RamanujanSrinivasa-Color800pxश्रीनिवास रामानुजन् इयंगर (तमिल ஸ்ரீனிவாஸ ராமானுஜன் ஐயங்கார்) 

(22 दिसम्बर, 1887 – 26 अप्रैल, 1920) 

राष्ट्रीय गणित दिवस का इतिहास?

साल 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रामानुजन के जीवन और उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस घोषित किया था। 2012 के भारत के डाक टिकट में श्रीनिवास रामानुजन की तस्वीरों को लगाया गया था। साल 2017 में 22 दिसंबर को आंध्र प्रदेश के चित्तूर में कुप्पम में रामानुजन मठ पार्क खोला गया था।

राष्ट्रीय गणित दिवस के लिए कोई अलग से थीम नहीं बनाई जाती है। ये दिन लोगों को गणित के महत्व और क्षेत्र में हुई प्रगति और विकास के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर

श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर एक महान भारतीयगणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। गणित में बिना किसी विशेष प्रशिक्षण के इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिया। 

श्रीनिवास रामानुजन ने अपनी प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत खोज की वरन गणित के क्षेत्र में भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया।

बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान श्रीनिवास रामानुजन ने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनके संकलन की अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध की जा चुकी हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। 

आपको जानकर हैरानी होगी कि हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है।

महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से 400 किमी दूर इरोड नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम कोमलतम्मल और पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था। इनकी माता एक साधारण ग्रहणी थी तो पिता पवित्र तीर्थस्थल कुंभकोणम के एक कपड़ा व्यापारी की दुकान में मुनीम का कार्य करते थे। पाँच वर्ष की आयु में रामानुजन का दाखिला कुंभकोणम के प्राथमिक विद्यालय में करा दिया गया।


ॐॐॐॐॐॐ


इनकी प्रारंभिक शिक्षा की एक रोचक घटना है। गणित के अध्यापक कक्षा में भाग की क्रिया समझा रहे थे। उन्होंने प्रश्न किया कि अगर तीन केले तीन विद्यार्थियों में बांटे जाये तो हरेक विद्यार्थी के हिस्से में कितने केले आयेंगे? विद्यार्थियों ने तत्काल उत्तर दिया कि हरेक विद्यार्थी को एक-एक केला मिलेगा। इस प्रकार अध्यापक ने समझाया कि अगर किसी संख्या को उसी संख्या से भाग दिया जाये तो उसका उत्तर एक होगा। लेकिन तभी कोने में बैठे रामानुजन ने प्रश्न किया कि, यदि कोई भी केला किसी को न बाँटा जाए, तो क्या तब भी प्रत्येक विद्यार्थी को एक केला मिल सकेगा? सभी विद्यार्थी इस प्रश्न को सुनकर हँस पड़े, क्योंकि उनकी दृष्टि में यह प्रश्न मूर्खतापूर्ण था। लेकिन बालक रामानुजन द्वारा पूछे गए इस गूढ़ प्रश्न पर गणितज्ञ सदियों से विचार कर रहे थे। प्रश्न था कि अगर शून्य को शून्य से विभाजित किया जाए तो परिणाम क्या होगा? भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य ने कहा था कि अगर किसी संख्या को शून्य से विभाजित किया जाये तो परिणाम `अनन्त’ होगा। रामानुजन ने इसका विस्तार करते हुए कहा कि शून्य का शून्य से विभाजन करने पर परिणाम कुछ भी हो सकता है अर्थात् वह परिभाषित नहीं है। रामानुजन की प्रतिभा से अध्यापक बहुत प्रभावित हुए

प्रारंभिक शिक्षा के बाद इन्होंने हाई स्कूल में प्रवेश लिया। यहाँ पर तेरह वर्ष की अल्पावस्था में इन्होने ‘लोनी’ कृत विश्व प्रसिद्ध ‘त्रिकोणमिति’ को हल किया और पंद्रह वर्ष की अवस्था में जार्ज शूब्रिज कार कृत `सिनोप्सिस ऑफ़ एलिमेंट्री रिजल्टस इन प्योर एण्ड एप्लाइड मैथेमैटिक्स’ का अध्ययन किया। इस पुस्तक में दी गयी लगभग पांच हज़ार प्रमेयों को रामानुजन ने सिद्ध किया और उनके आधार पर नए प्रमेय विकसित किये। इसी समय से रामानुजन ने अपनी प्रमेयों को नोटबुक में लिखना शुरू कर दिया था। हाई स्कूल में अध्ययन के लिए रामानुजन को छात्रवृत्ति मिलती थी परंतु रामानुजन के द्वारा गणित के अलावा दूसरे सभी विषयों की उपेक्षा करने पर उनकी छात्रवृत्ति बंद कर दी गई। उच्च शिक्षा के लिए रामानुजन मद्रास विश्वविद्यालय गए परंतु गणित को छोड़कर शेष सभी विषयों में वे अनुत्तीर्ण हो गए। इस तरह रामानुजन की औपचारिक शिक्षा को एक पूर्ण विराम लग गया। लेकिन रामानुजन ने गणित में शोध करना जारी रखा।

