दायाँ पक्ष के अंशों का योग अतः हरों का समुच्चय शून्य होगा अर्थात शून्यं साम्यमुच्चये।
अतः हम कह सकते हैं कि परावर्त्य योजयेत् सूत्र के माध्यम से हम संबंधित  बीजगणितीय समीकरणों  को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

 

सूत्र - 6


अनुरूप्ये शून्यमन्यत्


अनुरुपता होने पर दूसरा शून्य होता है।
If one is in the ratio, the other one is zero.
उदाहरण :-
3x + 5y = 5
4x + 1 0y = 10
उपरोक्त समीकरण में y के गुणको का अनुपात वही है जो निरपेक्ष पदों का।
अतः x = 0
अभ्यास :-
x
तथा y के लिए हल करें :-
(1)  x + 3y = 7,   2x + 6y = 14
(2) 5x + 9y = 11 ,  x + 27y = 33

सूत्र - 7

संकलनव्यवकलनाभ्याम्


जोड़कर और घटाकर।
By addition and subtraction.
एक विशिष्ट प्रकार के दो चर वाले रैखिक समीकरण जिनमें x तथा y की गुणक संख्यात्मक दृष्टि से परस्पर अदला-बदली होती हैं। इन्हें हल करने के लिए सूत्र संकलनव्यवकलनाभ्याम् का प्रयोग अत्यंत सुगम रहता है, जिसके द्वारा (x + y) तथा (x - y) के मान ज्ञात हो जाते हैं। इन दोनों समीकरणों में पुनः इस सूत्र का प्रयोग कर x तथा y का मान ज्ञात कर लिया जाता है।
उदाहरण :-
84x + 41y = 166  - - - -- (1)
41x + 84y = 209  - - - - - (2)
समीकरण (1) तथा (2) को संकलन (जोड़ने) पर
125x + 125y = 375
  x + y = 3 - - - - - - - - - (3)
समीकरण (1) में से (2) को व्यवकलन (घटने ) पर
43x - 43y = - 43
x - y = - 1   - - - - - - - - -(4)
समीकरण (3) तथा (4) को जोड़ने पर
             2x = 2
               x = 1
समीकरण (3) में से (4) को घटने पर
            2y = 4
              y = 2
अतः उत्तर     x = 1, y = 2

अभ्यास :-
x
तथा y के लिए हल करें :-
(1) 31x + 23y = 39, 23x + 31y = 15
(2) 148x + 231y = 527, 231x + 148y = 610

सूत्र - 8

पूरणापूरणाभ्याम्


अपूर्ण को पूर्ण करके।
By completing.
द्विघात समीकरण
     aX² + bX + c = 0
       X = {- b ± (b² - 4ac)½} / 2a
  
इसी सूत्र पर आधारित विधि द्वारा निकाला गया है
  aX² + bX + c = 0
  X² + (b/a)X + c/a = 0
  X² + (b/a)X  = - c/a
बाईं ओर वर्ग को पूर्ण करने पर
  X² + (b/a)X + (b² / 4a²) = - c/a + (b² / 4a²)
  (X + b/2a)² = (b² - 4ac) / 4a²
   X + b/2a =  ± {(b² - 4ac) / 4a²}½
   X = {- b ± (b² - 4ac)½} / 2a

अभ्यास :-
के लिए हल करें :-
(1) 5x² - 7x - 6 = 0
(2) x + 6/x = 5
(3) x⁴ - 5x² + 6 = 0

 

सूत्र - 9


चलनकलनाभ्याम्


चलन-कलन के द्वारा।
By calculus
वैदिक गणित में चलन कलन का प्रयोग प्रारंभिक अवस्था में ही शुरू हो जाता है। गुणनखण्ड, द्विघात समीकरण के हल आदि सूत्र 'चलन कलनाभ्याम्' से सरलतापूर्वक हल किए जाते हैं।
द्विघात समीकरण का हल
द्विघात बहुपद की प्रथम अवकल गुणन संख्या के वर्ग को विविक्त करके समान रखने पर प्राप्त होता है।
उदाहरण :-
    aX² + bX + c = 0
    (2aX + b)² = b² - 4ac
     2aX + b = ± (b² - 4ac)½

अभ्यास :-
x
के लिए हल करें :-
(1) 2x² + 3x - 4 = 0
(2) ( x² - 5x)² - 7(x² - 5x) + 6 = 0
(3) 3a²x² + 8abx +4b² = 0

 

सूत्र -10


यावदूनम्


जितना कम है अर्थात विचलन
The deficiency
संख्या के आधार से जितनी भी न्यूनता हो उसमें उतनी न्यूनता और करें और उसी न्यूनता का वर्ग भी रखें।
यह 'निखिलम् ' सूत्र से स्वभाविक रूप से निकलनेवाला सहज परिणाम है।
उदाहरण :-
      (98)² =  ( 98 - 2) / 2²     
आधार = 100
               =    96 / 04        
न्यूनता = 100 - 98 = 2
               =    9604  (
उत्तर)

अभ्यास :-
(1) (989)²
(2) (9993
(3) (999988

 

सूत्र - 11


व्यष्टिसमष्टिः


एक को पूर्ण और पूर्ण को एक मानते हुए
Whole as a one and one as a whole.
वैदिक गणित में एक विशिष्ट प्रकार के चतुर्घात समीकरण, जिनमें बाम पक्ष दो द्विपदों के चतुर्घातों का योग रहता है तथा दाहिने पक्ष में उनका मान एक गणितीय संख्या रहती है, को इस सूत्र से हल किया जा सकता है। चतुर्घातों को सरल द्विघात में तोड़ने के लिए दोनों द्विपदों के मध्य मान का उपयोग करते हैं।
उदाहरण :-
      ( X + 6)⁴ + ( X + 4)⁴ = 706
 
यहां ( X + 6) तथा ( X + 4) के मध्य मान
    {( X + 6) + ( X + 4)} /2
     = X + 5
माना कि X + 5 = p
     ( p + 1)⁴ + ( p - 1)⁴ = 706
    2p⁴ + 12p² + 2 = 706
    2p⁴ + 12p² - 704 = 0
     p⁴ + 6p² - 352 = 0
    p² = {- 6 ± ( 36 + 4× 1 × 352)½} / 2
        = {- 6 ± (1444)½} /2
        = {- 6 ± 38} / 2
        = - 22, 16
   p = ± (-22)½, ± 4
  X = - 5, ±(-22)½, - 1, - 9 (
उत्तर)

अभ्यास :-
के लिए हल करें :-
(1) ( x + 5)⁴ + ( x + 3)⁴ = 16
(2) ( x + 16 )⁴ + ( x + 14)⁴ = 29

सूत्र - 12


शेषाण्यङ्केन चरमेण


अंतिम अंक से अवशेष को।
Remainder by the last digits.
साधारण भिन्न को उनके तुल्य दशमलव में बदलते समय क्रमागत पैड़ियों अवशेष तथा भजनफल के संबंध में यह सिद्धांत है कि यदि हम किसी भी अवशेष को लें और उससे चरमांक (अंतिम पद) को गुणा करें तब गुणनफल का अंतिम अंक उस पैड़ी का भजनफल अंक होता है।
यहाँ प्रयुक्त होनेवाला सूत्र है 'शेषाण्यङ्केन चरमेण' 1/13 के प्रकरण में 10, 9, 12, 3, 4, तथा 1 क्रमागत अवशेष हैं। 13 के चरमांक 3 से लगातार गुणा करने से हमें 30, 27, 36, 9, 12, तथा 3 गुणनफल मिलते हैं।
अतः भजनफल अंक क्रमशः 0, 7, 6, 9, 2 तथा 3
अतः 1/13 = 0. '076923'

 

सूत्र - 13


सोपान्त्यद्वयमन्त्यम्


अंतिम और उपान्तिम का दुगुना।
Ultimate and twice the penultimate.
एक विशिष्ट प्रकार के सरल बीजगणितीय समीकरण के सरलीकरण के प्रकरण में जिसमें हर समांतर श्रेणी में होते हैं, इसका अनुप्रयोग होगा।
w, x, y
तथा z समांतर श्रेणी में है तो समीकरण
1/wx + 1/wy = 1/wz + 1/xy
का हल इस सूत्र से 2y + z = 0
उदाहरण :-
1 / (x + 1) (x + 2) + 1/(x + 1) (x + 3) = 1/(x + 1)(x + 4) + 1 / (x + 2) (x + 3)
का हल सूत्र सोपान्त्यद्वयमन्त्यम् से
   (x + 4) + 2 (x + 3) = 0
    3x + 10 = 0
     x = - 10 / 3

 

सूत्र - 14


एकन्यूनेन पूर्वेण


पहले से एक कम के द्वारा।
By one less than the previous one.
उपरोक्त सूत्र के प्रयोग द्वारा हम वैसी गुणन क्रिया कर सकते हैं जिसका एक भाग में संख्या सिर्फ़ 9, 99, 999, 9999 ,..... हो
उदाहरण :-
   2354 × 9999
   ( 2354 - 1) = 2353        
एकन्यूनेन पूर्वेण
   ( 999 10 - 235 4) = 764 6
          
निखिलं नवतः चरमं दशतः
   = 2353 7646 (
उत्तर)

अभ्यास :-
(1) 75864 × 999999
(2) (86175)² - ( 13824

 

सूत्र - 15


गुणितसमुच्चयः


गुणितो का समुच्चय।
The whole product.
गुणनखण्डों की गुणन संख्याओं के योग का गुणनफल, गुणनफल भी गुणन संख्याओं के योग के समान होता है।
उदाहरण :-
  (2x + 1) ( 3x + 5) = 6x² + 13x + 5
   ( 2 + 1) ( 3 + 5) = 6 + 13 + 5
प्रत्येक पक्ष के 24  समान है
संख्याओं के योग तथा गुणन के नवांक एवं एकदशांक परीक्षण इसी सूत्र पर आधारित है।

सूत्र - 16


गुणकसमुच्चयः


गुणको का समुच्चय।
Set of multipliers.
यदि द्विघात व्यंजक X² + aX + b दो द्विपद ( X + p) तथा (X + q) का गुणनफल है तब इसकी प्रथम अवकलन (derivative) गुणन संख्या दोनों गुणनखण्डों का योग होती है।
X² + 5X + 4 = (X + 4) ( X + 1)
अतः ( 2X + 5) = (X + 4) + ( X + 1)
अवकलन के गुणन सूत्र (product rule of derivative)
y = f(x) × g(x)
तो dy/dx = f(x)' × g(x) + f(x) × g(x)'
जबकि y, f(x) तथा g(x) तीनों x के फलन हैं तथा y = f(x) × g(x) तथा सूत्र गुणकसमुच्चयः एक ही सत्य को अभिव्यक्त करते हैं।

Navank Moolank Beejank Digital Root (नवांक मूलांक बीजांक)

नवांक /मूलांक /बीजांक (Digital root) 

जीतनी भी संख्याएँ हैं वो 0 से 9 तक की संख्याओं से बनी है, प्रत्येक संख्याओं को पुनः 1 से 9 के रूप में व्यक्त करना ही मूलांक /बीजांक (digital root) कहते हैं।
इसे हम B(n) से संकेत कर सकते हैं।

उदाहरण :-
B (5) = 5
B(26) = B(2+6) = B (8) = 8
B(445) = B(4+4+5) = B(13) = B(1+3) = B(4) = 4
या
B(445) = B(4+4+5) = B(4+9) = B(4) = 4, { 9
को छोड़कर}
B(734250) = B(7+3+4+2+5+0) = B(21) = B(2+1) = B(3) = 3
या
B(734250) = B(7+3+4+2+5+0) = B{(7+2)+(5+4)+(3+0)= B{9+9+3} = B(3) = 3,
{
दोनों 9 को छोड़कर}

अभ्यास (Exercise) :-


निम्नलिखित संख्याओं के नवांक, मूलांक, बीजांक (Navank, Moolank, Beejank,Digital Root) ज्ञात कीजिए :-
(Find the digital root of the following.
(1) 67
(2) 763
(3) 878
(4) 4318
(5) 523601

मूलांक / बीजांक के अनुप्रयोग (Application of Digital root) :-

अनुप्रयोग (Application) :- 1
मूलांक का संकलन तथा व्यवकलन में अनुप्रयोग (Application of Digital root in Addition and subtraction)
         
संख्या            मूलांक
        25684            7
        35426            2
        78952            4
    +  25864            7
------------------------
   16 5 9 2 6      /  ( 2)
यहाँ संख्याओं के मूलांक के योग का मूलांक तथा संख्याओं के योग का मूलांक समान है अतः उपरोक्त संकलन पूर्णतः सही है।

 

अनुप्रयोग (Application) :- 2
मूलांक का गुणन में अनुप्रयोग (Application of Digital root in multiplication)
          
संख्या                मूलांक
         2   9   3                5
     ×  2   9   7                9
--------------------------------
      8 7 0  2 1               ( 9)
यहाँ संख्याओं के मूलांक के गुणनफल का मूलांक तथा संख्याओं के गुणनफल का मूलांक समान है अतः उपरोक्त गुणन प्रक्रिया पूर्णतः सही है।

 

अनुप्रयोग (Application) :- 3
9
से वाभाजिनीयता में मूलांक का अनुप्रयोग (Application of digital root in divisibility of 9)
किसी संख्या का मूलांक यदि 9 हो तो वो संख्या 9 से पूर्णतः विभाजित है तथा यदि 9 से कम हो तो संख्या को 9 से भाग देने पर प्राप्त होने वाली शेषफल राशि कहलायेगी।
(1)
782
का मूलांक 8 है अतः संख्या 782 संख्या 9 से भाग देने पर शेषफल 8 प्राप्त होगा।
(2)
7354296 
का मूलांक 9 है अतः संख्या 7354296 संख्या 9 से पूर्णतः विभाजित होगा।


अभ्यास (Exercise)
निम्नलिखित संख्या 9 से विभाजित है अथवा नहीं यदि नहीं तो शेषफल ज्ञात कीजिए :-
(1) 539
(2) 64831
(3) 982156
(4) 8100273
(5) 56281321

श्रीमद्भगवद्गीता में  गणित (Bhagwat Geeta mein Ganit)

।। गीता में गणित।।

सृष्टि के सृजन, पोषण तथा संहार में गणितीय संक्रियाओं अद्भुत समायोजन है। बहुआयामी वैदिक गणित के 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्र की उपस्थिति वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण और महाभारत में गणना, दर्शन अथवा व्यवहार इत्यादि के रुप समायोजित किया गया है। भारतीय ग्रंथों में गणित एवं ज्योतिष के व्यवहारिक अनुप्रयोग का सजीव वर्णन प्राप्त होता है। इन ग्रन्थों से गणित को प्रात करने के लिए सिर्फ गणितीय ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है अपितु साधना एवं परिश्रम की पराकाष्ठा के साथ-साथ ईश्वरीय कृपा भी आवश्यक है सामान्य भाषा में कहा जाए तो "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि" अर्थात् अपने अन्दर भी गणितीय जिज्ञासा की ज्वाला तीव्र होनी चाहिए। 

 श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत महापुराण का एक भाग है जिसमें वैदिक गणित के 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्र गणना, दर्शन तथा व्यवहार के रूप में विद्यमान हैं। यदि इस ग्रंथ को गणितीय दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाय तो ज्योतिष, अंकगणितीय संक्रिया, बीजगणित, ज्यामिति, निर्देशांक ज्यामिति, त्रिकोणमिति, अवकलन, समाकलन

योगेश्वर श्री कृष्ण की दिव्यवाणी श्रीमद्भगवद्गीता के भाव बहुत ही गम्भीर और बहुआयामी है। श्रीमद्भगवद्गीता के 10वें अध्याय के 21 श्लोक में काल को अपना स्वरुप बताते हुए कहा है  "ज्योतिषां रविरंशुमान्" एवं 30वें श्लोक में योगेश्वर ने स्वयं ही स्वीकार किया है  "कलः कलयतामहम्" अर्थात् गणना करने वालों में मैं काल हूँ। इस भव्य श्लोक के माध्यम से योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने को अद्वितीय गणक अर्थात् गणितज्ञ के रुप में स्थापित किया है। ज्योतिष में काल गणना मुख्य है अर्थात् काल को लेकर ही ज्योतिष चलता है। कला की गणना सूर्य से की जाती है।

पुनः 21वें श्लोक में कहा है " नक्षत्राणामहं शशि" अर्थात् कुल 27 नक्षत्र होते हैं। इनमें से नक्षत्रों की 1 राशि होती है अतः 27 नक्षत्रों की 12 राशियाँ  होती है । इन 12 राशियों पर सूर्य भ्रमण करता है तात्पर्य यह है कि 1 राशि पर सूर्य 1 महीना रहता है 35वें श्लोक में महीनों का वर्णन करते हुए कहा है मासानां मार्गशीर्षोऽहम्" अर्थात् महीनों में मैं मार्गशीर्ष का महीना हूँ 35वें श्लोक में 2 महीने का 1 ऋतु इस संदर्भ में ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है " ऋतुनां कुसुमाकरः" अर्थात् ऋतुओं में ऋतुओं का राजा बसंत मैं ही हूँ। इससे आगे बढ़ाते हुए  अयन का वर्णन करते हुए 8वें अघ्याय के 24वें कहा है
अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
शब्द कूटांक से अग्नि अर्थात् 3 ऋतुओं या षण्मासा अर्थात् 6 महीने का 1 अयन उत्तरायण होता है।
तथा 25वें श्लोक में अयन का वर्णन किया गया है
"
षण्मासा दक्षिणायनम्" अर्थात् 6 महीने का 1 अरन दक्षिणायन, इस प्रकार एक वर्ष में 2 अयन सिद्ध होता है। 
युग का वर्णन करते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने 4थे अध्याय के 8वें श्लोक में कहा है  सम्भवामि युगे युगे अर्थात् प्रत्येक युग में आवश्यकतानुसार अवतरित होता हूँ।
लाखो वर्षों का 1 युग होता है ऐसे 4 युग होते हैं
सतयुग = 172800वर्ष ( 432000 × 4)
द्वापरयुग = 1296000 वर्ष ( 432000 × 3)
त्रेतायुग = 864000 वर्ष ( 432000 × 2)
कलियुग = 432000 वर्ष ( 432000 × 1)
इन चारों युगों को मिलाकर 1 चतुर्युगी होता है ऐसे ही 1000 चतुर्युगी से ब्रह्मा का 1 दिन (सर्ग) और इतने ही 1 सर्ग का ब्रह्मा का 1 रात (प्रलय) होता है। इस तरह ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष की होती है। इस 100 वर्ष की अवधि पूर्ण हो जाने पर महाप्रलय होता है जिसमें सब कुछ परमात्मा में ही लीन हो जाता है। इसे 9वें अध्याय के 7वें श्लोक में कहा है
कल्पक्षये अर्थात् महाप्रलय
कल्पादौ अर्थात् महासर्ग (ब्रह्मा के पुनः प्रकट होने का काल)
तात्पर्य यह है कि कल्पादौ अर्थात् महासर्ग से काल के साथ ज्योतिष का आरंभ होता है और कल्पक्षय अर्थात् महाप्रलय के साथ ही इसका अंत स्वयं परमात्मा में ही हो जाता है।

