लीलावती, क्षेपक और परिभाषा प्रकरण
🌺★★★★ 🌺आर्यभट्ट कृत लीलावती 🌺★★★★🌺
लीलावती ।
भाषाटीकासहित।
🌺★★★★ 🌺आर्यभट्ट कृत लीलावती 🌺★★★★🌺
प्रीति भक्तजनस्य यो जनयते विघ्नं विनिघ्नन्स्मृत- स्तं वृन्दारकवृन्दवंदितपदं नत्वा मतंगाननम् ॥
पाटी सगणितस्य वच्मि चतुरप्रीतिप्रदां प्रस्फुटां संक्षिप्ताक्षरको मलामलपदैर्लालित्य लीलावतीम् ॥ 1 ॥
अर्थ:- जो स्मरण करते ही विनोंको नाश करके अपने भक्तोंकी प्रीतिको उत्पन्न करते है; देवताओंके समूहों करके अभिवादन किये गये हैं चरण जिनके; उन ऐसे हस्तीका ही मुखवाले श्रीगणेशजीको नमस्कार करके मैं भास्कराचार्य अत्यन्त स्फुट गणित आदि शास्त्र के जाननेवाले पुरुषों को प्रसन्नता देनेवाली, बहुत अर्थ - प्रतिपादक थोडे अक्षर और शुद्धपदोंके सौंदर्य्यसे भरी हुई लीलावती नामवाली गणितकी पाटीको प्रकाशित करता हूं ॥ 1 ॥
वराटकानां दशकद्वयं यत्सा काकिणी ताश्च पणश्चतस्रः ।
ते षोडश द्रम्म इहावगम्यो द्रम्मैस्तथा षोडशभिश्च निष्कः ।।2।।
अर्थः-बीस 20 वराटक ( कौडी) को 1 काकिणी कहते हैं, तिन 4 चार काकिणियोंका एक पण होता है, तिन हीं 16 सोलह पणोंका एक दम्म होता है तथा इस गणितशास्त्र में 16 सोलह इम्मका एक निष्क होता है ॥ 2 ॥
20 बीस वराटक ( कौडी) = एक काकिणी
तिन 4 चार काकिणियों का = एक पण
16 सोलह पण = एक दम्म
16 सोलह दम्म = एक निष्क
तुल्या यवाभ्यां कथितात्र गुआ वल्लस्त्रिगुओ धरणं च तेऽष्टौ ॥ गद्याणकस्तद्वयमिंद्र तुल्यै १४र्वलैस्तथैको घटकः प्रदिष्टः ॥ 3 ॥
अर्थ :- इस गणितशास्त्रमें दो 2 यव (जौ) के समान एक 1 गुंजा ( रत्ती ) होती है, 3 रत्तीका 1 एक वल्ल होता है, 8 आठ वल्लका 1 धरण होता है, 2 दो धरणका एक गद्याणक कहाता है, 14 चौदह वल्लका 1 घटक कहाता है ॥ 3 ॥
दो 2 यव (जौ) = एक 1 गुंजा ( रत्ती )
3 रत्तीका = 1 एक वल्ल
8 आठ वल्लका = 1 धरण
2 दो धरणका = एक गद्याणक
14 चौदह वल्लका = 1 घटक
दशार्द्धगुंजं प्रवदंति माषं माषाह्वयैः षोडशभिश्च कर्षम् ॥
कर्षैश्चतुर्भिश्च पलं तुलाज्ञाः कर्षं सुवर्णस्य सुवर्णसंज्ञम् ॥ 4॥
अर्थः- तोलके जाननेवाले 5 पांच रत्तीका 1 एक माषा कहते हैं, 16 सोलह माषोंका 1 कर्ष कहते हैं, 4 कर्षका 1 एक पल कहते हैं और कर्षभर सुवर्णको सुवर्ण ही कहते हैं ।।4।।
5 पांच रत्तीका =1 एक माषा कहते हैं,
16 सोलह माषोंका = 1 कर्ष कहते हैं,
4 कर्षका =1 एक पल कहते हैं और
कर्षभर सुवर्णको सुवर्ण ही कहते हैं ॥
यवोदरैरंगुलमष्ट संख्यैर्हस्तों ऽगुलैः पङ्गुणितैश्चतुर्भिः ॥
हस्तैश्चतुर्भिर्भवतीह दंडः कोशः सहस्रद्वितयेन तेषाम् ॥ 5 ॥
अर्थ:- इस गणितशास्त्रमें पेट मिलाकर आठ 8 यवोंके मापका एक अंगुल होता है, 24 चौबीस अंगुलोंका 1 एक हाथ होता है, 4 हाथका 1 एक दण्ड होता है और 2000 दो हजार दण्डका 1 कोश होता है ॥ 5 ॥
स्यायोजन कोशचतुष्टयेन तथा कराणां दशकेन वंशः॥
