01.01. वैदिक गणित की विशेषताएँ

वैदिक गणित की विशेषताएँ  

(1) वैदिक गणित, गणित पढ़ने में आत्मविश्वास  बढाता है और विद्यार्थी को गणित रुचिकर लगने लगती है।

(2) ये सूत्र सहज ही में अर्थात आसानी से समझ में आ जाते हैं। उनका अनुप्रयोग अर्थात प्रयोग करना सरल है। यह सूत्र सहज ही याद हो जाते हैं। सारी प्रक्रिया आसानी से मौखिक रूप नहीं की जा सकती है। 

(3) ये सूत्र गणित की हर शाखा में व्यापक रूप से प्रयोग किए जा सकते हैं।

(4) प्रचलित विधियों की तुलना में वैदिक गणित की विधियाँ काफी कम समय लेती हैं।

(5) छोटी उम्र के बच्चे भी इन सूत्रों को आसानी से याद कर और समझ सकते हैं। इन सूत्रों की सहायता से वे प्रश्नों को मौखिक हल करके आसानी से उत्तर बता सकते हैं। 

(6) केवल 9 तक पहाड़ा याद रखने की आवश्यकता है।

(7) वैदिक गणित का संपूर्ण पाठ्यक्रम प्रचलित गणितीय पाठ्यक्रम की तुलना में काफी छोटा है जिसके कारण वह है पूरा होने में काफी कम समय लेता है। 

(8) ऐसा भी संभव है कि आप अपने उत्तर की जांच कर सकें।  

(9) संपूर्ण गणित मात्र 16 सूत्रों और 13 उपसुत्रों पर आधारित है। जो याद रखने और प्रयोग करने में भी आसान हैं।

(10) वैदिक गणित के प्रयोग से तर्कशक्ति की वृद्धि होती है।



जिस प्रकार परमात्मा, आत्माओं में सर्वोपरि है । उसी प्रकार गणित, सभी शिल्पादि विद्याओं में सर्वोपरि है । जिस प्रकार सर्प के सिर पर मणि शोभा देती है ठीक उसी प्रकार गणित भी सभी शास्त्रों में सर्वोपरि माना गया है।

यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तथा वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि स्थितम्॥ (वेदांग ज्योतिष)
( जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, उसी प्रकार सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे ऊपर है।)

जिस प्रकार सांख्य शास्त्र ईश्वर की प्राप्ति का साधन है। ठीक उसी प्रकार संख्या शास्त्र अर्थात गणित भी उसी ईश्वर के समान गण वाला है। अतः गणित और ईश्वर दोनों एक सामान कैसे हैं? आइए हम प्रयास आपको बताने का करते हैं।

योगो ज्ञानं तथा सांख्यं
      विद्या: शिल्पादि कर्म च ।
वेदा:शास्त्राणि 
     विज्ञानमेतत्सर्वं जनार्दनात् ।।

योगशास्त्र, ज्ञान उपासना, सांख्यशास्त्र (अर्थात गणित), विद्या-वैशेषिकादि, तन्त्र, शिल्पादि कर्म, कर्मविद्या, वेद, शास्त्र, विज्ञान ये सब भगवान् जनार्दन से उत्पन्न हैं।
अतः योगेश्वर भगवान विष्णु जनार्दन सभी प्रकार की ज्ञान के स्रोत है।

सम्यक ख्यायते इति संख्या। अर्थात सांख्या शब्द की उत्पत्ति संख्या शब्द से हुई है। संख्या का अर्थ होता है गिनती करना।


समस्त फिजिकल एंड स्परक्चुवल नॉलेज हमें वेदों से प्राप्त होती है अर्थात वेद हीं समस्त ज्ञान के स्रोत है।

अचिंत्याव्यक्तरूपाय निर्गुणाय गुणाय।
समस्तजगदाधारमूर्तये ब्रह्मणै नमः ।।
अर्थात
अचिंत्य-अव्यक्त-रूपाय निर्गुणाय गुणाय।
समस्त-जगद-आधार-मूर्तये ब्रह्मणै नमः ।।

अचिंत्य अव्यक्त निर्गुण गुणात्मा

चिंत्य का अर्थ है जिसके बारे में चिंतन किया जा सके। जिसे समझा जा सके।
अचिंत्य का अर्थ है जिसके बारे में चिंतन न किया जा सके। अर्थात कल्पना सेेेेे दूर या कल्पना से परे अर्थात् परमात्मा।