प्राचीन काल में राष्ट्रकूट वंश के शासक अमोघवर्ष [815 से 877 तक] के शासनकाल में भारतीय गणित के इतिहास में  कर्नाटक प्रांत में अवतरित दिगम्बर जैन शाखा के महान एवं गणित चेतन तत्व के अनुसंधानकर्ता आचार्य महावीराचार्य द्वारा संस्कृत भाषा में 9 अध्याय एवं 1131 श्लोक रचित ग्रंथ गणितसारसंग्रह में गणित की प्रशंसा करते हुए कहा है कि :
बहुभिर्विप्रलापैः किम् त्रैलोक्ये सचराचरे ।
     
यत्किंचिद्वस्तु तत्सर्व गणितेन बिना न हि।।
अर्थात् गणित के बारे में बहुत क्या कहना, तीनो लोकों में सचराचर (चेतन और जड़) जगत में जो भी वस्तु विद्यमान हैं वे सभी गणित के बिना संभव नहीं हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता में  गणित (Bhagwat Geeta mein Ganit)

Urdhva Triyagbhyam Vertically and Crosswise ( ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् )


पूरी के 143वें जगद्गुरु स्वामी भारतीकृष्णतीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्र (16 Sutras and 13 Up-Sutras) में सभी के सभी सूत्र विलक्षणता से भरे हैं परन्तु सूत्र ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् अत्यंत ही व्यापक, बहुउपयोगी तथा बहुआयामी है जिसका अर्थ जितना सामान्य तथा सरल है उसका अनुप्रयोग उतना ही व्यापक है। इस सूत्र की विशेषता है कि यह संपूर्ण गणित को समाहित कर सकने में सक्षम है इस सूत्र के प्रयोग से अंकगणित (Arithmetic) , बीजगणित (Algebra) , ज्यामिति (Geometry) , त्रिकोणमिति (Trigonometry), कलन (Calculus) इत्यादि के साथ-साथ संगणक (computer) तथा परिगणक (calculator) के प्रश्नों का भी हल होता है।

 तृतीय सूत्र ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् (Third Sutra Urdhva Triyagbhyam ,Vertically and Crosswise) 

  संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ होता है — "सीधे ( खड़े) और तिरछे दोनों प्रकार से"  ( Vertically & Crosswise )
 
ऊर्ध्व = सीधा ( खड़ा) = | ( उपर-नीचे)
 
तिर्यक् = तिरछा = X
जिसका प्रयोग गणित के विभिन्न संक्रियाओं में किया जाता है।

अंकगणित (Arithmetic)


अंकगणित में इस सूत्र ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् का प्रयोग संकलन (Addition), व्यवकलन (subtraction)गुणन (Multiplication), विभाजन (Division)वर्ग (Square), वर्गमूल (Square root), घन (cube), घनमूल (cube root) इत्यादि अनेक संक्रियाओं में प्रयोग किया जाता है। किसी भी परिस्थितियों की दो या दो से अधिक संख्याओं को गुणा  किया जा सकता है जैसे
23 × 54, 123 × 211

उदाहरण — (1)
             25 × 54
   
हल -
                 2     3
             ×  5    4
         - - - - - - - - - - - - -
          12 /  4 / 2
(1)
प्रथम स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                       3
                   ×  4
                  - - - - - - -
                     12
(2)
प्रथम तथा द्वितीय स्तंभ का तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणन फल का योग
                 2     3
             ×  5    4
       - - - - - - - - - - - - - - -
         ( 2 × 4) + ( 3 × 5)
           = 8 + 15
          = 23
   23 +
अतिरिक्त अंक
  23 + 1 = 24

(3) द्वितीय स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                       2
                   ×  5
               - - - - - - - - -
                    10
  10 +
अतिरिक्त अंक
  10 + 2 = 12
अंतिम बायें खण्ड में 12 पूरा का पूरा लिख दें।
  
अतः उत्तर = 1242

उदाहरण — (2)
             123 × 211
    
हल
                     1         2        3 
              ×     2         1        1
         - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
               2  /  5 /  9 /  5 / 3
(1)
प्रथम स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                     3
                ×   1
             - - - - - - - - - -
                    3
(2)
प्रथम तथा द्वितीय स्तंभ का तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणन फल का योग
                 2     3
             ×  1    1
       - - - - - - - - - - - - - - -
         ( 2 × 1 ) + ( 3 × 1 )
             =  2 + 3  =  5
(3)
प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्तंभों में बाहर-बाहर के स्तंभों का तिर्यक् गुणा तथा मध्य स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा कर, प्राप्त गुणनफलों का योग।
                    1         2        3 
              ×     2         1        1
         - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
       ( 1 × 1) + ( 2 × 3) + ( 2 × 1)
             = 1 + 6 + 2 = 9
(4)
दायें से द्वितीय तथा तृतीय स्तंभों तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणनफल का योग प्राप्त करें।
                 1    2
             ×  2    1
       - - - - - - - - - - - - - - -
         ( 1 × 1 ) + ( 2 × 2 )
             =  1 + 4  =  5
(5)
दायें से तृतीय स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                      1
                ×   2
             - - - - - - - - - -
                    2
  
अतः उत्तर = 2 5 9 5 3

बीजगणित (Algebra)


बीजगणित में संकलन (Addiction) व्यवकलन (Subtraction), गुणन (Multiplication), विभाजन (Division), गुणन खण्डन (Factorisation) , समिश्र संख्या (Complex Number) आंशिक भिन्न (Partial Fraction) इत्यादि में इसके व्यापक प्रयोग देखे जाते हैं।

बीजगणितीय गुणन (Algebraic Multiplication)
उदाहरण — (3)
            (2p + 3) ( 3p + 5)
     
हल
                     2p     +     3
               ×    3p     +     5
           - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
   (2p ×3p) + {( 2p ×5) + ( 3p × 3)} + ( 3 × 5)
      = 6p² + {10p + 9p} + 15
      = 6p² + 19p + 150   ( Ans)

ज्यामिति (Geometry)


ज्यामिति में रेखाओं की माप (Measurement of Line), रेखाओं के समीकरण (Equation of Line),  दो रेखाओं के बीच का कोण (Angle between two Lines), वृत (Circle), अंडवृत (Ellipse), परवलय (Parabola) इत्यादि में इसके प्रयोग होता है

उदाहरण - (4)
उस रेखा का समीकरण ज्ञात किजिये जो बिन्दु P (3, 3) तथा Q (7, 6) से होकर गुजरती है।
हल :-
बिन्दु          Y का गुणांक      X का गुणांक    अचर
  P                   3                     3                     
Q                   7                      6                      
PQ             (7 - 3)               (6 - 3)    (7×3 - 3×6) 
                      4                       3                 3
अतः रेखा का समीकरण 4Y = 3X + 3 होगा।

त्रिकोणमिति (Trigonometry)


त्रिकोणमिति में समकोण त्रिभुज के भुजाओं को ज्ञात करना, समकोण त्रिभुज के भुजाओं का अनुपात - ज्या (Sin), कोज्या (Cos), स्पर्श ज्या (Tan) इत्यादि ज्ञात करना, त्रिकोणमितीय सर्वसमीका (Trigonometric Identities), त्रिकोणमितीय फलन (Trigonometric Functions), प्रतिलोम त्रिकोणमितीय फलन (Inverse Trigonometric Function) इत्यादि में इसका प्रयोग देखा जा सकता है
उदाहरण - (5)
कोण A तथा B की बौद्धायन संख्याएँ क्रमशः [ 4 3 5 ] [ 12 5 13 ] है। तो कोण (A + B) तथा (A - B) की बौद्धायन संख्या ज्ञात किजिये।
हल :-
कोण               भुज              कोटि             कर्ण  
    A                  4                  3                  5
    B                 12                 5                 13
  A+B = (12×4 - 5×3)  (12×3+5×4)     13×5    
                        33                56               65  
A-B = (12×4 +5×3)  (12×3 - 5×4)     13×5
                       63                  16              65     

      (A + B) =  [ 33  56  65 ]
      (A - B) =   [ 63  16  65 ]    

कलन (Calculus)


कलन में सूत्र ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् का का प्रयोग अद्भुत है आंशिक भिन्न (Partial Fraction) के प्रयोग से समाकलन (Integration) ज्ञात करना, Integration by Parts इत्यादि में इसका प्रयोग देखने को मिलता है
उदाहरण - (6)
   Int. of ( x⁴. cos x) dx
Diff. - x⁴        4x³         12x²         24x         24 
Int. - cos x   sin x    - cos x      - sin x     cos x
                         +            -               +            - 
Integration of ( x⁴. cos x) dx
= x⁴ sin x + 4x³ cos x - 12x² sin x - 24x cos x + 24 sin x + C

उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि  तृतीय सूत्र ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् (Third Sutra Urdhva Triyagbhydam ,Vertically an Crosswise) अत्यंत व्यापक तथा अद्भुत है जो अपने आप में गणित को समाहित कर सकने में सक्षम है ।
शतरंज के खेल में जितना महत्व 16 मोहरों में वजीर या रानी का होता है उसी तरह वैदिक गणित 16 सूत्रों में ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् का है जहाँ एक तरफ वजीर या रानी शतरंज के विशात पर सीधा तथा तिरछा दोनों तरह के चलने में सक्षम है उसी तरह वैदिक गणित 16 सूत्रों में ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सीधा तथा तिरछा दोनों क्रिया करने में सक्षम है इस विलक्षणता के आधार पर इस सूत्र को "सूत्रों की रानी (Queen of All Sutras)" कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा।
मानस-गणित (Manas Ganit) का प्रयास है कि कठिन से कठिन विषय को सरल तथा रोचक बना कर प्रस्तुत किया जा सके जो वैदिक गणित प्रेमियों तथा जिज्ञासुओं के ज्ञानवर्धन में सहायक हो। 

Subtraction By Vedic Maths (व्यवकलन घटाव वियोग)

व्यवकलन /घटाव (वियोग) /Subtraction
पूर्ण संख्याओं (whole number) के व्यवकलन (subtraction) को हम इस प्रकार परिभाषित (define) कर सकते हैं
'
पूर्ण संख्या x से पूर्ण संख्या y के व्यवकलन (subtraction) करने पर प्राप्त संख्या x - y से अभिप्राय उस संख्या से है, जिसमें y का योग करने पर संख्या x प्राप्त होती है।' अतः 7 - (-4) का अर्थ एक ऐसी संख्या से है, जिसमें - 4 जोड़ने पर 7 प्राप्त होता है। अर्थात् 4 न्यून /कम करने पर 7 प्राप्त होता है।
वह संख्या हमें 7 के साथ 4 का योग करने पर प्राप्त होती है।
   7 — ( —4) = 7 + 4
                    = 11
यदि x तथा y दो पूर्ण संख्याएँ हैं तो इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है
(i) (-x) - y = - ( x + y)
(ii) (-x) - (-y) = y - x
(iii) x - ( - y) = x + y
व्यवकलन /घटाव (वियोग) /Subtraction की वैदिक गणितीय विधि (Vedic Mathematical Method) —
सूत्र प्रयोग :-


(1)
निखिलं नवतश्चरमं दशतः
    
सभी नौ से तथा अंतिम दस से
   (Nikhilam Navatascharamam Dashatah)
   All from nine and last from ten.


(2)
एकन्यूनेन पूर्वेण
   
पहले से एक कम के द्वारा
   (Ekneunen Purvena)
    One less than the previous one.


गणित में व्यवकलन /घटाव /वियोग (subtraction) की प्रक्रिया सामान्य होती है परन्तु यदि संख्या में हासिल लेने की हालत में बच्चे हमेशा ही गलती कर देते हैं। वैदिक गणित के सूत्रों के प्रयोग के द्वारा हम ना सिर्फ आसानी तथा रोचक ढंग से घटाव के प्रश्नों को हल करते हैं वरन् बांये से दांये (from left to right) तथा दायें से बांये (from right to left) किसी तरफ से उत्तर लिख सकते हैं। बांये से दांये (from left to right) तथा दायें से बांये (from right to left) दोनों तरफ से घटाव को हल करने की प्रक्रिया बच्चे के कोमल दिमाग के बहुमुखी विकास में अत्यधिक सहायक होता है।
इस प्रकार हम सबसे पहले मित्र (friend) तथा परम मित्र (fast friend) की विशेषता को समझने का प्रयास करना है, जोकि वैदिक गणित के सूत्र "निखिलं नवतश्चरमं दशतः  अर्थात् सभी नौ से तथा अंतिम दस से  (Nikhilam Navatascharamam Dashatah) All from nine and last from ten पर आधारित है।

मित्र संख्या (Friend Number) :-

 

9 के पूरक वाली संख्या को मित्र संख्या (Friend Number) कहा गया है - जैसे 9 का मित्र (Friend) 0,  8 का मित्र (Friend) 1, 7 का मित्र (Friend) 2, 6 का मित्र (Friend) 3, 5 का मित्र (Friend) 4.
0 <–> 9,
1 <–> 8,
2 <–> 7,
3 <–> 6,
4 <–> 5


परम मित्र संख्या (Fast friend Number):-

 

10 के पूरक वाली संख्या को परम मित्र संख्या (Fast friend Number) कहा गया है - जैसे 9 का परम मित्र (Fast friend) 1, 8 का परम मित्र (Fast friend) 2, 7 का परम मित्र (Fast friend) 3, 6 का परम मित्र (Fast friend)  4, 5 का परम मित्र (Fast friend) 5.
1 <–> 9,
2 <–> 8,
3 <–> 7,
4 <–> 6,
5 <–> 5
अब कुछ उदाहरण के माध्यम से वैदिक गणित की महत्व तथा रोचकता को समझने का प्रयास करते हैं


उदाहरण :- 1
          9  0  0  0  0
    –   1  3  4  2  6
      - - - - - - - - - - - - - - - -

     - - - - - - - - - - - - - - - - -
उपरोक्त उदाहरण को हम बांये से दांये या दांये से बांये किसी भी तरफ से हल कर सकते हैं। यह वैदिक गणित की सुन्दरता है कि हम किसी भी विकल्प को चुन सकते हैं।
बांये से सर्वप्रथम 9 का एकन्यूनेन 8 (9—1) होता है अतः 8 —1= 7 तत्पश्चात 3 का मित्र अंक 6 ,4 का मित्र अंक 5, 2 का मित्र अंक 7 तथा अंत में 6 का परम मित्र अंक 4 होता है। अतः          
  9 0 0 0 0 –  1 3 4 2 6 = 7 6 5 7 4

उदाहरण :- 2
          9  1  3  2  3
    –   4  6  5  7  6
      - - - - - - - - - - - - - - - -

     - - - - - - - - - - - - - - - - -

बांये से सर्वप्रथम 9 का एकन्यूनेन 8 (9—1) होता है अतः 8 — 4= 4 तत्पश्चात 6 का मित्र अंक 3 अतः 3 + 1 = 4, 5  का मित्र अंक 4 अतः 4 + 3 = 7,  7 का मित्र अंक 2 अतः 2 + 2 = 4 तथा अंत में 6 का परम मित्र अंक 4 अतः 4 + 3 = 7 होता है। अतः          
  9 1 3 2 3  –  4 6 5 7 6 =  4 4 7 4 7

उदाहरण (3)


अये बाले लीलावती मतिमति ब्रूहि सहितान्
द्विपञ्चद्वात्रिंशत् त्रिनवतिशताष्टादश दश।
शतोपेतानेतानयुत-वियुतांश्चापि वद मे
यदि व्यक्ते युक्तिव्यवकलनामार्गेऽसि कुशला।।


हे बुद्धिमति बाला लीलावती, यदि तुम बुद्धिमति हो तो अपनी कुशलता का उपयोग कर उत्तर दो कि यदि 2, 5, 32, 193, 18, 10, तथा 100 के योग को 10, 000 से व्यवकलन /घटाया जाय तो क्या फल प्राप्त होगा ।
10, 000 — ( 2 + 5 + 32 + 193 + 18 + 10 + 100)
= 10, 000 — 360
9 6 40

व्यवकलन फल का परिक्षण बीजांक / मूलांक विधि द्वारा (Test of subtraction by the method of Digital root) :-
उदाहरण (1)
  9 0 0 0 0 –  1 3 4 2 6 = 7 6 5 7 4
90 000 
का बीजांक = 9
13 4 26 
का बीजांक = 1 + 3 + 4 + 2 + 6
                               = 16 = 1 + 6 = 7
76574 
का बीजांक = 7 + 6 + 5 + 7 + 4
                            = 29 = 2 + 9 = 11 = 1 + 1 = 2
13 4 26 
तथा 76574 के बीजांकों का योग = 7 + 2
                                                             = 9
                                                             = 90 000 
का बीजांक
उदाहरण (2)
  9 1 3 2 3  –  4 6 5 7 6 =  4 4 7 4 7
91323 
का बीजांक = 9 + 1 + 3 + 2 + 3
                             = 18 = 1 + 8 = 9
46576 
का बीजांक = 4 + 6 + 5 + 7 + 6
                             = 28 = 2 + 8 = 10 = 1 + 0 = 1
4 47 47 
का बीजांक = 4 + 4 + 7 + 4 + 7
                               = 26 = 2 + 6 = 8
46576 
तथा 4 47 47 के बीजांकों का योग = 8 + 1
                                                             = 9
                                                             = 91323 
का बीजांक

अभ्यास (Exercise)


निम्नलिखित व्यवकलन /वियोग /घटाव के प्रश्नों को वैदिक गणित के सूत्र निखिलं नवतश्चरमं दशतः तथा एकन्यूनेन पूर्वेण के आधार पर हल किजिये (Solve the following subtractions by using Vedic Mathematics Sutras like  Nikhilam Navatascharamam Dashatah and Ekneunen Purvena.)