निवर्तनं विंशतिवंशसंख्यैः क्षेत्रं चतुर्भिश्च भुजैर्निबद्धम् || ६ ||
अर्थ:- चार कोशका 1 योजन होता है और 10 दस हाथका 1 एक वंश, 20 बीस वंशका लंबा चौडा चौकोर क्षेत्र निवर्तन कहाता है ॥ 6 ॥
चार कोशका = 1 योजन होता है और
10 दस हाथका = 1 एक वंश,
20 बीस वंशका लंबा चौडा चौकोर क्षेत्र निवर्तन कहाता है ॥ 6 ॥
हस्तोन्मितैर्विस्तृतिदैर्घ्यपिंडैर्यद्वादशास्त्रं घनहस्तसंज्ञम्
धान्यादिके यद्वन हस्तमानं शास्त्रोदिता मागधखारिका सा ॥७॥
अर्थः- 1 एक हाथ चौडा और 1 एक ही हाथ लंबा और 1 एक ही हाथ गहरा जो 12 बारह कोणका गढा है। उसको घनहस्त कहते हैं, धान्यादिके तोलने में जो घनहस्तकी तोल है उसको शास्त्रमें मगध देशकी खारी कहते हैं ॥ ७ ॥
द्रोणस्तु खाय्र्याः खलु षोडशांशः स्यादाढको द्रोणचतुर्थभागः ॥
प्रस्थश्चतुर्थीश इहाटकस्य प्रस्थांत्रिराद्यैः कुडवः प्रदिष्टः ॥ ८ ॥
अर्थ:- ऊपर कही हुई खारीका 16 सोलहवाँ भाग द्रोण कहाता है और द्रोणका 4 चौथा भाग आढक कहाता है और इस गणितशास्त्रमें आढकका 4 चौथा भाग प्रस्थ, प्रस्थका 4 चौथा भाग कुडव कहाता है ॥ 8॥
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अथ क्षेपकम्-
पादोनगद्याणक तुल्य कैर्द्विसप्ततुल्यैः कथितोऽत्र सेरः ॥ मणाभिधानं खयुगैश्च सेरैर्धान्यादितौल्येषु तुरुष्कसंज्ञा ॥ १ ॥
अर्थ:- पौनगद्याणक अर्थात् 36 छत्तीस रत्ती (गुञ्जा) का एक 1 टंक होता है. और 72 बहत्तर टंकका धान्यादिकी तोलमें 1 सेर होता है और 40 चालीस सेरका 1 मण होता है, यह यवनोंकी करी हुई संज्ञा है ॥ 1 ॥
पौनगद्याणक अर्थात् 36 छत्तीस रत्ती (गुञ्जा) का = 1 टंक होता है. और
72 बहत्तर टंकका धान्यादिकी तोलमें = 1 सेर होता है और
40 चालीस सेरका = 1 मण होता है, यह यवनोंकी करी हुई संज्ञा है ॥ 1 ॥
दुयंकेंदु संख्यैर्घ कैश्व सेरस्तैः पंचभिः स्याइटिका च ताभिः ॥ मणोऽष्टभिस्त्वालमगीरशाहकृतात्र संज्ञा निजराज्यपूर्षु ॥ 2 ॥
अर्थ:-आलमगीरबादशाह के समय राज्यमें प्रचलित तोलमें 192 एकसौ बानवे घटकका 1 एक सेर और 5 पांच सेरकी 1 एक घडी 8 आठ घडी का 1 एक मण होता था, यह संज्ञा अब भी मध्यदेशमें प्रचलित है ॥ 2 ॥
शेषाः कालादिपरिभाषा लोकतः प्रसिद्धा ज्ञेयाः ॥
अर्थ:-बाकी काल आदिकी परिभाषा लोकसे प्रसिद्ध जानना. जैसे-60 साउ सेकंडका 1 मिनट. 60 मिनिटका 1 घंटा. 24 चौबीस घंटे का एक 1 दिन रात. 15 पंद्रह दिनरातका 1 एक पक्ष 2 पक्षका 1 एक महीना. 12 बारहमहीनोंका एक वर्ष. साठ 60 पलकी 1 घडी 2½ ढाई घडीका 1 घण्टा. 12 बारह घंटेका 1 दिन. 7 सात दिनका 1 एक सप्ताह. इत्यादि ।
60 साउ सेकंडका = 1 मिनट.
60 मिनिटका = 1 घंटा.
24 चौबीस घंटे का = 1 दिन रात.
15 पंद्रह दिनरातका = 1 एक पक्ष
2 पक्षका = 1 एक महीना.
12 बारहमहीनोंका = 1 वर्ष.
साठ 60 पलकी = 1 घडी
2½ ढाई घडीका = 1 घण्टा.