कुछ समय उपरांत इनका विवाह हो गया गया और वे आजीविका के लिए नौकरी खोजने लगे। इस समय उन्हें आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा। लेकिन नौकरी खोजने के दौरान रामानुजन कई प्रभावशाली व्यक्तियों के सम्पर्क में आए। ‘इंडियन मेथमेटिकल सोसायटी’ के संस्थापकों में से एक रामचंद्र राव भी उन्हीं प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे। रामानुजन ने रामचंद्र राव के साथ एक वर्ष तक कार्य किया। इसके लिये इन्हें 25 रू. महीना मिलता था। इन्होंने ‘इंडियन मेथमेटिकल सोसायटी’ की पत्रिका (जर्नल) के लिए प्रश्न एवं उनके हल तैयार करने का कार्य प्रारंभ कर दिया। सन् 1911 में बर्नोली संख्याओं पर प्रस्तुत शोधपत्र से इन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली और मद्रास में गणित के विद्वान के रूप में पहचाने जाने लगे। सन् 1912 में रामचंद्र राव की सहायता से मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा विभाग में लिपिक की नौकरी करने लगे। सन् 1913 में इन्होंने जी. एम. हार्डी को पत्र लिखा और उसके साथ में स्वयं के द्वारा खोजी प्रमेयों की एक लम्बी सूची भी भेजी।

यह पत्र हार्डी को सुबह नाश्ते के टेबल पर मिले। इस पत्र में किसी अनजान भारतीय द्वारा बहुत सारे प्रमेय बिना उपपत्ति के लिखे थे, जिनमें से कई प्रमेय हार्डी पहले ही देख चुके थे। पहली बार देखने पर हार्डी को ये सब बकवास लगा। उन्होंने इस पत्र को एक तरफ रख दिया और अपने कार्यों में लग गए परंतु इस पत्र की वजह से उनका मन अशांत था। इस पत्र में बहुत सारे ऐसे प्रमेय थे जो उन्होंने न कभी देखे और न सोचे थे। उन्हें बार-बार यह लग रहा था कि यह व्यक्ति या तो धोखेबाज है या फिर गणित का बहुत बड़ा विद्वान। रात को हार्डी ने अपने एक शिष्य के साथ एक बार फिर इन प्रमेयों को देखा और आधी रात तक वे लोग समझ गये कि रामानुजन कोई धोखेबाज नहीं बल्कि गणित के बहुत बड़े विद्वान हैं, जिनकी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाना आवश्यक है। इसके बाद हार्डी और रामानुजन में पत्रव्यवहार शुरू हो गया। हार्डी ने रामानुजन को कैम्ब्रिज आकर शोध कार्य करने का निमंत्रण दिया। रामानुजन का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। वह धर्म-कर्म को मानते थे और कड़ाई से उनका पालन करते थे। वह सात्विक भोजन करते थे। उस समय मान्यता थी कि समुद्र पार करने से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। इसलिए रामानुजन ने कैम्ब्रिज जाने से इंकार कर दिया। लेकिन हार्डी ने प्रयास जारी रखा और मद्रास जा रहे एक युवा प्राध्यापक नेविल को रामानुजन को मनाकर कैम्ब्रिज लाने के लिए कहा। नेविल और अन्य लोगों के प्रयासों से रामानुजन कैम्ब्रिज जाने के लिए तैयार हो गए। हार्डी ने रामानुजन के लिए केम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में व्यवस्था की।