(1) 80 000 — 2 34 56
(2) 7000 0 — 2 44 38
(3) 6000 0 — 22 3 49
(4) 62314 — 18695
(5) 72361 — 28978
(6) 81213 — 16 8 39
(7) 7 1208 — 46853
(8) 763 14 — 27186

(9) 86234  — 29865
(10) 66 3 13 — 28 18 6
(11) 7 1832 — 18 3 48
(12) 71 28 64 — 38 9 278
(13) 8 12 34 — 37817
(14) 80023 — 164 18
(15) 90 20 34 — 18 13 24
(16) 8 700 23 — 29014 

वैदिक बीजगणित तथा वैदिक अंकगणित के संयुक्त संक्रिया (Mixed Operations On Vedic Arithmetic And Vedic Algebra)

 

वैदिक बीजगणित तथा वैदिक अंकगणित के संयुक्त संक्रिया (Mixed Operations On Vedic Arithmetic And Vedic Algebra)


वैदिक गणित (Vedic Ganit) में संयुक्त संक्रिया (Mixed Operations)  एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अंकगणितीय (Arithmetic) तथा बीजगणितीय (Algebraic) संकलन (Addition) , व्यवकलन (Subtraction) , गुणन (Multiplication) तथा वर्ग (Square) इत्यादि के प्रश्नों को एक साथ हल करके कुछ सेकंडों में उत्तर प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से तीन सूत्रों का प्रयोग होता है।

प्रथम - द्वंद्वयोग (Duplex), द्वितीय - ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् (Vertically and Crosswise) तथा तृतीय - निखिलम् विधि (Nikhilam Method)

प्रथम (first) :-


द्वंद्व योग विधि द्वारा वर्ग (Square by Duplex Method)


यह विधि ऊर्ध्वतिर्यक (Vertically and Crosswise) सूत्र का ही एक अनुप्रयोग है।

(1) एक अंक का द्वंद्व योग (Duplex of One-digit No.)
  a
का द्वंद्व योग D(a) = a²
उदाहरण :-
  3
का द्वंद्व योग D(3)= 2² = 4
4
का द्वंद्व योग D(4) = 4² = 16

(2) दो अंकों का द्वंद्व योग (Duplex of Two-digit No.)
  ab
का द्वंद्व योग D(ab) = 2(a × b)
उदाहरण :-
  23
का द्वंद्व योग D(23)= 2 (2 × 3) = 12
  34
का द्वंद्व योग D(34)= 2 (3×4) = 24

(3) तीन अंकों का द्वंद्व योग (Duplex of Three-digit No.)
  abc
का द्वंद्व योग D(abc) = 2(a × c) + b²
उदाहरण :-
  123
का द्वंद्व योग D(123)= 2 (1 × 3) + 2² = 10
  234
का द्वंद्व योग D(234)= 2 (2×4)+ 3² = 25

(4) चार अंकों का द्वंद्व योग (Duplex of Four-digit No.)
  abcd
का द्वंद्व योग D(abcd) = 2(ad) + 2(bc)
उदाहरण :-
  1234 
का द्वंद्व योग D(1234)= 2(1×4)+2(2×3) = 20
  2345 
का द्वंद्व योग D(2345)= 2(2×5)+2(3×4) = 44

संयुक्त संक्रिया (Mixed Operations) में
द्वंद्व योग विधि द्वारा वर्ग (Square by Duplex Method)
प्राप्त करना बहुत महत्वपूर्ण है। विशेष जानकारी के उपरोक्त लिंक का प्रयोग किया जा सकता है।

द्वितीय (Second) -


ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् (Vertically and Crosswise) -

सूत्र ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् दो शब्दों के मिलने से बना है प्रथम ऊर्ध्व (Vertically) अर्थात् ऊर्ध्वाधर या खड़े दुसरा शब्द तिर्यक अर्थात् तिरछे (Crosswise) इस सूत्र के सहायता से हम किसी भी गुणन का गुणनफल मौखिक रुप में दे सकते हैं जिस पर अन्य विधियों के तरह आधार (Base) इत्यादि की कोई सीमा नहीं होती है।
जिसका प्रयोग गणित के विभिन्न संक्रियाओं में किया जाता है।
इस सूत्र के प्रयोग द्वारा किसी भी परिस्थितियों में दो संख्याओं को गुणा  किया जा सकता है जैसे
23 × 54, 123 × 211, (2p + 3) ( 3p + 5)

उदाहरण — (१)
             25 × 54
   
हल -
                 2     3
             ×  5    4
         - - - - - - - - - - - - -
          12 /  4 / 2
(1)
प्रथम स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                       3
                   ×  4
                  - - - - - - -
                     12
(2)
प्रथम तथा द्वितीय स्तंभ का तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणन फल का योग
                 2     3
             ×  5    4
       - - - - - - - - - - - - - - -
         ( 2 × 4) + ( 3 × 5)
           = 8 + 15
          = 23
   23 +
अतिरिक्त अंक
  23 + 1 = 24
(3)
द्वितीय स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                       2
                   ×  5
               - - - - - - - - -
                    10
  10 +
अतिरिक्त अंक
  10 + 2 = 12
अंतिम बायें खण्ड में 12 पूरा का पूरा लिख दें।
  
अतः उत्तर = 1242

उदाहरण — (२)
             123 × 211
    
हल
                     1         2        3 
              ×     2         1        1
         - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
               2  /  5 /  9 /  5 / 3
(1)
प्रथम स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                     3
                ×   1
             - - - - - - - - - -
                    3
(2)
प्रथम तथा द्वितीय स्तंभ का तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणन फल का योग
                 2     3
             ×  1    1
       - - - - - - - - - - - - - - -
         ( 2 × 1 ) + ( 3 × 1 )
             =  2 + 3  =  5
(3)
प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्तंभों में बाहर-बाहर के स्तंभों का तिर्यक् गुणा तथा मध्य स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा कर, प्राप्त गुणनफलों का योग।
                    1         2        3 
              ×     2         1        1
         - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
       ( 1 × 1) + ( 2 × 3) + ( 2 × 1)
             = 1 + 6 + 2 = 9
(4)
दायें से द्वितीय तथा तृतीय स्तंभों तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणनफल का योग प्राप्त करें।
                 1    2
             ×  2    1
       - - - - - - - - - - - - - - -
         ( 1 × 1 ) + ( 2 × 2 )
             =  1 + 4  =  5
(5)
दायें से तृतीय स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
                      1
                ×   2
             - - - - - - - - - -
                    2
  
अतः उत्तर = 2 5 9 5 3

उदाहरण — (३)
            (2p + 3) ( 3p + 5)
     
हल
                     2p     +     3
               ×    3p     +     5
           - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
   (2p ×3p) + ( 2p ×5) + ( 3p × 3) + ( 3 × 5)
      = 6p² + ( 10p + 9p) + 15
      = 6p² + 19p + 150   ( Ans)

अतः हम कह सकते हैं कि ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सूत्र के माध्यम से हम संबंधित अंकगणितीय तथा बीजगणितीय संक्रिया को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

तृतीय (Third) :-


निखिलम् विधि (Nikhilam Method)


आधार के पास की संख्याओं की संक्रिया करने के लिए निखिलम् विधि का प्रयोग किया जाता है इस विधि को विचलन विधि भी कहते हैं।
निखिल शब्द का अर्थ है आधार से कम या ज्यादा अर्थात् 97 अपने आधार 100 से 3 कम है अर्थात् 97 का निखिल या ऋणात्मक विचलन (- 3) होगा उसी तरह 1005 अपने आधार 1000 से 5 अधिक है अतः 1005 का निखिल या धनात्मक विचलन (+5) होगा।

1) धनात्मक विचलन (Positive Deviation) :-
आधार से बड़ी संख्या में विचलन सदैव धनात्मक होता है जिसे धनात्मक चिन्हों के साथ लिखते हैं जैसे 12 में (12 - 10) = (+2) विचलन, 104 में (104 - 100) = (+04) विचलन1012 में (1012 - 1000) = (+012) विचलन इत्यादि
विचलन विधि का उदाहरण :-
उदाहरण ( ४)
12 × 13
यहाँ 12 आधार 10 से 2 बड़ा है तथा 13 आधार 10 से 3 बड़ा है
( 12 / + 2 ) × ( 13  / + 3 )
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष
दांया पक्ष - ( + 2 × + 3 = + 6 )
बांया पक्ष - ( 12 + 3 या 13 + 2 = 15)
अतः 12 × 13 = 15 6 ( उत्तर)

2) ऋणात्मक विचलन (Negative Deviation) :-
आधार से छोटी संख्या में विचलन सदैव ऋणात्मक होता है जिसे ऋणात्मक ( - ve) चिन्हों के साथ लिखते हैं जैसे 8 में (10 - 8 ) = (— 2) विचलन, 96 में (100 - 96 ) = (— 04) विचलन, 988 में (1000 - 988 ) = (—012) विचलन इत्यादि
ऋणात्मक विचलन के उदाहरण :-
उदाहरण ( ५ )
98 × 97
यहाँ 98 आधार 100 से 02 छोटा है तथा 97 आधार 100 से 03 छोटा है
( 98 / - 02 ) × ( 97  / - 03 )
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष
दांया पक्ष - ( - 02 × - 03 = +06 )
बांया पक्ष - ( 98 - 03 या 97 - 02 = 95)
अतः 98 × 97 = 9506 ( उत्तर)

 गणित के संयुक्त संक्रिया का अभ्यास (Exercise of Mixed Operations) 

 

मानस गणित (Manas Ganit) के प्रयास से हिंदी में वैदिक गणित (Vedic Ganit in Hindi), आधुनिक गणित (Modern Mathematics), प्रतियोगी गणित (Competitive Mathematics) तथा प्राचीन भारतीय गणित (Ancient Indian Mathematics) के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए गणितीय ज्ञान को सरल तथा रोचक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए कटीबद्ध है ।

वैदिक बीजगणित के संयुक्त संक्रिया का अभ्यास(Exercise of Mixed Operations on Vedic Algebra)

 

वैदिक बीजगणित के संयुक्त संक्रिया का अभ्यास(Exercise of Mixed Operations on Vedic Algebra)


अभ्यास - 01
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सूत्र ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् तथा द्वंद्वयोग के प्रांगण द्वारा किजिये (Solve the following problems with the use of Sutras Vertically and Crosswise Method and Duplex.) :-


(1) (2x + 5) - (3x - 2) - (4x + 3) + (7x - 3)
(2) (3x + 2) + (4x - 2) - (3x + 1) + (5x + 4)
(3) (2x + 5) + (7x - 4) - (3x + 7) - (2x + 7) - (2x + 9)
(4) (2x + 5) + [(7x - 3)(3x + 7)] - (2x - 9)
(5) (2x + 1)² - [(3x - 2)(4x + 3)] + (x² + 7x - 3)
(6) [(2x + 1)(3x - 2)] - [2x (4x + 3)] + [(3x - 1)(2x + 3]
(7) [(7x + 5)(3x - 1)] + [(2x - 1)(7x - 3)] - [(5x + 2) (2x - 5)]
(8) (2x + 3)² - (x² + 3x + 2) - (x² + 3x - 7) + (2x² +3x + 1)
(9) (x² + 2x - 1)² - (x³ - 3x² + 3x - 1) + [(x² + 5x - 4)(x² - x - 12) 
(10) (x² + 2x + 1)² - [(3x² + x - 2)(2x² + 3x - 1)] + (x⁴ + 4x³ + 10x² 4x + 7)
(11) (3x² - 2x + 3)² - [(3x² + 5x - 2)(7x² + 3x - 4)] + (x⁴ - 4x³ + 10x² - 4x + 1)

 

वैदिक अंकगणित के संयुक्त संक्रिया का अभ्यास (Exercise of Mixed Operations on Vedic Arithmetic)

अभ्यास - 02
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सूत्र निखिलम्, ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् तथा द्वंद्वयोग के प्रांगण द्वारा किजिये (Solve the following problems with the use of Sutras Nikhilam, Vertically and Crosswise Method and Duplex.) :-
(01) 62 + 47 - 51 + 59 - 22 - 63 
(02) 92 + 61 - 45 + 24 - 31 + 22
(03) 245 + 624 - 375 + 281 - 122
(04) 262 - 35 + 152 - 121 + 53
(05) (63 × 35) + 213
(06) 316 + (41 × 34)
(07) (61 × 43) - 641 
(08) (81 × 34) - 346
(09) (104 × 97) + (105 × 98)
(10) (106 × 107) + (94 × 97)
(11) (109 × 110) - (104 × 106)
(12) (97 × 95) + (94 × 98)
(13) (996 × 997) - (992 × 993)
(14) (105 × 107) + (102 × 106)
(15) (1007 × 1009) + (996 × 997)
(16) (31 × 43) - 134 + (25 × 41)
(17) (92 × 97) + (96 × 95) - (97 × 99)
(18) (10021 × 10025) + (10060 × 10005)
(19) (105 × 107) - (102 × 106) + (101 × 112)
(20) (1012 × 1010) + (1005
(21) (9995 × 9989) + (9970 × 9960) - (9980 ×9990)
(22) (1012 × 1010) - (1005 × 1006) + (1011 × 1006)
(23) (23)² + (36 × 43) - 271 + (63 × 31)
(24) 78354 - (213 × 321) + (214)²
(25) [(52)² × (23)²] + 402 - 600 + [725 × (25)² × 41]

वैदिक गणित के क्या फायदें  है( What are the advantages of Vedic Maths)

आज के आधुनिक युग में सभी वैदिक गणित पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए अक्सर लोग एक सवाल पुछते हैं कि :-  

 वैदिक गणित के क्या फायदें  है( What are the advantages of Vedic Maths) तथा वैदिक गणित का क्या है? (What is Vedic Maths?) 

 "वीरभोग्या वसुंधरा" प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण धरती वीरों, ज्ञानियों, तपस्वियों की अथक साधना का परिणाम है अतः यह उन्हीं की है जो अपनी आवश्यकता के अनुसार धरती से उपहार प्राप्त करते हैं तथा इसका प्रयोग देश एवं समाज के उत्थान में करते हैं। प्रकृति द्वारा इसी तरह एक अद्भुत उपहार "वैदिक गणित" के रुप में दिया गया जिसका श्रेय गोवर्धन पीठ, पूरी के 143 वें शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज को जाता है जिन्होंने वर्षों की तपस्या तथा वेद-पुराण के आत्मसात का परिणाम है। वैसे तो वैदिक गणित के अनेकों फायदे हैं परन्तु मैं अपनी क्षमता के अनुसार रखने का प्रयास कर रहा हूँ जो निम्नलिखित हैं :- 

(१) यह एक प्राचीन भारतीय पद्धति है 

(२) इसमें विकल्पों की अधिकता है 

(३) यह एक मनोरंजक विधि है 

(४) इसमें समय की बचत होती है 

(५) इसके सहारे संसाधन की बचत होती है 

(६) पर्यावरण की रक्षा होती है 

(७) इसमें व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है 

(8) प्रतियोगी परीक्षाओं में वैदिक गणित के प्रयोग 

अब हम वैदिक गणित के सभी फायदों को विस्तार से चर्चा करते हैं - 

(१) यह एक प्राचीन भारतीय पद्धति है :- 

वैदिक गणित प्राचीन भारतीय पद्धति होने के कारण यह लोगों को स्वभाविक रूप से अपनी ओर आकृष्ट करता है तथा इसके साथ अपनापन का सृजन करता है जिससे कि वैदिक गणित के जिज्ञासुओं के लिए इसके साथ उत्तम सामंजस्य बिठाना सरल हो जाता है। 

(२) इसमें विकल्पों की अधिकता है :- 

वैदिक गणित में विकल्प की अधिकता होने के कारण यदि कोई बच्चा एक विधि को नहीं समझ पाता तो वह अन्य विधियों के सहारे किसी भी सवाल को हल कर सकता है अतः वैदिक गणित ज्यादा फायदेमंद होता है। एक उदाहरण से इसे समझने का प्रयास करते हैं, आधुनिक गणित में जहां गुणन प्रक्रिया को हल करने के लिए हम एक ही विधि गोमूत्र का विधि से हल करते हैं, वहीं दूसरी तरफ वैदिक गणित में इसके लिए अनेक विधियां दी गई है जैसे कि उर्ध्व तिर्यक  विधि, निखिलं विधि तथा विचलन विधि। इन विकल्पों के साथ बच्चे सरलता से गुणनफल ज्ञात कर लेते हैं 

 

(३) यह एक मनोरंजक विधि है :- 

 वैदिक गणित की बहुविकल्पिय प्रणाली तथा कम से कम समय में हल हो सकने की क्षमता इसे  मनोरंजक बना देती है इस विधि में बच्चे को उबाऊ विधि तथा समय की कमी से जूझना नहीं पड़ता है। 