12 बारह घंटेका = 1 दिन.
7 सात दिनका = 1 एक सप्ताह. इत्यादि ।
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इति परिभाषा
लीलागललुलडोल कालव्यालविलासिने ॥
गणेशाय नमो नीलकमलामलकान्तये ॥ 1 ॥
अर्थ:-लीलाकरके गलेमें लटकते हुए चंचल सर्पसे क्रीडा करनेवाले, चिक्कणनील- कांतिवाले गणेशजीको नमस्कार है ॥ 1 ॥
एकदशशतसहस्रायुत लक्षप्रयुतकोटयः क्रमशः ||
अर्बुदमजं खर्वनिखर्व महापद्मशंकवस्तस्मात् ॥ 2 ॥ जलधिवत्यं मध्यं परार्धमिति दशगुणोत्तराः संज्ञाः ॥
संख्यायाः स्थानानां व्यवहारार्थं कृताः पूर्वैः ॥ 3 ॥
अर्थ:-एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, लक्ष, प्रयुत, कोटि, अर्बुद, अब्ज, खर्च, निखर्व, महापद्म, शंकु, जलधि, अंत्य, मध्य, परार्द्ध इस प्रकार पूर्वाचार्याने संख्या के व्यवहारके वास्ते पूर्वपूर्वकी अपेक्षा उत्तरोत्तर दशगुणी संज्ञा कही है। जैसे-एकसे दश गुणा दश, दशंसे दशगुणा शत; शतसे दशगुणा सहस्र इत्यादि ॥ 2 ॥ 3 ॥
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अथ संकलितव्यवकलितयोः करणसूत्रं वृत्तार्द्धम् -
अब जोड और घटाव करनेकी रीति आधे श्लोकसे कहते हैं-
(सूत्रम् 1)
कार्यः क्रमादुत्क्रमतोऽथवाकयोगो यथास्थानकमंतरं वा ।।
अर्थ:-क्रमकी रीतिसे अथवा उत्तमकी रीतिसे यथास्थानमें अर्थात् एकस्थानी अङ्क में एकस्थानी अङ्कका दशस्थानी अङ्कमें, दशस्थानी अङ्कका शतस्थानी अङ्कमें, शतस्थानी अंकका जोड अथवा घटाव करना ॥
अत्रोदेशक:- जोडके विषय में अथवा घटाव के विषय में
उदाहरण-
शतो पेतानेतानयुत वियुतांश्चापि वद मे
अये बाले लीलावति मतिमति ब्रूहि सहितान् द्विपंचद्वात्रिंशत्रिनवतिशताऽष्टादशदश ॥
यदि व्यक्ते युक्तिव्यवकलनमार्गेऽसि कुशला ॥ 1 ॥
अर्थ :- हे सोलहवर्षकी उमरवाली बुद्धिका गर्व रखनेवाली लीलावति ! जो पाटी गणित में जोड और घटावमें चतुर हो तो यह मुझको बताओ कि, 2 दो, 5 पांच, 32 बत्तीस, 193 एकसौ तिरानवे, 18 अठारह, 10 दस और 100 सौ यह सव जोड़ने से कितने होते हैं ? और सबको 10000 दश हजारमें घटानेसे कितने बाकी रहते हैं ? ॥ १ ॥
न्यासः - 2 । 5 । 32 । 193 । 18 । 10 | 100
संयोजनाजातम् 360 ।
HTO
2 ।
5 ।
32 ।
193 ।
18 ।
10 |
100 |
²0
Or
2+5+2+3+8+0+0=20
फैलाव - पूर्वोक्त नियमानुसार क्रमकी रीति से पहले एक स्थानी सब अंकोंको 2 जोडा तब अर्थात् 2 दो और 5 पांच 7 सात और 2 दो 9 नौ और 3 तीन 12 बारह और 8 आठ 20 बीस हुए।
HTO
²
2 ।
5 ।
32 ।
193 ।
18 ।
10 |
100 |
¹60
Or
² + 3+9+1+1+0=¹6
इस बीसमें एकस्थानी अंक 0 शून्यको एकस्थान अर्थात् एकस्थानी अंकोंके नीचे रक्खा फिर दशस्थानी शेष 2 दोको स्मरण रक्खा और दशस्थानी अंकोंको जोडा अर्थात 3 तीन और 9 नौ 12 बारह और 1 एक 13 तेरह और 1 एक 14 चौदह हुए। इनमें पहले दशस्थानी 2 दोको जोडा तब 16 सोलह हुए इसमें से 6 छ को पहले स्थापित किये शून्यके वामभागमें दशस्थानी अकोंके नीचे रक्खा तब (60) हुआ।
HTO
¹
2 ।
5 ।
32 ।
193 ।
18 ।
10 |
100 |
360
Or
¹+1+1=3
