5. वैदिक गणित के 13 उपसूत्र
1. आनुरूप्येण -अनुरूपता के द्वारा
2. शिष्यते शेषसंज्ञः -बचे हुए को शेष कहते हैं।
3. आद्यमाद्येनान्त्यमन्त्येन-पहले को पहले से, अंतिम को अंतिम से।
4. केवलैः सप्तकं गुण्यात्-‘क’, ‘व’, ‘ल’ से 7 से गुणा करें।
5.वेष्टनम्- विभाजनीयता परीक्षण की एक विशिष्ट क्रिया का नाम।
6.यावदूनं तावदूनं-जितना कम उतना और कम।
7.यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत्- जितना कम उतना और कम करके वर्ग की योजना भी करें।
8.अन्त्योर्दशकेअपि-अंतिम अंकों का योग दस।
9.अन्त्ययोरेव-केवल अंतिम द्वारा।
10.समुच्चगुणित:-सर्व गुणन।
11.लोपनस्थापनाभ्याम्-विलोपन एवं स्थापना द्वारा।
12.विलोकनम्-अवलोकन द्वारा।
13. गुणितसमुच्चय: समुच्चयगुणित:-गुणांकों के समूहों का गुणनफल और गुणनफल के गुणांकों का योग समान होगा।
वैदिक गणित एवं सामान्य गणित के अनुप्रयोगों की तुलना
वैदिक गणित के 13 उपसुत्र-अर्थ
Upsutras of Vedic Mathematics
पिछले post में हमने 16 सूत्रों पर चर्चा किया था अब हम 13 उपसुत्रों पर बात करेंगे .....
1.आनुरुप्येण
अर्थ :अनुपात से / अनुरूपता से
2.शिष्यते शेषसंज्ञः
3. आद्यं आद्येन् अन्त्यम् अन्त्येन
अर्थ: प्रथम को प्रथम के द्वारा और अंतिम को अंतिम के द्वारा.
4.केवलैः सप्तकं गुण्यात्
अर्थ : यह सूत्र वास्तव में संख्यात्मक कूट (numeric code)है, जो कहता है 7 के केस में गुणक 143 होगा।
5.वेष्टनम्
अर्थ: आश्लेषण करके(by osculation) /आश्लेषक के द्वारा
6.यावदूनं तावदूनम्
अर्थ:जितने की कमी है उतनी और कमी करें.
7.यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत्
अर्थ:संख्या की आधार से जितनी भी कमी हो उतनी कमी और करें, और उसी कमी (या विचलन)का वर्ग भी रखें.
8.अन्त्ययोर्दशकेऽपी
अर्थ: पूर्व के अंक एक समान हों और अंतिम अंक का योग भी 10* हो।
9. अन्त्ययोरेव
अर्थ: केवल अंतिम (स्वतंत्र) पद द्वारा ;by constant term only.
10.समुच्चयगुणितः
11.लोपनस्थापनाभ्याम्
अर्थ: (एकांतर से) लोपन और स्थापना द्वारा.
प्रयोग: कठिन द्विघाती व्यंजकों का गुणनखंडन करने में,व्यंजकों का HCF ज्ञात करने में,घन समीकरणों को हल करने में, और बहु युगपत समीकरणों को हल करने में.
12.विलोकनम्
अर्थ: अवलोकन द्वारा (by mere observation)
13. गुणितसमुच्चयः समुच्चयगुणितः
अर्थ:गुणनखंडों के गुणांकों के योग का गुणनफल, गुणनफल के गुणांकों के योग के बराबर होता है।
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