(४) इसमें समय की बचत तथा मौखिक उत्तर :- 

वैदिक गणित का सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह है कि इन विधियों में समय की बचत होती है तथा उत्तर मौखिक रूप दी जा सकती है जहां एक तरफ सामान्य विधि से किसी भी सवाल को हल करने में 5 से 10 मिनट का समय लगता है वही वैदिक गणित के विधि से किसी भी सवाल को 15से 20 सेकंड में इसके उत्तर तक पहुंचा जा सकता है तथा कुछ अभ्यास के बाद ही मौखिक उत्तर देने की क्षमता विकसित हो जाती है। 

(५) इसके सहारे संसाधन की बचत होती है :- 

आज के युग में इच्छाएँ अनंत है तथा संसाधन सीमित है, इन सीमित संसाधनों में हमें अपनी अधिकतम आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होती है। इन परिस्थितियों में संसाधनों की बचत करना अति आवश्यक है जब हम बड़े बड़े सवाल हल करते हैं तो हमें ज्यादा कागज या ज्यादा कलम  की आवश्यकता होती है परन्तु  वैदिक गणितीय विधि का प्रयोग करके हम उन संसाधनों जैसे समय, कागज, स्याही तथा उद्धम  की  बचत करते हैं। जिससे कि हमें हमें हमारे संसाधनों की रक्षा भी होती है। 

(६) पर्यावरण की रक्षा होती है :- 

 आज विश्व पर्यावरण की रक्षा सबसे बड़ी चुनौती है यदि हम कागज की बचत तथा स्याही करते हैं तो पर्यावरण की भी रक्षा करते हैं क्योंकि प्रत्येक कागज बनाने के लिए पेड़ को काटा जाता है।  इस तरह जब हम कागज की बचत करते हैं तो  कई पेड़ों की रक्षा कर देते हैं  जो कहीं न कहीं पर्यावरण सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।  अतः वैदिक गणित का प्रयोग करके एक तरह से पर्यावरण की रक्षा भी करते हैं। 

(७) इसमें व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है :- 

वैदिक गणित का सबसे महत्वपूर्ण फायदा  यह है कि यह बच्चे का सर्वांगीण विकास करता सभी का हल सिर्फ दांये से बांये ही कर सकते हैं जिससे हमारे दिमाग के दोनों पक्षों का विकास समान रुप से नहीं हो पाता है। परन्तु वैदिक गणित के माध्यम से आप जोड़, घटाव, गुणा तथा विभाजन प्रक्रिया को दांये से बांये या बांये से दांये दोनों पद्धति से कर सकते हैं जो हमारे दिमाग को अपेक्षाकृत ज्यादा संतुलित तथा विकसित बनाता है। इस तरह वैदिक गणित हमारे सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध होता है। 

(8) प्रतियोगी परीक्षाओं में वैदिक गणित के प्रयोग :-

प्रतियोगी परीक्षाओं में किसी प्रतियोगी को कम-से-कम समय में तीब्रता तथा शुद्धता के साथ अधिक-से-अधिक प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं इसके लिए कई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाने वाले छोटे ट्रीक्स के नाम पर वैदिक गणित के सूत्रों का ही प्रयोग करते हैं परन्तु जानकारी के अभाव या कई अन्य कारणों से वैदिक गणित का नाम छात्रों को नहीं बताते। आशय यह है कि वैदिक गणित प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए पूरी के 143वें जगद्गुरु स्वामी भारतीकृष्णतीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्र वरदान है जो सभी के लिए उपयोगी है। 

  यूं तो वैदिक गणित के अनेकों फायदें हैं परन्तु उपरोक्त फायदों से यह स्पष्ट होता है कि वैदिक व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व पर साकारात्मक प्रभाव डालता है जोकि उसे जीवन में आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध होता है। 

वैदिक गणित का भव्य अनुप्रयोग (Glorious Application of Vedic Ganit)


साधारण भिन्न को उसके समतुल्य दाशमलविक रुप में प्रकट करना।
एक ऐसा भिन्न लेना है जैसे 1/19 जिसके हर का अन्तिम अंक 9 है।
यदि हम 1 /19 को दशमलव भिन्न में बदलने की प्रक्रिया शुरू करें तो सामान्य अथवा प्रचलित विधि के अनुसार 1 को 19 से भाग (1 ÷ 19) देने की आवश्यकता होगी साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यह भिन्न का दाशमलविक स्वरूप 18 दशमलव स्थान के बाद ही पुनरावृत्ति करेगा। अतः हमे 18 अंको तक लगातार विभाजन की क्रिया करनी होगी जिसमें दुखद 19 का पहाड़ा तथा लम्बी विभाजन प्रक्रिया से गुजरना पडे़गा जिसमें अत्यधिक समय तथा कागज की बर्बादी होगी।
सामान्य या भाग विधि द्वारा 18 अंको तक मान निम्न प्रकार है :-
1/19 = 0.052631578947368421

उपरोक्त 1/19 का दाशमलविक 18 अंकों तक के मान को वैदिक विधि से समझने का प्रयास करेंगे जो कि अत्यंत सरल रोचक तथा बिना अत्यधिक समय खर्च किया हल किया जा सकता सकता है।
वैदिक विधि से इस मान को प्राप्त करने के दो विधियाँ हैं
प्रथम - गुणन विधि
द्वितीय - विभाजन विधि


सूत्र :- एकाधिकेन पूर्वेण (Ekadhikena purvena)


         पहले से एक अधिक के द्वारा (One more than the previous one)
इस विधि में हर का अन्तिम अंक 9 है और उसके पहले वाला अंक 1 है अतः सर्वप्रथम पहले वाले अंक से एक अधिक एक अधिक (सूत्र एकाधिकेन पूर्वेण) का अर्थ 2 हुआ।
सूत्र के अनुसार 'के द्वारा' यह दर्शाता है कि उपरोक्त दोनों वैदिक विधियाँ या तो गुणन प्रक्रिया है अथवा विभाजन प्रक्रिया जिसमें जोड़ या घटाने में क्रमशः 'को' अथवा 'से' संबंधसूचक शब्द ज्ञात होता है।

प्रथम - गुणन विधि
इस विधि के अनुसार 2 के द्वारा (जोकि "एकाधिकेन पूर्वेण" अर्थात् पहले से एक अधिक है) गुणन करते हैं। यहाँ, हमे यह पहले से ही मालूम है कि उत्तर का अंतिम अंक 1 ही होगा। संबद्ध नियम यह कहता है कि "हर" के अंतिम अंक तथा प्रश्नगत भिन्न के तुल्य दाशमलविक संख्या के अंतिम अंक का गुणनफल 9 ही होना चाहिए। अतः हर के अंतिम अंक का मान 9 होने के कारण, तुल्य दाशमलविक संख्या का अंतिम अंक 1 ही होगा।
अतः 1 को उत्तर का अंतिम अंक (दाहिने ओर से) मानकर , 2 (एकाधिकेन पूर्वेण से प्राप्त संख्या) को प्रचालक मानकर  उससे लगातार गुण करते हुए बाईं ओर तबतक बढ़ते जायेंगे जब तक सारी प्रक्रिया दुहराने न लगे और यह स्पष्ट रुप से न दिख जाए कि उत्तर में आवर्ती दाशमलविक संख्या आ रही है और तब गुणन कार्य बंद कर देंगे।
कार्य पद्धति :-
(1)
हम 1 को उत्तर के दाहिने छोर पर लिख लेते हैं
                                                            1
(2)
हम इस अंतिम अंक को 2 से गुणा करते हैं (1× 2 = 2) और 2 को पूर्ववर्ती अंक बना कर 1 के बाईं तरफ़ लिखते हैं।
                                                        2 1
(3)
इस 2 को पुनः 2 से गुणा कर, 4 को फिर बाईं तरफ लिख देते हैं।
                                                     4  2 1
(4)
इस 4 को फिर 2 से गुणा कर, 8 को 4 के बाईं तरफ लिखते हैं।
                                                  8 4 2 1
(5)
इस 8 को यदि हम 2 से गुणा करते हैं तो गुणनफल 16 मिलता है। परन्तु इसमें दो अंक है। इसलिए 6 को 8 के तुरंत बाईं ओर लिखते हैं और 1 को अगली पैड़ी में बाईं ओर जोड़ने के लिए हाथ में रख लेते हैं।
                                               6 8 4 2 1
(6)
अब हम 6 को 2 से गुणा करते हैं और गुणनफल 12 में 1 (जो पिछली पैड़ी से जोड़ने के लिए हाथ में रखा था) जोड़ते हैं इस प्रकार प्राप्त 13 का 3 संख्या 6 के बाईं ओर लिखकर, फिर 1 को अगली पैड़ी में जोड़ने के लिए हाथ में रख लेते हैं।
                                        3 6 8 4 2 1
(7)
अब 3 को 2 से गुणा करते हैं, और गुणनफल 6 में हाथ वाला 1 जोड़ने पर फल 7 प्राप्त होता है। इस समय यह एक अंकीय संख्या है इसलिए इसे ज्यों का त्यों 3 के बाईं तरफ लिख देते हैं।
                                    7 3 6 8 4 2 1
(8)
अब हम 7 को 2 से गुणा करते हैं और गुणनफल 14  इस प्रकार प्राप्त 14 का 4 संख्या 7 के बाईं ओर लिखकर, फिर 1 को अगली पैड़ी में जोड़ने के लिए हाथ में रख लेते हैं।
                                  4 7 3 6 8 4 2 1
(9)
अब 4 को 2 से गुणा करते हैं, और गुणनफल 8 में हाथ वाला 1 जोड़ने पर फल 9 प्राप्त होता है। इस समय यह एक अंकीय संख्या है इसलिए इसे ज्यों का त्यों  4 के बाईं तरफ लिख देते हैं।
                               9 4 7 3 6 8 4 2 1
(10)
इस प्रणाली को दुहराते हुए अठारहवें अंक (दांये से बांये तरफ़ गिनते हुए) तक पहुंचते हैं जब हम देखते हैं कि सारा दाशमलविक दुहराने लगा है। तब प्रथम तथा अंतिम अंक में आवर्ती बिन्दु लगा देते हैं और गुणन क्रिया रोक देते हैं।
इस प्रक्रिया से हमे निम्नलिखित संख्या प्राप्त होती है


1/19 = 0.052631578947368421


इस तरह हम देखते हैं कि हमारी वैदिक विधि एक पंक्ति विधि द्वारा प्राप्त (जो कि आप बिना काग़ज़-कलम के भी मन में ही कर सकते हैं) उत्तर, प्रचलित विभाजन विधि द्वारा (जिसमें भाग क्रिया की अठारह पैड़ी है) प्राप्त उत्तर के बिल्कुल समान है।

द्वितीय - विभाजन विधि
इस प्रक्रिया में अंश का 1 में हर के 1 के एकाधिकेन 2 से भाग की क्रिया करेंगे चूंकि विभाजन क्रिया गुणन क्रिया के ठीक विलोम है, अतः यह प्रक्रिया दाहिने ओर से न शुरू होकर उसके विरुद्ध दिशा से अर्थात् बांई ओर से शुरू करेंगे।
कार्य पद्धति :-
(1) 
भिन्न 1/19 के अंश 1 को 19 में 9 का पुर्ववर्ति अंक 1 का एकाधिकेन 2 से भाग (1 ÷ 2) देते हुए, हम देखते हैं कि भजनफल शून्य है तथा शेष 1 है। इसलिए हम भजनफल के प्रथम अंक को शून्य रखते हैं और अगला भाज्य निकालने के लिए शेष 1 को भजनफल के उसी अंक में पूर्व स्थापित कर देते हैं (गुणन क्रिया में प्रयुक्त बाईं तरफ जाने वाली क्रिया की विपरीत क्रिया के समान) और इस तरह भाज्य 10 हो जाता है।
                                                       0.0
(2)
इस 10 में 2 से भाग देने पर हमें भागफल का दूसरा अंक 5 मिलता है, चुँकि इस कुछ भी शेष नहीं रहता (जिसे हम भजनफल के पूर्व स्थापित करते), हम उस अंक 5 को ही अपना अगला भाज्य अंक मान लेते हैं।
                                                      0.0 5
(3) 2
से 5 को भाग करने पर भागफल का अगला अंक 2 मिलता है तथा शेष 1 बचता है। इसलिए 2 को भजनफल का तीसरा अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 2 के पूर्व स्थापित कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 12 हो जाता है।
                                                      0.0 5 2
(4)
इस 12 में 2 से भाग देने पर हमें भागफल का चौथा अंक 6 मिलता है, चुँकि इस कुछ भी शेष नहीं रहता (जिसे हम भजनफल के पूर्व स्थापित करते), हम उस अंक 6 को ही अपना अगला भाज्य अंक मान लेते हैं।
                                                     0.0 5 2 6
(5)
पुनः 6 में 2 से भाग देने पर हमें भागफल का पांचवां अंक 3 मिलता है, चुँकि इस कुछ भी शेष नहीं रहता (जिसे हम भजनफल के पूर्व स्थापित करते), हम उस अंक 3 को ही अपना अगला भाज्य अंक मान लेते हैं।
                                                   0.0 5 2 6 3
(6) 3
को 2 से भाग करने पर भागफल का अगला अंक 1 मिलता है तथा शेष 1 बचता है। इसलिए 1 को भजनफल का छठा अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 1 के पूर्व स्थापित कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 11  हो जाता है।
                                                 0.0 5 2 6 3 1

(7)  अब 11 को 2 से भाग करने पर भागफल का अगला अंक 5 मिलता है तथा शेष 1 बचता है। इसलिए 5 को भजनफल का सातवां अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 5 के पूर्व स्थापित कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 15  हो जाता है।
                                                0.0 5 2 6 3 1 5
(8)
अब 15 को 2 से भाग करने पर भागफल का अगला अंक 7 मिलता है तथा शेष 1 बचता है। इसलिए 7 को भजनफल का आठवां अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 7 के पूर्व स्थापित कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 17  हो जाता है।
                                            0.0 5 2 6 3 1 5 7  
(9)
अब 17 को 2 से भाग करने पर भागफल का अगला अंक 8 मिलता है तथा शेष 1 बचता है। इसलिए 8 को भागफल का नवमा अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 8 के पूर्व स्थापित कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 18  हो जाता है।
                                        0.0 5 2 6 3 1 5  7 8  
(10)
इसी प्रकार 2 से भाग देने वाली प्रक्रिया को इस तरह करते हुए हम 17वां भजनफल अंक 2 मिलेगा और शेष शून्य।
                          0.05263157894736842
(11)
इस तरह भाज्य अंक 2 को 2 से पुनः भाग देने पर 1 भागफल और शेष शून्य आता है। परन्तु इसी अंक 1 से हमने शुरू किया था। अर्थात् इस अंक के बाद दशमलव संख्या की पुनरावृत्ति होने लगती है। इसलिए मौखिक रूप कर रहे इस भाग क्रिया को हम रोक देते हैं और पहले तथा अठारहवें अंक के उपर आवर्ती बिन्दु लगा देते हैं जो यह दर्शाते हैं कि यह पूरी संख्या आवर्ती है।
                          0.052631578947368421
अर्थात्
         1/19 = 0.052631578947368421
तृतीय विधि :-
उपरोक्त विधि में जो 18 अंकों तक जो गणना बताई गई है यह भी संक्षिप्त कर सकते हैं।
सर्वप्रथम हम 1/19 के सभी भागफल के प्रथम 9 अंकों को आड़ी पंक्ति में लिखें तथा बाद के 9 अंकों को दूसरी आड़ी पंक्ति में प्रथम पंक्ति के ठीक नीचे लिखें फिर देखें
                       0 5 2 6  3 1 5 7 8
                       9 4 7 3 6 8 4 2 1
                   - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
                      9 9 9 9 9 9 9 9 9
यहां हम देखते हैं कि एक अंक उपर का तथा एक अंक नीचे का योग करने पर योगफल 9 आता है इसी तरह सभी अंकों का योगफल 9 आता है। इस संक्रिया से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जब भागफल में आधा काम हो जाए तो वैदिक गणित के एक सूत्र निखिलम् नवतः से शेष आधा भागफल प्राप्त कर सकते हैं। यह विधि हमारे पहले के मेहनत को और आधा कर दिया।
अब हमें यह सोचना है कि हमें किस प्रकार पता चलेगा कि आधा अंकों की संख्या कितनी होगी, इसके लिए हम सर्वप्रथम दिए गए भिन्न में अंश के अंक तथा हर के अंक का (19 - 1 = 18) का अंतर करेंगे तथा उसे पुनः 2 से विभाजित (18 ÷ 2 = 9) करेंगे।
अभ्यास
(1) 2/19
(2) 1/29
(3) 1/39
(4) 1/49
(5) 1/59

छ: विधियों द्वारा विभाजन (Division By Six Methods)

जब घटाव या व्यवकलन की संक्रिया की पुनरावृत्ति की जाती है तो उस संक्रिया को विभाजन /भाग कहते हैं।
यदि x तथा y पूर्ण संख्याएँ हैं तथा y ≠ 0 तो x ÷ y अर्थात्  x/y  से अभिप्राय उस संख्या से है, जिसे y से गुणा करने पर पूर्ण संख्या x प्राप्त होती है।

भाग संक्रिया के मुख्य अवयव हैं
भाज्य ( Dividend)
भाजक (Divisor)
भागफल (Quotient)
शेषफल (Remainder)
भाज्य = भाजक × भागफल + शेषफल
Dividend = Divisor × Quotient + Remainder

भाग की विधियाँ (Methods of Division) :-
(1)
पारंपरिक विधि (Traditional Method)
(2)
खंडन विधि (Khandan Method)
(3)
विलोकनम् विधि (Observation Method)
(4)
निखिलम् विधि (Nikhilam Method)
(5)
परावर्त्य विधि (Pravartya Method)
(6)
ध्वजांक विधि (Flag Method)

(1) पारंपरिक विधि (Traditional Method)

(2) खंडन विधि (Khandan Method)