जब रामानुजन ट्रिनिटी कॉलेज गए तो उस समय पी.सी. महलानोबिस [प्रसिद्ध भारतीय सांख्यिकी विद] भी वहां पढ़ रहे थे। महलानोबिस रामानुजन से मिलने के लिए उनके कमरे में पहुंचे। उस समय बहुत ठंड थी। रामानुजन अंगीठी के पास बैठे थे। महलानोबिस ने उन्हें पूछा कि रात को ठंड तो नहीं लगी। रामानुजन ने बताया कि रात को कोट पहनकर सोने के बाद भी उन्हें ठंड लगी। उन्होंने पूरी रात चादर ओढ़ कर काटी थी क्योंकि उन्हें कम्बल दिखाई नहीं दिया। महलानोबिस उनके शयन कक्ष में गए और पाया कि वहां पर कई कम्बल हैं। अंग्रेजी शैली के अनुसार कम्बलों को बिछाकर उनके ऊपर चादर ढकी हुई थी। जब महलानोबिस ने इस अंग्रेजी शैली के बारे में बताया तो रामानुजन को अफ़सोस हुआ। वे अज्ञानतावश रात भर चादर ओढ़कर ठंड से ठिठुरते रहे। रामानुजन को भोजन के लिए भी कठिन परेशानी से गुजरना पड़ा। शुरू में वे भारत से दक्षिण भारतीय खाद्य सामग्री मंगाते थे लेकिन बाद में वह बंद हो गयी। उस समय प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था। रामानुजन सिर्फ चावल, नमक और नीबू-पानी से अपना जीवन निर्वाह करने लगे। शाकाहारी होने के कारण वे अपना भोजन खुद पकाते थे। उनका स्वभाव शांत और जीवनचर्या शुद्ध सात्विक थी।

रामानुजन ने गणित में सब कुछ अपने बलबूते पर ही किया। इन्हें गणित की कुछ शाखाओं का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था पर कुछ क्षेत्रों में उनका कोई सानी नहीं था। इसलिए हार्डी ने रामानुजन को पढ़ाने का जिम्मा स्वयं लिया। स्वयं हार्डी ने इस बात को स्वीकार किया कि जितना उन्होंने रामानुजन को सिखाया उससे कहीं ज्यादा रामानुजन ने उन्हें सिखाया। सन् 1916 में रामानुजन ने केम्ब्रिज से बी. एस-सी. की उपाधि प्राप्त की।

रामानुजन और हार्डी के कार्यों ने शुरू से ही महत्वपूर्ण परिणाम दिये। सन् 1917 से ही रामानुजन बीमार रहने लगे थे और अधिकांश समय बिस्तर पर ही रहते थे। इंग्लैण्ड की कड़ी सर्दी और कड़ा परिश्रम उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हुई। इनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा और उनमें तपेदिक के लक्षण दिखाई देने लगे। इधर उनके लेख उच्चकोटि की पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे थे। सन् 1918 में, एक ही वर्ष में रामानुजन को कैम्ब्रिज फिलोसॉफिकल सोसायटी, रॉयल सोसायटी तथा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज तीनों का फेलो चुन गया। इससे रामानुजन का उत्साह और भी अधिक बढ़ा और वह शोध कार्य में जोर-शोर से जुट गए। सन् 1919 में स्वास्थ बहुत खराब होने की वजह से उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा।

रामानुजन की स्मरण शक्ति गजब की थी। वे विलक्षण प्रतिभा के धनी और एक महान गणितज्ञ थे। एक बहुत ही प्रसिद्ध घटना है। जब रामानुजन अस्पताल में भर्ती थे तो डॉ. हार्डी उन्हें देखने आए। डॉ. हार्डी जिस टैक्सी में आए थे उसका नम्बर था 1729 । यह संख्या डॉ. हार्डी को अशुभ लगी क्योंकि 1729 = 7 x 13 x 19 और इंग्लैण्ड के लोग 13 को एक अशुभ संख्या मानते हैं। परंतु रामानुजन ने कहा कि यह तो एक अद्भुत संख्या है। यह वह सबसे छोटी संख्या है, जिसे हम दो घन संख्याओं के जोड़ से दो तरीके में व्यक्त कर सकते हैं। (1729 = 12x12x12 + 1x1x1,और 1729 = 10x10x10 + 9x9x9)।