व्यक्त का अर्थ है जो दिखाई दे अर्थात जिसका व्यक्त (वर्णित) किया जा सके।
'अ'व्यक्त का अर्थ है जो दिखाई न दे अर्थात जिसका व्यक्त (वर्णित) नहीं किया जा सके।

निर्गुणाय –> जिसमें कोई गुण या विशेषताएं ही नहीं हो।
गुणात्मा–> जिसमें गुण या विशेषताएं हो।



व्यक्त गणित –> वह गणित जिसमें फिजिकल नंबर जैसे 1, 2, 3, 4 आदि उपयोग किए जाते हैं।

'अ'व्यक्त गणित –> वह गणित जिसमें नंबर तो है परंतु फिजिकल नंबर नहीं हैं अव्यक्त गणित कह जाता है। इसमें अव्यक्त नंबर या अक्षर जैसे अ, क, आ, ग तथा अंग्रेजी a, b, c व d आदि उपयोग किया जाता है। इस प्रकार हम अलजेब्रा को अव्यक्त गणित कह सकते हैं।

चिंत्य  गणित का अर्थ है जिसके बारे में चिंतन किया जा सके। जिसे समझा जा सके। सभी वास्तविक संख्यााएं जिनकेेे बारे में समझा जा सकता है चिंत्य गणित के अंतर्गत आती हैं।

अचिंत्य गणित का अर्थ है जिसके बारे में चिंतन न किया जा सके अर्थात जिसे समझा न जा सके। सभी अवास्तविक संख्यााएं जिनकेेे बारे में समझा नहीं जा सकता है अचिंत्य गणित के अंतर्गत आती हैं।
 imaginary Numbers like complex number a+ib or 2+3i

चिंत्य का अर्थ है जिसके बारे में चिंतन किया जा सके। जिसे समझा जा सके। 
अचिंत्य गणित का अर्थ है जिसके बारे में चिंतन न किया जा सके। अर्थात कल्पना सेेेेे दूर या कल्पना से परे अर्थात् परमात्मा।
अव्यक्त
निर्गुण
गुणात्मा

निर्गुणाय –> जिसमें कोई गुण या विशेषताएं ही नहीं हो। अब हम आपको बताने का प्रयास करते हैं कि ज्यामिति एक ऐसा विषय है जिसकी शुरुआत बिंदु अर्थात पॉइंट से होती है । यह बिंदु अर्थात पॉइंट क्या है ? हम इसे विमाहीन अर्थात डाइमेंशनलेस कहते हैं। इसमें ना तो लंबाई होती है, ना चौड़ाई होती है और ना ही ऊंचाई होती है।लेकिन बिंदु होता है, परंतु हम इसके बारे में सही प्रकार से व्याख्या नहीं कर सकते। अतः इसे हम निर्गुणा कह सकते हैं।

गुणात्मा–> जिसमें गुण या विशेषताएं हो।

गणित
चिंत्य का अर्थ है चिंतनीय, comprehensible, understandable, prsudable 

व्यक्त का अर्थ है manifestation, clearance, appearance, clear vision or clear view

अचिंत्य का अर्थ है अचिंतनीय, which is not comprehensible, which is not understandable, which is not prsudable 

अव्यक्त का अर्थ है which is beyond manifestation,  which is beyond clearance,  which is beyond appearance, which is beyond clear vision or clear view

चिंत्य = real numbers
अ'चिंत्य = imaginary no (real numbers with अ,आ,इ,ई)
अचिंत्य = complex number (RN+IN)

अ+व्य+क्त
व्यक्त =clearly seen are specific numbers like 1, 2, 15, 100
अव्यक्त = specific numbers like 1, 2, 15, 100 with अ,आ,इ,ई algebra
अव्यक्त = statistics probability etc

निर्गुण –> निर्गुण शब्द का उपयोग बिंदु के लिए हुआ है। जब दो बिंदुओं को मिलाया जाता है तो रेखा बनती है। वह सीधी हो या वक्र इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी प्रकार यदि तीन बिंदु मिलते हैं तो त्रिभुज और 4 या उससे ज्यादा मिलने पर अन्यान्य फिगर बनती हैं।

गुणात्म का अर्थ गुणा से लिया जाता है जिसका इधर है गुणा करना है यह गुणा भाग जोड़ और घटा तीनों का ही रूप हैै। धनुष में जो प्रत्यंचा होती है उसे भी गुणा कहते हैंं। इसी प्रकार कुदरत की जीवा को भी गुणा कहतेेे हैं।

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