इस विधि में भाजक (divisor) का गुणन खण्डन (Factorisation) करके अपवर्तक (factor) से भाज्य (dividend) को विभाजित करने से प्राप्त भाग फल (quotient) को पुनः दुसरे अपवर्तक से विभाजित करते हैं।

उदाहरण (Example) - 2. 1

उदाहरण के लिए यदि हम 1620 को 12 से भाग करते हैं तो सर्वप्रथम 12 के गुणन खण्डन 3 तथा 4 प्राप्त होगा तत्पश्चात 1620 को 3 से विभाजित करने पर भागफल 540 प्राप्त होता है पुनः 540 को 4 से विभाजित करने पर 135 प्राप्त होगा जो 1620 ÷ 12 = 135 के बराबर होगा।

  1620 ÷ 12 ( 3 × 4)
सर्वप्रथम :-
1620 ÷ 3

   3 ) 1  6  2  0  (  5  4  0
   —  1  5 
      - - - - - - - -
              1  2 
       —   1  2 
           - - - - - - - -
              0  0  0
                      0
                  - - - - -
पुनः
    540 ÷ 4
    4 )  5  4  0  (  1 3  5
      — 4
       - - - -
          1  4
     —  1  2
         - - - - - - -
               2  0
          —  2  0
          - - - - - - - - -
               0   0

अभ्यास (Exercise) 2. 1
(1) 2214 ÷ 18
(2) 9723 ÷ 21
(3) 29190 ÷ 35
(4) 195342 ÷ 42
(5) 287658 ÷ 54

(3) विलोकनम् विधि (Observation Method)

जब भाग संक्रिया के किसी प्रश्न का हल मात्र विलोकनम् /ध्यान से देख कर (by observation) से प्राप्त कर लेते हैं तब वैदिक गणित का विलोकनम् उपसूत्र का प्रयोग माना जाता है।

(i) यदि किसी संख्या को 2 से विभाजित करना है तो संख्या का आधा कर देने पर भाग की संक्रिया सम्पन्न हो जाती है।

उदाहरण (Example) - 3. 1
456 ÷ 2
यहाँ 456 को आधा करने के कई विधियाँ हो सकती है।
पहला तो 456 का आधा 228 होता है,
दूसरा 456 = ( 400 + 50 + 6) का आधा ( 200 + 25 + 3) = 228
(ii)
यदि किसी संख्या को 10, 100, 1000,.... इत्यादि से विभाजित करना हो तो भाज्य संख्या में दाएँ से क्रमशः एक अंक, दो अंक, तीन अंक,..... इत्यादि को छोड़कर बाकी के अंक भागफल तथा शेष बाकी के अंक शून्य के अतिरिक्त यदि कोई संख्या हो तो शेषफल। 

उदाहरण (Example) - 3. 2
(i) 375 ÷ 10
दायें से एक अंक 5 छोड़कर भागफल 37 तथा शेषफल 5
(ii) 375 ÷ 100
दायें से दो अंक 75 छोड़कर भागफल 3 तथा शेषफल 75
(iii) 1375 ÷ 1000
दायें से तीन अंक 375 छोड़कर भागफल 1 तथा शेषफल 375

(iii) यदि किसी संख्या को 5, 25, 125,.... इत्यादि से विभाजित करना हो तो भाज्य तथा भाजक की संख्या में क्रमशः 2, 4, 8,.... इत्यादि से गुणा करने के पश्चात् दाएँ से क्रमशः एक, दो, तीन,... अंकों को छोड़कर प्राप्त संख्या भागफल तथा शेष अंक शेषफल होगा।

उदाहरण (Example) - 3. 3
(i) 235 ÷ 5
यहाँ भाज्य 235 × 2 तथा भाजक 5 × 2
   470 ÷ 10
में भागफल 47 तथा शेषफल 0
(ii) 235 ÷ 25
यहाँ भाज्य 235 × 2 × 2  तथा भाजक 25 × 2 × 2
   940 ÷ 100
में भागफल तथा शेषफल 40
(iii) 2350 ÷ 125
यहाँ भाज्य 2350  × 2 × 2 × 2 तथा भाजक 125 × 2 × 2 × 2
   18800 ÷ 10
में भागफल 18 तथा शेषफल 800

अभ्यास (Exercise) 3. 1
(01)  37  ÷ 10  =
(02)  598  ÷ 100 =
(03)  5468  ÷ 1000 =
(04)  460  ÷  5 =
(05)  5800  ÷  500 =

अभ्यास (Exercise) - 3. 2
(01)  8400  ÷ 250 =
(02)  8900 ÷ 2500 =
(03)  256  ÷  125  =
(04)  1024  ÷ 1250  =
(05)  6250  ÷  2500 =

(4) निखिलम् विधि (Nikhilam Method)

(5) परावर्त्य विधि (Pravartya Method)

(6) ध्वजांक विधि (Flag Method)

भाग प्रचलित विधि (Division By Traditional Method) 

जब घटाव या व्यवकलन की संक्रिया की पुनरावृत्ति की जाती है तो उस संक्रिया को विभाजन /भाग कहते हैं।
यदि x तथा y पूर्ण संख्याएँ हैं तथा y ≠ 0 तो x ÷ y अर्थात्  x/y  से अभिप्राय उस संख्या से है, जिसे y से गुणा करने पर पूर्ण संख्या x प्राप्त होती है।

भाग संक्रिया के मुख्य अवयव हैं
भाज्य ( Dividend)
भाजक (Divisor)
भागफल (Quotient)
शेषफल (Remainder)

भाज्य = भाजक × भागफल + शेषफल
Dividend = Divisor × Quotient + Remainder

भाग की विधियाँ (Methods of Division) :-
(1)
प्रचलित विधि (Traditional Method)
(2)
खंडन विधि (Khandan Method)
(3)
विलोकनम् विधि (Observation Method)
(4)
निखिलम् विधि (Nikhilam Method)
(5)
परावर्त्य विधि (Pravartya Method)
(6)
ध्वजांक विधि (Flag Method)

प्रचलित विधि (Traditional Method)

भागहारे करणसूत्रं वृतम्।
भाग संक्रिया को इस श्लोक के माध्यम से समझाया जा सकता है। ( Division is explained in this shloka)

भाज्याद्धरः शुद्धद्यति यदगुणः स्यादन्त्यात्फलं तत्खलु भागहारे।
समेन केनाप्यपवर्त्य हारभाज्यौ भवेदा सति संभवे तु।।
                                       ~
लीलावती - 19
वो बड़ी से बड़ी संख्या जिसका भाजक से गुणनफल को भाज्य के सबसे बायें के अंक /अंकों के बराबर या निकटतम अपवर्त्य हो। वो अंक भागफल का प्रथम अंक होगा। यदि भाजक तथा भाज्य के उभयनिष्ठ गुणक हो तो दोनों सम फल घटकर शेषफल शून्य देते हैं और इसतरह भाग की संक्रिया अन्य गुणको के साथ क्रिया करते हुए आगे बढ़ती है। (Find the largest integer whose product with the divisor can be subtracted from the extreme left hand digit(s) of the dividend. This integer is the first digit of the quotient. If the divisor and the dividend have a common factor, then the common factor can be cancelled and the division is carried out with the remaining factors.)
उदाहरण के लिए हम 1632 में 12 से भाग करते हैं। भाज्य के प्रथम दो अंक 16 में से 12 × 1 = 12 को घटाने पर भागफल का प्रथम अंक 1 तथा शेषफल 4 आयेगा। इसके बाद 42 को 12 से भाग देने पर, 12 × 3 = 36 को 42 से घटाने पर। इसतरह भागफल का अगला अंक 3 तथा शेषफल 72 जोकि 12 × 6 = 72  अतः भागफल का अंतिम अंक 6 होगा इसतरह भाग संक्रिया सम्पन्न हो जायेगी। अतः संपूर्ण भागफल 136 तथा शेषफल 0 होगा।

      1 2  )  1  6  3  2  (  1 3 6
           —   1  2
             - - - - - - - -
                     4  3 
               —   3  6 
                 - - - - - - - -
                          7  2
                     —  7  2 
                    - - - - - - - - - - -
                          0  0  
अतः 1632 ÷ 12 = 136 (भागफल) तथा 0 (शेषफल)

अभ्यास (Exercise)
(1) 2112 ÷ 16
(2) 9432 ÷ 12
(3) 8931 ÷ 13
(4) 11070 ÷ 15
(5) 73525 ÷ 17

भाग निखिलम् विधि (Division By Nikhilam Method)

जब घटाव या व्यवकलन की संक्रिया की पुनरावृत्ति की जाती है तो उस संक्रिया को विभाजन /भाग कहते हैं।
यदि x तथा y पूर्ण संख्याएँ हैं तथा y ≠ 0 तो x ÷ y अर्थात्  x/y  से अभिप्राय उस संख्या से है, जिसे y से गुणा करने पर पूर्ण संख्या x प्राप्त होती है।
भाग संक्रिया के मुख्य अवयव हैं
भाज्य ( Dividend)
भाजक (Divisor)
भागफल (Quotient)
शेषफल (Remainder)

भाज्य = भाजक × भागफल + शेषफल
Dividend = Divisor × Quotient + Remainder

निखिलम् विधि (Nikhilam Method)


यह विधि मूल रूप से वैदिक गणित के सूत्र "निखिलं नवतश्चरमं दशत" / सभी नौ से तथा अंतिम दस से (All from nine and last from ten) पर आधारित है।

भाग संक्रिया करने की विधि :-
(i)
भाज्य (dividend) के अंत से भाजक (divisior) के अंकों के समान अंक छोड़कर तिरछी रेखा खींचते हैं।
(ii)
भाज्य के बाईं ओर भाजक लिखा जाता है।
(iii)
भाजक के नीचे उसकी 10, 100, 1000,....... इत्यादि आधार (base),  प्रश्न के आधार पर आधार की पूरक संख्या लिखी जाती है जोकि निखिलम् सूत्र पर आधारित होता है। इससे प्राप्त संख्या को शोधित भाजक (nikhil of divisior) के रुप में लिखते हैं।
(iv)
भाज्य के नीचे थोड़ा स्थान छोड़कर क्षैतिज सरल रेखा खींची जाती है, इसके नीचे भाज्य का पहला अंक यथा स्वरुप लिख दिया जाता है।
(v)
भाज्य के नीचे पहला अंक छोड़कर शेष अंकों के रेखा के नीचे के पहले अंक से शोधित भाजक से गुणा करके अंको को क्रमशः उन अंकों के नीचे लिखते हैं।
(vi)
अब इस भाज्य के दूसरे अंक के नीचे की संख्या को उसमें जोड़कर रेखा के नीचे स्तंभ में लिख देते हैं।
(vii)
इस दूसरे अंक से पुनः शोधित भाजक के अंकों का गुणा करके भाजक के तीसरे अंक से प्रारंभ करके रेखा के ऊपर तीसरी पंक्ति में लिखते हैं।
(viii)
इसके बाद भाज्य के तीसरे अंक के नीचे की संख्याओं को उसके साथ जोड़कर रेखा के नीचे तीसरे स्थान पर लिखते हैं।
(ix)
यह प्रक्रिया तब तक चालू रखते हैं, जब तक कि अंतिम पंक्ति का अंतिम अंक के नीचे नहीं लिखा जाता है।
(x)
इसके उपरांत जोड़ किये गये अंकों की संख्याओं का अंतिम अंक लिखा जाता है।
(xi)
शेष को हासिल के रुप में दाएँ से बाएँ बढ़ते हुए बाईं संख्या में जोड़ा जाता है।
(xii)
रेखा के नीचे लिखी पंक्ति में दाहिने से बाएँ भाजक के अंकों की संख्या के समान अंकों से बनी संख्या शेष तथा शेष संख्या भागफल होती (quotient) है।
(xiii)
कभी-कभी शेष भाजक से बड़ा रह जाता है। अतः यदि उसके अंकों की संख्या भाजक के अंकों की संख्या से बड़ी हो तो भाग की क्रिया शोधित भाजक को लेकर पुनः दुहराई जाती है तथा नये भागफल को पुराने भागफल में जोड़कर लिखते हैं। यही अभीष्ट भागफल (quotient) होगा।
(xiv)
यदि शेष भाजक से बड़ा है तथा उसके अंकों की संख्या भाजक के अंकों की संख्या समान है तो भाजक के निकटतम गुणज को उसमें से घटाकर शेष प्राप्त करते हैं तथा गुणांक को भागफल में जोड़कर अभीष्ट भागफल प्राप्त करते हैं।

उदाहरण :-
    12321 ÷ 898
      
भाजक        भाज्य  खण्ड          शेषफल खण्ड
        898                   1     2           3    2    1 
        102 (
शो. भा.)            1           0    2
              1 0 2 × 3                         3    0   6
            -----------|-------------------------|-----------------------
                                 1       3           6   4   7
अतः भागफल = 13
        
शेषफल = 647

हल की प्रक्रिया :-
(i)
भाज्य (dividend) = 12321
(ii)
भाजक (divisor) = 898
(iii)
आधार (base) = 1000 (तीन अंकों को छोड़कर 3 के सामने रेखा खींचेंगे)
(iv)
आधर से विचलन = —102 ( 1000 — 898)
(v)
शोधित विचलन (nikhil of divisior) = 102
(vi)
उत्तर का प्रथम अंक = 1
(vii)
उत्तर के प्रथम अंक का गुणा शोधित भाजक के प्रत्येक अंक से करते हुए ( 1 × 102 = 1 0 2) भाज्य का (बायें से) एक-एक खिसकते हुए लिखने पर।
(viii)
उत्तर का द्वितीय अंक 2 + 1 = 3
(ix)
इस 3 का गुणा शोधित भाजक के प्रत्येक अंक से करने पर ( 3 × 102 = 306)
(x)
उत्तर वाले खण्ड में अंक समाप्त है। शेष वाले खण्ड में योगफल ज्ञात करेंगे।
(xi)
अतः भागफल (quotient) = 13 तथा शेषफल (remainder) = 647

अभ्यास (Exercise)
(1) 8731 ÷ 89
(2) 1382 ÷ 95
(3) 15346 ÷ 982
(4) 21302 ÷ 989
(5) 2012131 ÷ 9897
(6) 1295469 ÷ 89996
(7) 210231 ÷ 98899

परावर्त्य विधि (Pravartya Method)

भाजक (divisor) जब आधार (base) 10, 100, 1000,.... इत्यादि के निकट तथा बड़ा होता है तथा पहला अंक 1 होता है, तो भाग की संक्रिया का कार्य "परावर्त्य योजयेत्" (transpose and apply) सूत्र द्वारा अर्थात् धनात्मक (+) के चिन्ह को ऋणात्मक (—) तथा ऋणात्मक (—) के चिन्ह को धनात्मक (+) में बदल कर करना होता है।
  
क्रिया विधि में भाजक के प्रथम अंक को छोड़कर शेष अंकों के चिन्हों को बदल दिया जाता है। शोधित भाजक के जितने अंकों का चिन्ह बदलते हैं, भाज्य में दाईं ओर से उतने ही अंक छोड़कर खड़ी रेखा खींची जाती है। शेष क्रिया निखिलम् विधि के अनुसार ही करते हैं।

उदाहरण (Example) :-
    12345 ÷ 112

   भाजक          भाज्य  खण्ड          शेषफल खण्ड
  1  1  2               1   2   3            4    5  
  (-1) (-2) (
परा.)     - 1 - 2
       {- 1 - 2} × 1          - 1          - 2      
       {- 1 - 2} × 0                          0     0
           -----------|-------------------------|-----------------------
                            1   1  0              2    5

अतः भागफल = 110
        
शेषफल = 25

हल की प्रक्रिया :-
(i)
भाज्य (dividend) = 12345 
(ii)
भाजक (divisor) = 112
(iii)
आधार (base) = 100 (दो अंकों को छोड़कर 2 के सामने रेखा खींचेंगे)
(iv)
आधर से विचलन = 12 ( 112 — 100)
(v)
विचलन का परावर्त्य (transpose of divisior) =          (— 1 — 2)
(vi)
उत्तर का प्रथम अंक = 1
(vii)
उत्तर के प्रथम अंक का गुणा शोधित भाजक के प्रत्येक अंक से करते हुए ( 1 × (-1) (- 2) = - 1  - 2) भाज्य का (बायें से) एक-एक खिसकते हुए लिखने पर।
(viii)
उत्तर का द्वितीय अंक 2 - 1 = 1
(ix)
इस 1 का गुणा  भाजक के परावर्त्य प्रत्येक अंक से करने पर ( 1 × (-1) (- 2)= - 1 - 2)
(x)
उत्तर का तृतीय अंक 3 - 1 - 2 = 0 
(xi)
इस 0 का गुणा  भाजक के परावर्त्य प्रत्येक अंक से करने पर ( 0 × (-1) (- 2)=  0  0 )
(xii)
उत्तर वाले खण्ड में अंक समाप्त है। शेष वाले खण्ड में योगफल ज्ञात करेंगे।

अतः भागफल (quotient) = 110
     
शेषफल (remainder) = 25

अभ्यास (Exercise)
(1) 3746 ÷ 12
(2) 2289 ÷ 111
(3) 35896 ÷ 1112
(4) 227896 ÷ 1111
(5) 89786 ÷ 1121
(6) 146985 ÷ 1213
(7) 2252568 ÷ 1023
(8) 39316642 ÷ 13101
(9) 2357663 ÷ 1121
(10) 12488840 ÷ 1222

ध्वजांक विधि (Flag Method) 