सन् 1903 से 1914 के बीच, कैम्ब्रिज जाने से पहले रामानुजन अपनी `नोट बुक्स’ में तीन हज़ार से ज्यादा प्रमेय लिख चुके थे। उन्होंने ज्यादातर अपने निष्कर्ष ही दिए थे और उनकी उपपत्ति नहीं दी। सन् 1967 में प्रोफेसर ब्रूस सी. बर्नाड्ट को जब ‘रामानुजन नोट बुक्स’ दिखाई गयी तो उस समय उन्होंने इस पुस्तक में कोई रुचि नहीं ली। बाद में उन्हें लगा कि वह रामानुजन के प्रमेयों की उत्पत्तियाँ दे सकते हैं। प्रोफेसर बर्नाड्ट ने अपना पूरा ध्यान रामानुजन की पुस्तकों के शोध में लगा दिया। उन्होंने रामानुजन की तीन पुस्तकों पर 20 वर्षों तक शोध किया।

सन् 1919 में इंग्लैण्ड से वापस आने के पश्चात् रामानुजन 3 महीने मद्रास, 2 महीने कोदमंडी और 4 महीने कुंभकोणम में रहे। उनकी पत्नी ने उनकी बहुत सेवा की। पति-पत्नी का साथ बहुत कम समय तक रहा। रामानुजन के इंग्लैंड जाने से पूर्व वे एक वर्ष तक उनके साथ रही और वहां से आने के एक वर्ष के अन्दर ही परमात्मा ने पति को सदा के लिए उनसे छीन लिया। उन्हें माँ होने का सुख भी प्राप्त नहीं हुआ। 26 अप्रैल 1920 को 32 वर्ष 4 महीने और 4 दिन की अल्पायु में रामानुजन का शरीर परब्रह्म में विलीन हो गया।

गणितीय कार्य एवं उपलब्धियाँ

रामानुजन ने इंग्लैण्ड में पाँच वर्षों तक मुख्यतः संख्या सिद्धान्त के क्षेत्र में काम किया।

सूत्र

रामानुजन् ने निम्नलिखित सूत्र प्रतिपादित किया-

 1+\frac{1}{1\cdot 3} + \frac{1}{1\cdot 3\cdot 5} + \frac{1}{1\cdot 3\cdot 5\cdot 7} + \frac{1}{1\cdot 3\cdot 5\cdot 7\cdot 9} + \cdots + {{1\over 1 + {1\over 1 + {2\over 1 + {3\over 1 + {4\over 1 + {5\over 1 + \cdots }}}}}}} = \sqrt{\frac{e\cdot\pi}{2}}

इस सूत्र की विशेषता यह है कि यह गणित के दो सबसे प्रसिद्ध नियतांकों ( ‘पाई’ तथा ‘ई’ ) का सम्बन्ध एक अनन्त सतत भिन्न के माध्यम से व्यक्त करता है।

पाई के लिये उन्होने एक दूसरा सूत्र भी (सन् १९१० में) दिया था-

 \pi = \frac{9801}{2\sqrt{2} \displaystyle\sum^\infty_{n=0} \frac{(4n)!}{(n!)^4} \times \frac{[1103 + 26390n]}{(4 \times 99)^{4n}}}

रामानुजन संख्याएँ

‘रामानुजन संख्या’ उस प्राकृतिक संख्या को कहते हैं जिसे दो अलग-अलग प्रकार से दो संख्याओं के घनों के योग द्वारा निरूपित किया जा सकता है।

उदाहरण – 9^3 + 10^3 = 1^3 + 12^3 = 1729.

इसी प्रकार,

  • 2^3 + 16^3 = 9^3 + 15^3 = 4 104
  • 10^3 + 27^3 = 19^3 + 24^3 = 20 683
  • 2^3+ 34^3 = 15^3 + 33^3 = 39 312
  • 9^3 + 34^3 = 16^3 + 33^3 = 40 033

अतः 1729, 4104, 20683, 39312, 40033 आदि रामानुजन संख्याएं हैं।

सम्मान

राष्ट्रीय गणित दिवस

भारत में प्रत्येक वर्ष 22 दिसम्बर को महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन की स्मृति में ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ के रूप में मनाया जाता है ।


प्रतिवर्ष महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती (22 दिसंबर)को राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) के रूप में मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु

रामानुजन के बारे में

Srinivasa-Ramanujan

  • श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड (मद्रास प्रेसीडेंसी) में हुआ था और  26 अप्रैल, 1920 को मात्र 32 वर्ष की आयु में तमिलनाडु के कुंभकोणम में उनकी मृत्यु हुई थी।
  • रामानुजन ने काफी कम उम्र में ही गणित का कौशल हासिल कर लिया था, मात्र 12 वर्ष की आयु में उन्होंने त्रिकोणमिति में महारत हासिल कर ली थी।
  • वर्ष 1903 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय की एक छात्रवृत्ति प्राप्त की, किंतु अगले ही वर्ष यह छात्रवृत्ति वापस ले ली गई, क्योंकि वे गणित की तुलना में किसी अन्य विषय पर अधिक ध्यान नहीं दे रहे थे।
  • वर्ष 1913 में उन्होंने ब्रिटिश गणितज्ञ गॉडफ्रे एच. हार्डी के साथ पत्र-व्यवहार शुरू किया, जिसके बाद वे ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज़ चले गए।
  • वर्ष 1918 में लंदन की रॉयल सोसाइटी के लिये उनका चयन हुआ।
  • रामानुजन ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी के सबसे कम उम्र के सदस्यों में से एक थे और कैम्ब्रिज़ विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने जाने वाले पहले भारतीय थे।

गणित में योगदान

सूत्र और समीकरण

रामानुजन ने अपने 32 वर्ष के अल्प जीवनकाल में लगभग 3,900 परिणामों (समीकरणों और सर्वसमिकाओं) का संकलन किया है। उनके सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में पाई (Pi) की अनंत श्रेणी शामिल थी।

उन्होंने पाई के अंकों की गणना करने के लिये कई सूत्र प्रदान किये जो परंपरागत तरीकों से अलग थे।

खेल सिद्धांत

उन्होंने कई चुनौतीपूर्ण गणितीय समस्याओं को हल करने के लिये नवीन विचार प्रस्तुत किये, जिन्होंने खेल सिद्धांत के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

खेल सिद्धांत में उनका योगदान विशुद्ध रूप से अंतर्ज्ञान पर आधारित है और इसे अभी तक गणित के क्षेत्र में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

रामानुजन की पुस्तकें

वर्ष 1976 में जॉर्ज एंड्रयूज ने ट्रिनिटी कॉलेज की लाइब्रेरी में रामानुजन की एक नोटबुक की खोज की थी। बाद में इस नोटबुक को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया था।

सूत्र(Formula)

रामानुजन के द्वारा प्रतिपादित के किए गए कुछ सूत्र

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π के लिए भी उन्होंने एक सूत्र संपादित किया था.

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रामानुजन संख्याएं 

रामानुजन संख्या उस प्राकृत संख्या को कहा जाता है, जिसे दो अलग-अलग प्रकार से दो संख्याओं का दो संख्याओं के घनो का योग को निरूपित करता है.

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अतः 1729, 4104, 20683, 39312, 40033 आदि यह सभी रामानुजन संख्याएं हैं।


रामानुजन नंबर

गणित में रामानुजन का सबसे बड़ा योगदान रामानुजन संख्या यानी 1729 को माना जाता है।

यह ऐसी सबसे छोटी संख्या है, जिसको दो अलग-अलग तरीके से दो घनों के योग के रूप में लिखा जा सकता है। 

1729, 10 और 9 के घनों का योग है- 10 का घन है 1000 और 9 का घन है 927 और इन दोनों को जोड़ने से हमें 1729 प्राप्त होता है। 

1729, 12 और 1 के घनों का योग भी है- 12 का घन है 1728 और 1 का घन है 1 और इन दोनों को जोड़ने से हमें 1729 प्राप्त होता है।

अन्य योगदान: 

रामानुजन के अन्य उल्लेखनीय योगदानों में हाइपर जियोमेट्रिक सीरीज़, रीमान सीरीज़, एलिप्टिक इंटीग्रल, माॅक थीटा फंक्शन और डाइवर्जेंट सीरीज़ का सिद्धांत आदि शामिल हैं।

रामानुजन का जादुई वर्ग

रामानुजन ने एक जादुई वर्ग भी बनाया था। जो देखने में एक सामान्य square जैसा ही दिखता है। लेकिन इसे रामानुजन ने बनाया था। इसलिए कुछ न कुछ तो, खास होना ही चाहिये।

                    

      अगर आप इस वर्ग के column और row को अलग-अलग जोड़ें। तो प्रत्येक बार आपको योगफल 139 मिलेगा। अगर आप इसके Diagonal को भी जोड़ें। तो अभी 139 ही मिलेगा। अगर आप इसमें बन रहे, चार छोटे square को भी अलग-अलग जोड़ें। तो भी आपको 139 ही मिलेगा।

      इस वर्ग की सबसे विशेष बात यह है। इस वर्ग की पहली row में जो संख्याये लिखी है। असल में, यह रामानुजन के जन्म की तारीख 22 दिसंबर 1887 है। इसका योगफल भी 139 ही है।

                           

 जहाँ पर,

 A        B     C  D

 |        |        |   |

DD / MM / YYYY

      रामानुजन के इस तरीके से, आप अपनी Date of Birth का भी वर्ग बना सकते हैं।

     रामानुजन ने शून्य और अनंत को हमेशा ध्यान में रखा। उसको समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया। रामानुजन की पुस्तक में लिखी गई। बहुत सी theorem बिना derivation के होती थी। मतलब वह theorem का proof उसमें नहीं लिखते थे। इसलिए उन पर कुछ लोगों के द्वारा आरोप भी लगाया गया। उन्हें अपनी theorem का derivation पता ही नहीं है। जो कि गलत था।

    Mathematician Bruce C.Berndt ने इस संबंध में रामानुजन के कार्यों का गंभीरता से review किया। उन्होंने कहा कि अगर वह चाहते तो अपनी theorem का proof नोटबुक में लिख सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा न करना चुना। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं।

       हो सकता है, उस समय पेपर बहुत महंगे होते थे। या फिर यह भी हो सकता है। उनकी खोज कहीं चोरी न हो जाए। इस कारण, वह अपने result का derivation नोटबुक में न लिखते हो।

      रामानुजन एक धार्मिक व आध्यात्मिक व्यक्ति थे। उन्होंने जो भी किया। उसका श्रेय अपनी कुलदेवी नामगिरी को दिया। जिन्हें माता लक्ष्मी का एक रूप माना जाता था।


डाक टिकट स्टीकर

हाल ही में श्रीनिवास रामानुजम के नाम और फोटो के साथ भारतीय डाक का टिकट लांच किया गया है

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प्रमुख उपलब्धियां:-

  •  रामानुजन् लैंडॉ- स्थिरांक
  • रामानुजन्-सोल्डनर स्थिरांक
  • रामानुजन् थीटा फलन
  • 1729 नंबर को हार्डी-रामानुजन नंबर
  • रॉजर्स-रामानुजन् तत्समक
  • रामानुजन् अभाज्य
  • कृत्रिम थीटा फलन
  •  रामानुजन् योग
संक्षिप्त जीवन परिचय
श्रीनिवास रामानुजन-एक नजर में
पूरा नाम – श्रीनिवास अय्यंगर रामानुज
पिता – श्रीनिवास अय्यंगर
माता – कोमलतम्मल
जन्म-तिथि – 22 दिसंबर 1887
जन्म-स्थान – इरोड,कोयम्बटूर, तमिलनाडु
पत्नी – जानकी
कार्यक्षेत्र – गणित
शिक्षा – कैंब्रिज विश्वविद्यालय
मृत्यु – 26 अप्रैल 1920
मृत्यु स्थान – चटपट चेन्नई तमिल नाडु
मृत्यु का कारण – क्षय रोग (टी० बी०)

Srinivasaश्रीनिवास रामानुजन-एक नजर में Ramanujan

श्रीनिवास रामानुजन-एक नजर में

पूरा नाम 

(Full Name)

श्रीनिवास अय्यंगर रामानुजन

पिता 

(Father)

श्रीनिवास अय्यंगर

माता 

(Mother)

कोमलतम्मल

जन्म-तिथि

 (Date of Birth)

22 दिसंबर 1887

जन्म-स्थान

 (Birth Place)

इरोड,कोयम्बटूर, तमिलनाडु

पत्नी

 (Wife)

जानकी

कार्यक्षेत्र 

(Expertise in)

गणित

उपलब्धियां (Achievements)

लैडॉ- रामानुजन स्थिरॉक

रामानुजन-सोल्डनर स्थिरांक

रामानुजन थीटा फलन

रॉजर्स-रामानुजन तत्समक

रामानुजन अभाज्य

कृत्रिम थीटा फलन

रामानुजन योग

शिक्षा

 (Education)

कैंब्रिज विश्वविद्यालय

डॉक्टरी सलाहकार

(Medical Consultant)

गोडफ्रे हेरॉल्ड हार्डी व जॉन इडेंसर लिटलवुड

मृत्यु 

(Death)

26 अप्रैल 1920

मृत्यु स्थान

(Death Place)

चटपट चेन्नई तमिल नाडु

मृत्यु का कारण

(Reason for Death)

क्षय रोग