भाग करने की यह वैदिक गणितीय विधि सूत्र "ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम्" (Vertically and Crosswise) एवं ध्वजांक (Flag digits) पर आधारित है। यहाँ ध्वजांक का अर्थ है ध्वज (flag) की तरह उपर रखी संख्या से है। इस विधि में भाजक (divisor) के अंकों को दो भागों में विभाजित करते हैं। दायें भाग को भाज्य के बाईं ओर रखते हैं, इसे ध्वजांक (flag) कहते हैं ।ध्वजांक के नीचे बाईं ओर थोड़ा हटकर भाजक के बाएँ भाग को लिखते हैं। सभी विभाजन प्रक्रिया इसके द्वारा ही होता है। इसे भाजक (divisor) कहते हैं। ध्वजांक में अंकों की संख्या के बराबर अंक दाईं ओर से गिनकर एक रेखा खींची जाती है, जिसके दाईं ओर शेषफल खण्ड (Remainder part) प्रदर्शित होता है। अब इस चुने हुए भाजक से भाज्य के बाएँ भाग को भाग दिया जाता है। भाग देने पर जो शेषफल प्राप्त होता है उसे भाज्य के अगले अंक से कुछ पहले, परन्तु पंक्ति से नीचे लिखा जाता है। यह संख्या भाज्य के अगले अंक के साथ गणना की जाती है। अब प्रात भागफल और ध्वजांक में बाएँ से दाएँ ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् (Vertically and Crosswise) का प्रयोग कर गुणनफल ज्ञात किया जाता है। इस गुणनफल को नये भाज्य से घटकर संशोधित भाज्य प्राप्त किया जाता है। पूर्व की भांति इसे पुनः पहले अंक के आगे उसी प्रकार लिखा जाता है। फिर से भाग की क्रिया इस भाज्य में की जाती है और ध्वजांक से नये भागफल का गुणा करना, घटाना तथा नया भाज्य ज्ञात करना और फिर भाग करना आदि बारंबार अंत तक चलता रहता है, जब तक कि अंतिम संशोधित शेषफल प्राप्त नहीं हो जाता।

उदाहरण (Example) - 1
     457 ÷ 32

हल (Solution) :-
भाज्य (Dividend) - 457
भाजक (Divisor) - 32
ध्वजांक (Flag digits) - 2
संशोधित भाजक (Revised Divisor) - 3
      
भाजक        भाज्य  खण्ड          शेषफल खण्ड
        3  2                  4   5               7 
                                    ¹               ¹      
      
ध्वजांक - 2               2               8 
संशोधित भाजक - 3                        
          -----------------------------------------------------------
                               4      13            9
            -----------|-------------------------|-------------------
                                 1       4             9     
   
चरण बद्ध भाग की प्रक्रिया का विश्लेषण (Step wise explanation of Division process)
(i)
भाजक के दो हिस्से करते हैं -
ध्वजांक (flag digits)  और संशोधित भाजक।
यहाँ संशोधित भाजक 3 तथा ध्वजांक 2 है। ध्वजांक संशोधित भाजक के थोड़ा ऊपर लिखा जाता है।
(ii)
भाग की क्रिया हमेशा संशोधित भाजक से किया जाता है।
(iii)
ध्वज में जितने अंक रहते हैं, विभाजन रेखा भाज्य के इकाई अंक की ओर से उतने अंक छोड़कर खींची जाती है। यहां ध्वज में एक अंक है अतः इकाई की ओर से एक अंक 7 छोड़कर लंबवत् विभाजन रेखा खींची गई है।
(iv)
संशोधित भाजक से भाग देना आरंभ करते हैं।
4 ÷ 3
में भागफल = 1, शेषफल = 1
भागफल 1 क्षैतिज रेखा के नीचे लिखेंगे।
शेषफल 1, भाज्य के अगले अंक 5 के सामने थोड़ा नीचे लिखते हैं।
प्राप्त हुआ 15 यह सकल भाज्य है। अभी ध्वजांक की क्रिया करने तक 15 से भाग नहीं करेंगे।
(v)
ध्वजांक × भागफल का प्रथम अंक = 2 × 1 = 2 इस गुणनफल को सकल भाजक 15 से घटाने पर 15 — 2 = 13 जोकि अगला संशोधित भाज्य है। इसमें 3 से भाग देंगे। 13 ÷ 3, भागफल = 4, शेषफल = 1
(vi) 4
भागफल में उत्तर का द्वितीय अंक है। शेषफल 1 को भाज्य के अगले अंक 7 के थोड़ा नीचे लिखेंगे। प्राप्त हुआ 17
(vii)
भागफल में उत्तर का द्वितीय अंक × ध्वजांक =   4 × 2 = 8 प्राप्त गुणनफल को 17 से घटाने पर 17 - 8 = 9
इसी के साथ भाज्य खण्ड के अंक खत्म हो चुके हैं अतः समाप्त करते हैं। परन्तु यदि दशमलव के अंको में भागफल चाहिए तो भाग की संक्रिया जारी रख सकते हैं।
अतः भागफल = 14 तथा शेषफल = 9

उदाहरण (Example) - 2
     876593  ÷ 512 

हल (Solution) :-
भाज्य (Dividend) - 876593 
भाजक (Divisor) - 512
ध्वजांक (Flag digits) - 12
संशोधित भाजक (Revised Divisor) - 5
      
भाजक        भाज्य  खण्ड          शेषफल खण्ड
        5  1 2          8  7  6  5            9  3
                              ³    ¹   ¹        
  
ध्वजांक - 1 2         1   2                
                                    8  4 
संशोधित भाजक - 5             1          2
                                                      2   4 
          -----------------------------------------------------------
संशोधित भाज्य -     36  6   10          (93 - 44)
            -----------|-------------------------|-------------------
                            1   7   1   2           4  9     
  
(i)
सर्वप्रथम 8 ÷ 5 = भागफल = 1 तथा शेषफल 3
(ii)
शेषफल 3 को अगले भाजक 7 के थोडा नीचे लिखेंगे तो भाजक 37 होग, भागफल 1 से ध्वजांक 1 2 से गुणा करने पर प्राप्त अंक 1 तथा 2 को क्रमशः भाजक दुसरे तथा तीसरे अंक के नीचे लिखेंगे।
(iii)
अगला संशोधित भाज्य 37 - 1 = 36
(iv)
पुनः 36 ÷ 5 = भागफल = 7 तथा शेषफल = 1
(v)
शेषफल 1 को भाजक के तीसरे अंक 6 के थोड़ा नीचे लिखेंगे तो भाजक 16 होगा, भागफल 7 से ध्वजांक 1 2 से गुणा करने पर प्राप्त अंक 8 तथा 4 को क्रमशः भाजक  तीसरे तथा चौथे अंक के नीचे लिखेंगे।
(vi)
अगला संशोधित भाज्य {16 - (2 + 8)} = 6
(vii)
पुनः 6 ÷ 5 = भागफल = 1 तथा शेषफल = 1
(viii)
शेषफल 1 को भाजक के चौथे 5 अंक  के थोड़ा नीचे लिखेंगे तो भाजक 15 होगा, भागफल के तीसरे अंक 1 से ध्वजांक 1 2 से गुणा करने पर प्राप्त अंक 1 तथा 2 को क्रमशः भाजक चौथे तथा पांचवें अंक के नीचे लिखेंगे।
(ix)
अगला संशोधित भाज्य {15 - (4 + 1)} = 10
(x)
पुनः 10 ÷ 5 = भागफल = 2 तथा शेषफल = 0
(xi)
शेषफल 0 को भाजक के पांचवें 5 अंक  के थोड़ा नीचे लिखेंगे। इसके पश्चात भाज्य खण्ड के अंक खत्म हो चुके हैं। भागफल के चौथे अंक 2 से ध्वजांक 1 2 से गुणा करने पर प्राप्त अंक 2 तथा 4 को क्रमशः भाजक पांचवें तथा छठे अंक के नीचे लिखेंगे।
(xii)
शेषफल की गणना के लिए शेषफल खण्ड में 93 तथा दहाई अंक पर 2 अर्थात् 20 तथा उसके नीचे 24 है।
अतः शेषफल = 93 — (20 + 24) = 49
इसी के साथ भाज्य खण्ड के अंक खत्म हो चुके हैं अतः समाप्त करते हैं। परन्तु यदि दशमलव के अंको में भागफल चाहिए तो भाग की संक्रिया जारी रख सकते हैं।
अतः भागफल = 1712  तथा शेषफल = 49

उदाहरण (Example) - 3
     8976543  ÷ 6123  

हल (Solution) :-
      
भाजक        भाज्य  खण्ड          शेषफल खण्ड
    6  1 2   3         8  9  7   6            5   4   3
                               ²   ⁴    ⁿ            ³    ⁿ   ⁴
  
ध्वजांक - 1 2 3                        
                                     
संशोधित भाजक - 6           
          -----------------------------------------------------------
संशोधित भाज्य -  8 
            -----------|-------------------------|-------------------
                         1   4   6   6              225    

नोट :- n = 5 लिया गया है।

(i) ध्वज में तीन अंक है अतः भाज्य के इकाई अंक से तीन अंक छोड़कर विभाजन रेखा खीचेंगे।
(ii)
सर्वप्रथम 8 ÷ 6 = भागफल = 1 तथा शेषफल 2
(iii) 29 — (1 × 1) = 28 { 123 × 001 
का ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सूत्र से गुणा}
(iv) 28 ÷ 6 =
भागफल = 4 तथा शेषफल
(v) 47 — [(1× 4) + (2 × 1)] = 41 { 123 × 014 
का ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सूत्र से गुणा}
(vi) 41 ÷ 6 =
भागफल = 6 तथा शेषफल
(vii) 56 — [(1× 6) + (2 × 4)+ (1 × 3)] = 39 { 123 × 146 
का ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सूत्र से गुणा}
(viii) 39 ÷ 6 =
भागफल = 6 तथा शेषफल 3
(ix) 35 — [(1× 6) + (6 × 2)+ (4 × 3)] = 5 { 123 × 466 
का ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सूत्र से गुणा}

54 — [(2× 6) + (3 × 6)] = 24 { 23 × 66  का ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सूत्र से गुणा}
243 — [3× 6 ] = 225 { 3 × 6 
का ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सूत्र से गुणा}
अतः भागफल = 1466
        
शेषफल = 225

अभ्यास (Exercise) - 1
(1) 3875 ÷ 31
(2) 4032 ÷ 34
(3) 23062 ÷ 41
(4) 29055 ÷ 43
(5) 10025 ÷ 29
(6)10912 ÷ 46
(7) 32056 ÷ 42
(8) 10998 ÷ 47
(9) 21768 ÷ 37

अभ्यास (Exercise) - 2
(1) 32226 ÷ 213
(2) 90992 ÷ 211
(3) 79092 ÷ 234
(4) 82134 ÷ 243
(5) 75675 ÷ 322
(6)159394 ÷ 687
(7) 211572 ÷ 324
(8) 968229 ÷ 431
(9) 6574625 ÷ 787

अभ्यास (Exercise) -3
(1)  54897 ÷ 3121
(2) 674948 ÷ 4213
(3) 1948763 ÷ 7122
(4) 9874468 ÷ 8213
(5) 19596548 ÷ 6122
(6) 6344152 ÷ 7354
(7) 132153 ÷ 2315
(8) 29694998 ÷ 43224
(9) 20026958 ÷ 32146

Multiplication Ekadhikena purvena (गुणन एकाधिकेन पूर्वेण) 

सूत्र - एकाधिकेन पूर्वेण - 
       
पहले से एक अधिक के द्वारा 
       (One more than the existing one) 
प्रथम स्थिति (First Condition)
उपसूत्र - अन्त्योर्दशकेअपि - 
           
अंतिम अंको का योग दस। 
           (Sum of last digits is ten.) 
गोवर्धन पीठ, पूरी के 143 वें शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के उपरोक्त सूत्र (formula) के प्रयोग के द्वारा विशेष(special) परिस्थितियों (conditions) में गुणा (multiply) किया जा सकता है जब किसी दो संख्याओं के इकाई-अंकों (ones-place) का योग (Sum) दस (ten) हो तथा दहाई (tens) या शेष (rest) अंक (digits) समान ( equal) हो। 
जैसे - 25 × 25, 38 × 32, 46 × 44, 53 × 57, 69 ×61, 105 × 105 
उपरोक्त उदाहरण (example) में इकाई अंकों का योग दस है - 5 + 5, 8 + 2, 6 + 4, 3 + 7, 9 + 1 इत्यादि तथा दहाई या शेष अंक समान है - 2 - 2, 3 - 3, 4 - 4, 5 - 5, 6 - 6, 10 - 10 
बीजगणितीय विश्लेषण ( Algebraic analysis) 
   (X5)² = ( 10 X + 5)² 
             = ( 10 X + 5) ( 10 X + 5) 
             = 10 X ( 10 X + 5) + 5 ( 10 X + 5) 
             = 100 X² + 50 X + 50 X + 25 
             = 100 X² + 100X + 25 
             = 100 X ( X + 1) + 25 
             = X ( X + 1)
सैकड़ा (hundreds) + 25

उदाहरण :- 
(1)      25 × 25 = 2 × ( 2 + 1) / 5 × 5 
                          = 2 × 3 / 25 
                          = 6 25 
(2)      38 × 32 = 3 × ( 3 + 1) / 8 × 2 
                          = 3 × 4 / 16 
                          = 12 16 
(3)       46 × 44 = 4 × ( 4 + 1) / 6 × 4 
                          = 4 × 5 / 24 
                          = 20 24 
(4)      53 × 57 = 5 × ( 5 + 1)  / 3 × 7 
                          = 5 × 6 / 21 
                          = 30 21 
(5)      69 × 61 = 6 × ( 6 + 1) / 1 × 9 
                          = 6 × 7 / 09  
                          = 42 09 
(6)  105 × 105 = 10 × ( 10 + 1) / 5 × 5 
                           = 10 × 11 / 25 
                           = 110 25 


अभ्यास (Exercise)   -1-
(1)  35 × 35             (11) 62 × 68 
(2)  45 × 45             (12)  73 × 77 
(3)  55 × 55             (13)  81 × 89 
(4)   65 × 65            (14)  94 × 96 
(5)   75 × 75            (15)  103 × 107 
(6)   85 × 85            (16)  114 × 116 
(7)   95 × 95            (17)  205 × 205 
(8)  105 × 105        (18) 306 × 304 
(9)   115 × 115       (19) 508 × 502 
(10) 125 ×125       (20) 501 × 509 

द्वितीय स्थिति (Second Condition)
उपसूत्र - अन्त्योर्शतकेऽपि - 
           
अंतिम अंको का योग सौ । 
           (Sum of last digits is hundred .) 
जब किसी दो संख्याओं के दांये के अंकों (digits at right ) का योग (Sum) सौ (hundred)  हो तथा शेष (rest) अंक (digits) समान ( equal) हो। 
जैसे - 295 × 205, 389 × 311
उपरोक्त उदाहरण (example) में  दांये के अंकों (digits at right ) का योग (Sum) सौ (hundred)  है -
95 + 05, 89 + 11
इत्यादि तथा शेष अंक समान है -
2 - 2, 3 - 3
(1)      295 × 205
       = 2 × ( 2 + 1) / 95 × 05 
       = 2 × 3 / 0475 
       = 6 04755 
(2)      389 × 311
        = 3 × ( 3 + 1) / 89 × 11 
        = 3 × 4 / 0979 
        = 12 0979 


अभ्यास (Exercise)   -2-
(1) 493 × 403           (2) 588 × 512
(3) 781 × 719           (4) 978 × 922
(5) 1092 × 1008      (6) 1187 × 1113
(7) 1975 × 1925      (8) 4976 × 4924
(9) 2055 × 2045      (10) 8989 × 8911

तृतीय स्थिति (Third Condition)
उपसूत्र - अन्त्योर्सहस्त्रकेऽपि - 
           
अंतिम अंको का योग हजार । 
           (Sum of last digits is thousand.) 
जब किसी दो संख्याओं के दांये के अंकों (digits at right ) का योग (Sum) हजार (thousand)  हो तथा शेष (rest) अंक (digits) समान ( equal) हो। 
जैसे - 2995 × 20053989 × 3011
उपरोक्त उदाहरण (example) में  दांये के अंकों (digits at right ) का योग (Sum) सौ (hundred)  है -
995 + 005, 989 + 011
इत्यादि तथा शेष अंक समान है -
2 - 2, 3 - 3
(1)      2995 × 2005
       = 2 × ( 2 + 1) / 995 × 005 
       = 2 × 3 / 004975 
       = 6 0049755 
(2)      3989 × 3011
        = 3 × ( 3 + 1) / 989 × 011 
        = 3 × 4 / 010879 
        = 12 010879 


अभ्यास (Exercise)   -3-
(1) 4988 × 4012        (2) 5993 × 5007
(3) 6987 × 6013        (4) 7992 × 7008
(5) 8986 × 8014        (6) 9991 × 9009
(7) 10985 × 10015    (8) 10984 × 10016
(9) 11996 × 11004   (10) 12981 × 12019

चतुर्थ स्थिति (Fourth Condition)
आद्ययोर्दशकम्
प्रथम संख्याओं का योग 10
Sum of the first is 10
इस गुणन प्रक्रिया में संख्याओं के इकाई अंक समान होते हैं तथा शेष /दहाई अंकों का योग 10 होता है।
64 × 44, 83 × 23, 76 × 36
उपरोक्त उदाहरणों में संख्याओं के इकाई अंक समान है जैसे (4, 4), (3, 3), (6, 6) तथा दहाई अंकों का योग 10 है जैसे 6 + 4 = 8 + 2 = 7 + 3 = 10. ऐसे गुणन प्रक्रिया गुणनफल ज्ञात करने के लिए संख्याओं के इकाई अंकों के गुणनफल को दायीं तरफ़ तथा दहाई अंकों के गुणनफल के इकाई अंक में समान अंकों में एक अंक का योग करने पर प्राप्त परिणाम बांयी तरफ़ लिखेंगे इस प्रकार संख्याओं का गुणनफल प्राप्त किया जाता है।
उदाहरण :-
   (1)       6     4           (2)         8       3         
           ×  4     4                      × 2       3    
       - - - - - - - - - -                    - - - - - - - - -   
       ( 6×4 + 4) / 16          (8×2 + 3) / 09
       = 2 8 1 6 (Ans)        =1 9 0 9 (Ans)


अभ्यास (Exercise) -4-
(1) 64 × 44
(2) 49 × 69
(3) 28 × 88
(4) 48 × 68
(5) 38 × 78
(6) 47 × 67
(7) 16 × 96
(8) 56 × 56
(9) 24 × 84
(10) 32 × 72

Multiplication By Nikhilam Or Base (गुणन निखिलम्आधार)

।। गुणन (Multiplication) - 2 (अ) ।।
~विचलन विधि
~ सूत्र - निखिलम् ( Nikhilam)
जगद्गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित गुणन- प्रक्रिया (Multiplication - method) के लिए एक सूत्र निखिलम् है जिसके माध्यम से आधार (base)- 10, 100, 100010000... इत्यादि तथा उपाधार (sub-base) -  20, 30, 200, 300, 400050000,..... इत्यादि के नजदीक के संख्याओं का गुणनफल सरल तथा रोचक ढ़ंग से प्राप्त किया जा सकता है।
~
आधार अथवा उपाधार के निकटता के आधार पर विचलन विधि को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
प्रथम - आधार अथवा उपाधार से छोटी संख्या यथा 9, 8,....., 99, 98, 97,...., 998, 997, 996, 989,...., 99979996,...... इत्यादि।
द्वितीय - आधार अथवा उपाधार से बड़ी संख्या यथा 11, 12,..., 101, 102,..., 10021003,....., 100021000310004... इत्यादि ।

  भाग - 1
सर्वप्रथम विचलन विधि के अन्तर्गत हम आधार से छोटी संख्याओं के गुणन प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे
इस विधि को हम तीन उदाहरण के द्वारा समझने का प्रयास करेंगे।

उदाहरण ( १)
8 × 9
यहाँ 8 आधार 10 से 2 छोटा है तथा 9 आधार 10 से 1 छोटा है
( 8  / - 2 ) × ( 9  / - 1)
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष
दांया पक्ष - ( - 2 × - 1 = +2)
बांया पक्ष - ( 8 - 1 या 9 - 2 = 7)
अतः 8 × 9 = 72 ( उत्तर)

उदाहरण ( २ )
98 × 97
यहाँ 98 आधार 100 से 02 छोटा है तथा 97 आधार 100 से 03 छोटा है
( 98 / - 02 ) × ( 97  / - 03 )
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष
दांया पक्ष - ( - 02 × - 03 = +06 )
बांया पक्ष - ( 98 - 03 या 97 - 02 = 95)
अतः 98 × 97 = 9506 ( उत्तर)

उदाहरण ( ३ )
996 × 992
यहाँ 996 आधार 1000 से 004 छोटा है तथा 992 आधार 1000 से 008 छोटा है
( 996 / - 004 ) × ( 992  / - 008 )
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष
दांया पक्ष - ( - 004 × - 008 = +032 )
बांया पक्ष - ( 996 - 008 या 992 - 004 = 988)
अतः 996 × 992 = 988032 ( उत्तर ) 

अभ्यास - 1
(1) 7 × 8 =
(2) 8 × 6 =
(3) 98 × 99 =
(4) 97 × 96 =
(5) 96 × 95 =
(6) 91 × 93 =
(7) 89 × 96 =
(8) 88 × 91 =
(9) 998 × 996 =
(10) 997 × 995 =
(11) 993 × 992 =
(12) 991 × 988 =
(13) 985 × 993 =
(14) 987 × 994 =
(15) 9992 × 9993 =
(16) 9991 × 9989 =
(17) 9988 × 9993 =
(18) 9981 × 9980 =
(19) 9976 × 9997 =
(20) 99998 × 99988 =

        भाग - 2
दूसरे भाग में विचलन विधि के अन्तर्गत हम आधार से बड़ी संख्याओं के गुणन प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे
इस विधि को हम तीन उदाहरण के द्वारा समझने का प्रयास करेंगे।
उदाहरण ( १)
12 × 13
यहाँ 12 आधार 10 से 2 बड़ा है तथा 13 आधार 10 से 3 बड़ा है
( 12 / + 2 ) × ( 13  / + 3 )
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष
दांया पक्ष - ( + 2 × + 3 = + 6 )
बांया पक्ष - ( 12 + 3 या 13 + 2 = 15)
अतः 12 × 13 = 15 6 ( उत्तर)
उदाहरण ( २ )
106 × 112
यहाँ 106 आधार 100 से 06 बड़ा है तथा 112 आधार 100 से 12 बड़ा है
( 106 / +06 ) × ( 112  / + 12 )
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष
दांया पक्ष - ( +06 × +12 = + 72 )
बांया पक्ष - ( 106 + 12  या 112 + 06 = 118 )
अतः 106 × 112 = 118 72 ( उत्तर)
उदाहरण ( ३ )
1006 × 1011
यहाँ 1006 आधार 1000 से 006 बड़ा है तथा 1011 आधार 1000 से 011 बड़ा है।
( 1006 / + 006 ) × ( 1011  / + 011 )
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष
दांया पक्ष - ( + 006 × +  011 = +066 )
बांया पक्ष - (1006 + 011 या 1011 + 006 = 1017 )
अतः 106 × 1011 = 1017066 ( उत्तर ) 

अभ्यास - 2
(1) 12 × 14 =
(2) 16 × 18 =
(3) 104 × 106 =
(4) 107 × 109 =
(5) 112 × 107 =
(6) 113 × 104 =
(7) 107 × 115 =
(8) 109 × 116 =
(9) 1008 × 1012 =
(10) 1009 × 1017 =
(11) 1011 × 1012 =
(12) 1019 × 1020 =
(13) 1006 × 1008 =
(14) 1016 × 1011 =
(15)  10006 × 10002 =
(16)  10011 × 10013 =
(17)  10105 × 10105 =
(18)  10098 × 10092 =
(19)  10118 × 10112 =
(20)  10086 × 10099 =

        भाग - 3
तीसरे भाग में विचलन विधि के अन्तर्गत हम आधार से बड़ी तथा छोटी संख्याओं के गुणन प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे
इस विधि  हम तीन अंकों की संख्याओं के गुणन प्रक्रिया को विभिन्न उदाहरणों के द्वारा समझने का प्रयास करेंगे।
उदाहरण ( १)
12 × 13 × 14
यहाँ 12 आधार 10 से 2 बड़ा है तथा 13 आधार 10 से 3 बड़ा है तथा 14 आधार 10 से 4 बड़ा है।
( 12 / + 2 ) × ( 13  / + 3 ) × ( 14 / +4)
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को तीन पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष, मध्य पक्ष तथा दांया पक्ष
दांया पक्ष - { (+ 2) × (+ 3) × (+4) = + 24 )
मध्य पक्ष - { (+2) × (+3) + (+3) × (+4) + (+4) × (+2 )}
     (+6) + (+12) + ( +8) =  + 26
बांया पक्ष - ( 12 + 3 +4, 13 + 2 +4 या 14 +2 +3 = 19)
अतः 12 × 13 × 14 = 19  / 26 / 24
                               = 19 +2 /  6 +2 / 4
                               = 21 8 4 (
उत्तर)
उदाहरण ( २ )
98 × 97 × 94
यहाँ 98 आधार 100 से 02 छोटा है, 97 आधार 100 से 03 छोटा है तथा 94 आधार 100 से 06 छोट़ा है
( 98 / - 02 ) × ( 97  / - 03 ) × ( 94  / - 06)
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को तीन पक्ष में विभक्त करेंगे बांया  दांया पक्ष, मध्य पक्ष तथा बांया पक्ष।
दांया पक्ष - { (- 02) × (-03) × (-06) = - 36 )
मध्य पक्ष -  { (-02) × ( - 03) + ( - 03) × (-04) + (-04) × ( - 02)
              = { +06 + 12 + 08}
             = +  26
बांया पक्ष - (98 - 03 - 06) या (97 - 02 - 06) या (94 - 02 - 03 )}
               = 89
अतः 98 × 97 × 94 = 89  / +26 / - 36
                           = 89  / (26 - 1) / (100 -  36)
                           =  89 25  64 (
उत्तर)
उदाहरण ( ३ )
1006 × 997 × 1011
यहाँ 1006 आधार 1000 से 006 बड़ा है, 997 आधार 1000 से 003 छोटा है तथा 1011 आधार 1000 से 011 बड़ा है।
( 1006 / + 006 ) × ( 997 / - 003) × ( 1011  / + 011 )
यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को तीन पक्ष में विभक्त करेंगे  दांया पक्ष, मध्य पक्ष तथा दांया पक्ष।
दांया पक्ष - { (+ 006) × ( - 003) × (+  011) = - 198 }
मध्य पक्ष - { (+ 006) ×(-003) + (-003)× (+011) + (+011) × (+006)}
            = { - 018 + ( - 033) + 066}
           = 015
बांया पक्ष - (1006 - 003 + 011 या 997 + 011 + 006 या 1011 + 006 - 003 = 1014 )
अतः
     106 × 997 × 1011 
1014 / 015 / - 198
=  1014 / (015 - 1) / (1000 - 198)
1014 013 8 02 (
उत्तर ) 

अभ्यास - 3
(1) 8 × 9 × 7 =
(2) 9 × 12 × 6 =
(3) 12 × 14 × 13 =
(4) 13 × 8 × 15 =
(5) 92 × 94 × 96 =
(6) 93 × 104 × 97 =
(7) 105 × 107 × 89 =
(8) 111 × 102 × 108 =
(9) 1008 × 998 × 1012 =
( 10) 996 × 991 × 1012
( 11) 1008 × 1007 × 1054 =
( 12)  995 × 988 × 990 =
( 13)  991 × 988 × 1002 =
( 14)  1013 × 997 × 1004 =
( 15)  10012 × 10008 × 10009
( 16)  9997 × 9992 × 9995 =
( 17)  9993 × 9989 × 10015 =
( 18)  10014 × 9994 × 10017 =
( 19)  91 × 112 × 105 =
( 20)  1025 × 1015 × 985 =

Multiplication By 9 in Vedic Maths

सूत्र प्रयोग :-
(1) 
एकन्यूनेन पूर्वेण (Eknunen Purvena)
    
पहले से एक कम के द्वारा
    (One less than the previous one)
(2)  
निखिलं नवतश्चरमं दशत (Nikhilam Navatascharamam Dashatah)
    
सभी नौ से तथा अंतिम दस से
   (All from nine and last from ten)

यह विधि वैदिक गणित के जादुई प्रभाव (magical effect) को इस प्रकार दर्शाता है कि कैसे बड़ी से बड़ी संख्या का गुणनफल (product) कुछ सेकंडों (few seconds) में प्राप्त कर सकते हैं।
इस विधि में गुणक तथा गुण्य में से कोई एक में अंक सिर्फ 9 के रुप में होता है जैसे 9, 99, 999,.... तथा दूसरा कोई भी संख्या हो सकती है।

इस विधि की तीन परिस्थितियाँ (conditions) होती है

(1) परिस्थिति (Condition) - 1

पहली परिस्थिति में गुणक में जितनी अंकों की संख्या होती है  गुण्य में उतने ही 9 की संख्या रखी जाती है।
जैसे - 786  × 999, 4638 × 9999
उदाहरण (Example) - 1
उदाहरण के तौर पर एक संख्या 786 तथा दूसरी संख्या 999 लेते हैं -  786 × 999
सर्वप्रथम वैदिक गणित के सूत्र एकन्यूनेन पूर्वेण अर्थात् दिये गये संख्या से एक कम (one less than the previous one) का प्रयोग करने पर 786 - 1 = 785} उत्तर का बांया पक्ष (L. H. S.) 785 तथा दांये पक्ष (R. H. S.) के लिए सूत्र निखिलं नवतश्चरमं दशत अर्थात् सभी नौ से तथा अंतिम दस से (All from nine and last from ten) { 9 - 7 = 2, 9 - 8 = 1 तथा 10 - 6 = 4 } उत्तर का दांये पक्ष में 214
अर्थात्
786 × 999 = 785214

उदाहरण (Example) - 2
                      4638
                   × 9999
             -----------------------------
{4638 - 1} / {9-4} / {9 - 6} / {9 - 3} / {10 - 8}
     4  6  3  7  /   5   3   6   2 
      4  6  3  7   5   3   6   2  (
उत्तर)

(2) परिस्थिति (Condition) - 2

दूसरी परिस्थिति में गुणक में अंकों की संख्या से गुण्य में 9 की संख्या ज्यादा होती है।
जैसे - 72 × 999, 3286 × 999999

उदाहरण (Example) - 1
उदाहरण के तौर पर एक संख्या 72 तथा दूसरी संख्या 999 लेते हैं -  72 × 999
सर्वप्रथम वैदिक गणित के सूत्र एकन्यूनेन पूर्वेण अर्थात् दिये गये संख्या से एक कम (one less than the previous one) { 72 - 1 = 71 } उत्तर का बांया पक्ष (L. H. S.) 71, मध्य में 9 की अधिक संख्या को लिखेंगे जितनी 9 की संख्या अधिक हो अर्थात् इस उदाहरण में एक 9 अधिक है अतः मध्य भाग में एक बार 9 लिखा जायेगा तथा दांये पक्ष के लिए सूत्र निखिलं नवतश्चरमं दशत अर्थात् सभी नौ से तथा अंतिम दस से (All from nine and last from ten) { 9 - 7 = 2 तथा 10 - 2 = 8 } उत्तर का दांये पक्ष (R. H. S.) में 28
अतः 72 × 999 = 71  9  28 
उदाहरण (Example) - 2
                        3  2   8   6 
           ×   9   9  9  9  9  9 
  —---------------------------------------------------------
{3 2 8 6 - 1} / 99 / {9-3} / {9-2} / {9-8} / {10 - 6}
       3  2  8  5  / 99  /  6  7  1  4
       3  2  8  5  9  9  6  7  1  4  (
उत्तर)

(3) परिस्थिति (Condition) - 3

तीसरी परिस्थिति में गुणक में अंको की संख्या से गुण्य में 9 की संख्या कम होती है।
जैसे - 435 × 99, 6543 × 999
उदाहरण (Example) - 1
उदाहरण के तौर पर एक संख्या 435 तथा दूसरी संख्या 99 लेते हैं -  435  × 99
उपरोक्त उदाहरण में गुणक में अंकों की संख्या तीन अर्थात् (435) है तथा गुण्य में दो नौ अर्थात् 99 है इन परिस्थिति में गुणक के अंक 435 में दांये से दो अंक (गुण्य में 9 की संख्या के बराबर) को छोड़कर शेष बचे अंक 4 का एकाधिकेन अर्थात् 5 (4 + 1) को गुणक 435 में से घटाने पर {435 - (4 + 1) = 430} उत्तर का बांया पक्ष (L. H. S.) होगा दांये पक्ष (R. H. S.) के लिए गुणक अंक 4 को छोड़कर शेष 35 में सूत्र निखिलं नवतश्चरमं दशत अर्थात् सभी नौ से तथा अंतिम दस से (All from nine and last from ten) { 9 - 3 = 6 तथा 10 - 5 = 5 } उत्तर का दांये पक्ष में 6  5
अतः 435 × 99 = 4  3  0  6  5

उदाहरण (Example) - 2
             6   5   4   3 
              × 9    9    9
    ----------------------------------------
{6  5  4  3  - (6 + 1)} /(9 - 5)/(9 - 4)/(10 - 3)
    6  5  3  7  /  4  5  7
    6  5  3  7  4  5  7  (
उत्तर)

अभ्यास (Exercise)
(1) 57×99 
(2)  4378× 9999  
(3)  17897 × 99999 
(4) 87×999 
(5)  345 × 99999 
(6)  48× 9 
(7)   9457× 999
(8) 36458 × 9999
(9) 65734 × 9999
(10) 876753 × 999999

Multiplication By Deviation Method (गुणन विचलन विधि)

गुणन (Multiplication) - विचलन विधि (Deviation Method)

इस विधि में गुणक तथा गुण्य में से एक के अधिक निकट आधार संख्या का चुनाव कर उससे विचलन ज्ञात कर गुणन की क्रिया की जाती है।

इस विधि में गुणक तथा गुण्य दोनों ही आधार संख्या 10, 100, 1000,...... के निकट की संख्या होती है।

विचलन :- गुणक तथा गुण्य में से आधार संख्या के घटाने पर प्राप्त राशि आधार से विचलन कहलाती है। इस राशि के चिन्हों के आधार पर विचलन के दो प्रकार होते हैं

(1) धनात्मक विचलन (Positive deviation)

(2) ऋणात्मक विचलन (Negative deviation)

गुणन की विचलन विधि आधार X के लिए

जहाँ X = 10, 100, 1000,......

बीजगणितीय सूत्र :-

( X + p) ( X + q)  = X ( X + p + q) + pq

इस बीजगणितीय सूत्र का व्यापक रुप

( X + 1) ( X + 2) ( X + 3)...... (X + n)

Xⁿ / Xⁿ- ¹ ( 1 + 2 +.... + n) / Xⁿ-² {1×2 + 2×3 +... + (n-1) × n} /...... / (1×2×3 ×.... ×n)

व्यापक रूप का विश्लेषण :-

(1) प्रथम खण्ड में Xⁿ

(2) द्वितीय खण्ड में विचलनों का योग।

(3) तृतीय खण्ड में दो दो विचलनों का योग।

(4) चतुर्थ खण्ड में तीन तीन विचलनों का योग।

इसी प्रकार आगे बढते हुए अंतिम खण्ड में सभी विचलनों का गुणनफल।

(1) धनात्मक विचलन (Positive Deviation) :-

आधार से बड़ी संख्या में विचलन सदैव धनात्मक होता है जिसे धनात्मक चिन्हों के साथ लिखते हैं जैसे 12 में (12 - 10) = (+2) विचलन, 104 में (104 - 100) = (+04) विचलन, 1012 में (1012 - 1000) = (+012) विचलन इत्यादि

विचलन विधि का उदाहरण :-

उदाहरण ( १)

12 × 13

यहाँ 12 आधार 10 से 2 बड़ा है तथा 13 आधार 10 से 3 बड़ा है

( 12 / + 2 ) × ( 13  / + 3 )

यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष

दांया पक्ष - ( + 2 × + 3 = + 6 )

बांया पक्ष - ( 12 + 3 या 13 + 2 = 15)

अतः 12 × 13 = 15 6 ( उत्तर)

उदाहरण ( २ )

106 × 112

यहाँ 106 आधार 100 से 06 बड़ा है तथा 112 आधार 100 से 12 बड़ा है

( 106 / +06 ) × ( 112  / + 12 )

यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष

दांया पक्ष - ( +06 × +12 = + 72 )

बांया पक्ष - ( 106 + 12  या 112 + 06 = 118 )

अतः 106 × 112 = 118 72 ( उत्तर)

उदाहरण ( ३ )

1006 × 1011

यहाँ 1006 आधार 1000 से 006 बड़ा है तथा 1011 आधार 1000 से 011 बड़ा है।

( 1006 / + 006 ) × ( 1011  / + 011 )

यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष

दांया पक्ष - ( + 006 × +  011 = +066 )

बांया पक्ष - (1006 + 011 या 1011 + 006 = 1017 )

अतः 106 × 1011 = 1017066 ( उत्तर )

(2) ऋणात्मक विचलन (Negative Deviation) :-

आधार से छोटी संख्या में विचलन सदैव ऋणात्मक होता है जिसे ऋणात्मक ( - ve) चिन्हों के साथ लिखते हैं जैसे 8 में (10 - 8 ) = (— 2) विचलन, 96 में (100 - 96 ) = (— 04) विचलन, 988 में (1000 - 988 ) = (—012) विचलन इत्यादि

ऋणात्मक विचलन के उदाहरण :-

उदाहरण ( ४)

8 × 9

यहाँ 8 आधार 10 से 2 छोटा है तथा 9 आधार 10 से 1 छोटा है

( 8  / - 2 ) × ( 9  / - 1)

यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष

दांया पक्ष - ( - 2 × - 1 = +2)

बांया पक्ष - ( 8 - 1 या 9 - 2 = 7)

अतः 8 × 9 = 72 ( उत्तर)

उदाहरण ( ५ )

98 × 97

यहाँ 98 आधार 100 से 02 छोटा है तथा 97 आधार 100 से 03 छोटा है

( 98 / - 02 ) × ( 97  / - 03 )

यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष

दांया पक्ष - ( - 02 × - 03 = +06 )

बांया पक्ष - ( 98 - 03 या 97 - 02 = 95)

अतः 98 × 97 = 9506 ( उत्तर)

उदाहरण ( ६ )

996 × 992

यहाँ 996 आधार 1000 से 004 छोटा है तथा 992 आधार 1000 से 008 छोटा है

( 996 / - 004 ) × ( 992  / - 008 )

यहाँ उपरोक्त प्रश्न के उत्तर को दो पक्ष में विभक्त करेंगे बांया पक्ष तथा दांया पक्ष

दांया पक्ष - ( - 004 × - 008 = +032 )

बांया पक्ष - ( 996 - 008 या 992 - 004 = 988)

अतः 996 × 992 = 988032 ( उत्तर )

अभ्यास (Exercise) :-

(१) 13 × 14

(२)  104 × 106

(३)  1013 × 1009

(४) 10012 × 10011

(५) 103 × 104 × 106

(६) 98 × 93

(७) 989 × 991

(८) 9993 × 9988

(९) 998  × 997 × 996

(१०) 102 × 96 × 103

Divisibility by 11 (11 से विभाज्यता) 

विभाज्यता - 11 ( बीजगणितीय प्रमाण)
{ Divisibility - 11 ( Algebraic Proof)}

11 से विभाज्यता का नियम सामान्यतः संख्या के सम-स्थान के अंकों के योग से विषम-स्थान के अंकों के योग का अंतर यदि शून्य हो  या 11  हो या दूसरे शब्दों में कहें तो सम-स्थान के अंकों के योग तथा विषम-स्थान के अंकों के योग समान हो या 11 का अन्तर हो तो दी गई संख्या 11 से पूर्णतः विभाजित होगी। ( Any number which is divisible by 11 when the difference of the Sum of digits at even place and digits at odd place is either zero or 11.)

उदाहरण (Example) ( 0) :-
132
विषम-स्थान अंक (digits at odd-place) - 1, 2
                           = 1 + 2
                           = 3
सम-स्थान अंक (digits at even-place) - 3
यहाँ सम-स्थान अंक तथा विषम-स्थान अंको का योग बराबर है। ( Here the sum of the digits at odd-place is equal to the sum of the digits at even-place)
अतः हम कह सकते हैं कि 132 संख्या 11 से पूर्णतः विभाजित हो सकती है । ( Therefore we can say that 132 is completely divisible by 11. )

बीजगणितीय प्रमाण (Algebraic Proof) :-
तीन-अंकीय संख्या p q r लेने पर ( take a three digits number 'p q r ') -
संख्या ( number)
= 100p + 10q + r
           = 99p + 11q + p - q + r
           = 99p + 11q + ( p - q + r)
           = 11 ( 9p + q) + {( p + r) - q}
यदि दी गई संख्या pqr 11 से विभाज्य है तो ( p+r) तथा q बराबर होंगे - ( If the number p q r is divisible by 11, then)
या
( p + r) -  q = 0
कुछ परिस्थितियों में ( in some cases)
( p + r) -  q = 11
प्राप्त हो सकते हैं।

उदाहरण ( 1) :-
संख्या - 176
    100×1 + 10 × 7 + 6
    ( 99 × 1 + 11 × 7 ) +( 7 + 1 - 6)
    11 ( 9×1 + 7 ) + { (6 + 1) - 7 }
    11 × { 16 } + 0
    
अत: संख्या 176 संख्या 11 पूर्णतः विभाजित है।
तथा भागफल 16 है जोकि बीजगणितीय प्रमाण के अनुसार   ( 9p + q)  के समान है। ( Hence the number 176 is completely divisible by 11 and quotient is 16 which is (9p + q) by Algebraic Proof.)

चार-अंकीय संख्या p q r s लेने पर ( Four-digits number 'p q r s')
संख्या ( Number) -
1000p 100q + 10r + s
1001p + 99q + 11r + s - p + q - r
(1001p + 99q + 11r) + (-p + q - r + s)
= 11 ( 91p + 9q + r) + {( q + s) - ( p + r)}
यदि दी गई चार-अंकीय संख्या pqrs 11 विभाजित होती है तो (q + s) तथा ( p + r) का अंतर शून्य होगा ( If given Four-digits number is divisible by 11 then the difference of ( q + s) and ( p+ r) is zero.)
( q + s) - ( p + r) = 0

कुछ परिस्थितियों में ( in some cases we can get )
( q + s) - ( p + r) = 11
प्राप्त हो सकते हैं।

उदाहरण ( 2) :-
संख्या ( number) -
  2574
1000 × 2 + 100 × 5 + 10 × 7 + 4
(1001 × 2 + 99 × 5 + 11 × 7) + (4 - 2 + 5 - 7)
= 11( 91 × 2 + 9 × 5 + 7) + {(4 + 5) - ( 2 + 7)}
= 11 ( 182 + 45 + 7) + { 9 - 9}
= 11 × 234 + 0
अत: संख्या 2574 संख्या 11 पूर्णतः विभाजित है।
तथा भागफल 234 है जोकि बीजगणितीय प्रमाण के अनुसार   ( 91p + 9q + r )  के समान है। ( Hence the number 2574 is completely divisible by 11 and quotient by algebraic proof is ( 91p + 9q + r).)

इसी तरह ( similarly)
पाँच-अंकीय संख्या p q r s t यदि 11 से पूर्णतः विभाजित होता है तो ( five-digits number p q r s t  is completely divisible by 11 then )
भागफल (quotient) = (909p + 91q + 9r + s)
#
छः-अंकीय संख्या p q r s t u यदि 11 से पूर्णतः विभाजित होता है तो ( six-digits number p q r s t u  is completely divisible by 11 then, )
भागफल (quotient) :-
( 9091p + 909q + 91r + 9s + t)

अभ्यास (Exercise) -
(
क) निम्न संख्या को 11 भाग करने पर प्राप्त होने वाले भागफल बिना भाग किए ही ज्ञात किजिए ( Find the quotient if the following numbers are divided by 11 without actual division ) :-
(1) 154
(2) 187
(3) 385
(4) 1485
(5) 3465
(6) 5643
(7) 14531
(8) 14641
(9) 14927
(10) 34727
(
ख) निम्न रिक्त स्थानों में उपयुक्त अंक भरें कि पूरी संख्या 11 से पूर्णतः विभाजित हो जाए ( Fill in the blank with suitable digits which make the number perfectly divisible by 11) :-
(1) 2 (- - -) 1
(2) (- - -) 4 1
(3) 6 ( - - -) 7
(4) 3 9 ( - - -) 7
(5) 8 2 8 ( - - -)
(6) ( - - -) 9 0 7
(7) 5 ( - - -) 5 0 7
(8) 8 2 8 4 ( - - -)
(9) 1 4 ( - - -) 4 1
(10) 1 3 5 ( - - -) 9 5

Poetic Form of the Sutras of Vedic Ganit (वैदिक गणित के सूत्र का काव्य रुपांतरण)

।। वैदिक-गणित के सूत्रों का काव्य रुप।। 

 वैदिक गणित के समस्त सूत्र एवं उसके उपयोग ठीक प्रकार स्मरण रहे इस उद्देश्य से अनुष्टुप छंद में उनकी रचना का यह प्रयास किया गया है

      श्री गणेशाय नमः

 अथ श्रीमच्छङ्कराचार्येण श्रीभारतीकृष्णतीर्थेनान्वेषितम वैदिकगणितसूत्राणां प्रयोजनम् व्याख्यास्याम् 

     ।। ॐ।। 

 अत्र गणितसूत्रेषु सूत्रमाद्यं विलोकनम् ।

 संख्याव्ययमेलेनं तु शुद्धाङ्केन कारयेत्।। ।। 1।। 

 एकाधिकेन पूर्वेण अन्त्योर्दशकेअपि वा। 

 सूत्राणि गुणाकारर्थम् यावदूनंतथैव च ।। ।। 2।। 

 गुणभागऋणांकार्थं दशाधारेण चिन्तयेत्। 

 सदा निखिलं नवतश्चरमं दशतः इति।। ।। 3।। 

 आश्रयेत् ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् स्थाने स्थाने सदैव हि। 

 वर्गं च वर्गमूलं च द्वन्द्वयोगेन साधयेत् ।। ।। 4।। 

 एकन्यूनेन पूर्वेण आनुरुप्येण हि तथा। 

 यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत् ।। ।। 5।। 

 ज्ञात्वा भजकतः ध्वजाकं परावर्त्य योजयेत् ।

 शिष्यते शेषसंज्ञः तु संख्याहरण प्रक्रिये।। ।। 6।। 

 नवाङ्कव्ययमेलनेन बीजाङ्कस्य साधनम्। 

 शेषाण्येङ्केनचरमेण दशांशरुपसिद्धिः।। ।। 7।। 

 यावदूनं तावदूनम् पूरणपूरणेन वा।

 केवलैः सप्तकं गुण्यात् भिन्नगणितसंक्रिये ।। ।। 8।। 

 गुणितसमुच्चयो वा समुच्चयगुणितः वा। 

 संख्यासंमिश्रक्रियार्थं अत्र आचार्य योजना।। ।। 9।। 

 सोपान्त्यद्वयमन्त्यम् वा अन्त्ययोरेव वेष्टनम्। 

 सूत्रत्रयप्रयोगाअत्र सदा ज्ञातुम् विभाज्यता।। ।।10।। 

 अनुरुप्ये शून्यमन्यात् शून्यं साम्यमुच्चये ।

 व्यष्टिसमष्टिज्ञानेन समीकार विलयनम्।। ।। 11।। 

 गुणनखंडफलं वा संख्या विभाजनफलम्। 

 आद्यमाद्येनान्त्यमन्त्येन सानन्देन साधयेत्।। ।। 12।। 

 चलनकलनेन वा लोपनस्थापनेन हि। 

 ज्ञानं गुणनखण्डस्य लभते नात्र संशयः ।।  13।। 

 शर्मदम् सूत्रसंकेतम् श्रद्धया य सदा पठेत्। 

 भृशम् सिद्धिमवाप्नोति आचार्यकृपया सह।। ।। 14।। 

 इति श्री वैदिकगणितसूत्रप्रयोजनम् समाप्तम्। 

 

Square by Duplex Method(द्वंद्व योग विधि द्वारा वर्ग) 


यह विधि ऊर्ध्वतिर्यक (Vertically and Crosswise) सूत्र का ही एक अनुप्रयोग है।

(1) एक अंक का द्वंद्व योग (Duplex of One-digit No.)
  a
का द्वंद्व योग D(a) = a²
उदाहरण :-
  3
का द्वंद्व योग D(3)= 2² = 4
4
का द्वंद्व योग D(4) = 4² = 16

(2) दो अंकों का द्वंद्व योग (Duplex of Two-digit No.)
  ab
का द्वंद्व योग D(ab) = 2(a × b)
उदाहरण :-
  23
का द्वंद्व योग D(23)= 2 (2 × 3) = 12
  34
का द्वंद्व योग D(34)= 2 (3×4) = 24

(3) तीन अंकों का द्वंद्व योग (Duplex of Three-digit No.)
  abc
का द्वंद्व योग D(abc) = 2(a × c) + b²
उदाहरण :-
  123
का द्वंद्व योग D(123)= 2 (1 × 3) + 2² = 10
  234
का द्वंद्व योग D(234)= 2 (2×4)+ 3² = 25

(4) चार अंकों का द्वंद्व योग (Duplex of Four-digit No.)
  abcd
का द्वंद्व योग D(abcd) = 2(ad) + 2(bc)
उदाहरण :-
  1234 
का द्वंद्व योग D(1234)= 2(1×4)+2(2×3) = 20
  2345 
का द्वंद्व योग D(2345)= 2(2×5)+2(3×4) = 44

।। दो-अंकों वाली संख्या का वर्ग (Square of two-digits number) ।।
अंकगणितीय उदाहरण (Arithmetic Example) - 1
(1) (34)²
= D(3) / D(3, 4) / D(4)
=  3² / 2( 3×4) / 4²
=  9 / 24 / 16
=  (9+2) / (4+1) / 6
11 5 6  (
उत्तर)
बीजगणितीय उदाहरण (Algebraic Example)
(2) (2x + 3)²
= D(2x) / D(2x, 3) / D(3)
= (2x)² / 2( 2x. 3) / 3²
= 4x² + 12x + 9 (
उत्तर)

अभ्यास (Exercise) -1
(1) (53)² (2) (73)² (3) (87)² (4) (94)²
(5) (2x - 3y)² (6) (2p + 7q)² (7) (7m - 9)²
(8) (¼p + ¾q)² (9) (sin X + cos Y)²
(10) (sin X - cos Y)²

।। तीन-अंकों वाली संख्या का वर्ग (Square of three-digits number) ।।
अंकगणितीय उदाहरण (Arithmetic Example) - 2
(1) (234)²
= D(2) / D(2, 3) / D ( 2, 3, 4) / D (3, 4) / D(4)
= 2² / 2( 2×3) / 3² + 2(2×4) / 2(3×4) / 4²
4 / 12 / 25 / 24 / 16
= (4+1) / (2+2) / (5+2) / (4+1) / 6
= 5 4, 7 5 6
बीजगणितीय उदाहरण (Algebraic Example)
(2) ( X + Y + Z)²
= D(X) / D(X, Y) / D ( X, Y, Z) / D (Y, Z) / D(Z)
= X² / 2( X×Y) / Y² + 2(X×Z) / 2(Y×Z) / Z²
= X² + 2XY + Y² + 2XZ + 2YZ + Z²
=X² + Y² + Z² + 2(XY + YZ + ZX)

अभ्यास (Exercise) - 2
(1) (123)², (2) (345) ², (3) (27. 5)², (4) (3.25)², 
(5) (2x + 3y + 4z)², (6) ( 2p - 3q - 5r)²,
(7) (½p +⅔q - ¾r)², (8) (2x + sinX + cosY)², (9) ( 4i + sinX + cosecX)².

।। चार-अंकों वाली संख्या का वर्ग (Square of four-digits number) ।।
अंकगणितीय उदाहरण (Arithmetic Example)-3
(1) (1234
= D(1) / D(1,2) / D ( 1,2, 3) / D (1, 2, 3, 4) /D(2, 3, 4) /D (3, 4) /D(4)
= 1² / 2(1×2) / 2² + 2(1×3) / 2(1×4) + 2(2×3) /3² + 2(2×4) / 2(3×4) / 4²
= 1 / 4 / 10 / 20 / 25 / 24 / 16
= 1/ (4+1)/(0+2)/(0+2)/(5+2)/(4+1)/6
1 5 2 2 7 5 6
बीजगणितीय उदाहरण (Algebraic Example)
(2) ( W + X + Y + Z)²
= D(W) / D(W, X) / D (W, X, Y) / D (W, X, Y, Z ) /D(X, Y, Z) /D (Y, Z) /D(Z)
= W² / 2(W×X) / X² + 2(W×Y) / 2(W×Z) + 2(X×Y) /Y² + 2(X×Z) / 2(Y×Z) / Z²
= W² + 2WX + X² + 2WY +2WZ +2XY + Y² 2XZ + 2YZ + Z²
= W² + X² + Y² + Z² + 2WX + 2XY + 2YZ + 2ZW

अभ्यास (Exercise) - 3
(1) (2345)², (2) (3456)², (3) (243.5)²,
(4) (1.875)², (5) (2k + 3l - 4m + 5n)²,
(6) (⅓a - ⅔b + ¾c - ¼d)²,
(7) (sinX + cosX + cosecX + secX)²,
(8) ( 2x + sinX - 3y + cosY)²

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