16 सोलह मेंसे शेष 1 एकको स्मरण रक्खा और शतस्थानी अंकों को गिना अर्थात् एक 1 और 1 दो 2 हुए। इसमें पहला 1 जोड दिया, तब तीन 3 हुए इनको छ के वाम भागमें शतस्थानी अंकके नीचे रक्खा, तब 360 ऐसा हुआ।
अर्थात् 360 तीनसौ साठ जोड हुआ; इसी प्रकारसे अन्यत्र भी जोड लेना।
10000
– 360
9640
अयुक्ता 10000 च्छोधिते जातम् 9640 ।
फैलाव - 10000 पूर्वोक्त नियमानुसार घटाव किया अर्थात् के
शून्य से एक स्थानी शून्यको घटाया तो शून्य ही शेष रहा। उस को एकस्थानी अङ्कोंके नीचे रक्खा, तदनंतर दशस्थानी अङ्क भी शून्य है. उसमें दशस्थानी 6 का घटाव नहीं हो सकता; इस कारणसे शतस्थानी अङ्कमें से एक शत ले लिया जाता; सो यहां तौ शतस्थानी और सहस्रस्थानी भी शून्य है इस कारण अयुतस्थानी अङ्कमेंसे एक अयुत लिया; उसके दश सहस्र करे नौ 9 सहस्र स्थानमें रखादिये और 1 एक सहस्रके दश शत करे जिसमें नौ 9 शत शतस्थान में रक्खे और एक शतके दशदश किये तिसमें 6 छ दशस्थानी घटाया तो शेष ? चार रहे उनको पूर्व रक्खे हुए 0 शून्यके वामभागमें दशस्थानी अंक के नीचे रक्खा; फिर शतस्थानी नौ 9 में से 3 को घटाया तो शेष 6 रहे उनको 4 के भाग शतस्थान में रक्खा; फिर शेष करनेको कोई अंक नहीं रहा; तब ऊपरके अंकोंको घटाये हुए अंकोंके वामभागमें यथास्थानमें रक्खा अर्थात् सहस्र स्थानीको सहस्र स्थानमें रक्खा; तब दशहजारमेंसे 360 तीनसौ साठ घटानेसे 9640 नौ हजार छः सौ चालीस शेष रहता है: इसी प्रकार अन्यत्र भी जानना ॥
इति संकलितव्यवकलिते ॥
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अथ गुणने करणसूत्र सार्द्धवृत्तद्वयम्
अब गुणा करनेकी रीति ढाई लोकसे कहते हैं. यह गुणा ५ पांच प्रकारका होता
है, 1 रूपगुणा, 2 स्थानगुणा, 3 विभागगुणा, 4 खण्डगुणा, 5 इष्टगुणा। जिससे गुणा किया जाता है वह गुणक कहाता है और जिसको गुणा किया जाता है वह गुण्य कहता है..
(सूत्रम् २) गुण्यान्त्यमंकं गुणकेन हन्या-
दुत्सारितेनैवमुपान्त्यमादीन् ॥ 4 ॥
अर्थः- गुण्यके अंतके अङ्कको गुणकसे गुणै; फिर उसके समीपके अङ्कको उसी गुणकको उठाकर उससे गुणै. इसी प्रकार उसी गुणकसे आदिके जितने अङ्क हैं सबको क्रमसे गुणै; यह गुणकका जैसा रूप होता है, उससे ही गुणा किया जाता है, इस कारण रूपगुणा कहाता है ॥ 4 ॥
अत्रो देशकः - गुणा करनेके विषयमें उदाहरण-
बाले बालकुरंग लोलनयने लीलावति प्रोच्यताम् पञ्चकमिता दिवाकरगुणा अंकाः कति स्युर्यदि ॥
रूपस्थान विभागखण्ड गुणने कल्पासि कल्याणिनि
छिन्नास्तेन गुणेन ते व गुणिता अंकाः कति स्युर्वेद ॥ 2 ॥
अर्थः- हे वाले ! हरिणशावकनयनि ! हे चातुर्यकी खानि ! शुभे ! लीलावति यदि रूपकी, स्थानकी, विभागकी और खण्डकी रीतिसे गुणा करना जानती हो तो कहो ? 135 एकसौ पैंतीसको यदि 12 बारहसे गुणा किया तो कितने होते हैं। यह सब रीतियोंसे कहो और वही गुणा किये हुए अंक 12 बारहसे भाग देनेसे- कितने होते हैं सो कहो ॥ 2 ॥
न्यासः - गुण्यः 135 गुणकः 12
गुण्यात्मकं गुणकेन हन्यादिति कृते जातम् 1620
1 3 5
×1 2
1 6 2 0
फैलाव - पूर्वोक्त गुणाकी रीतिसे गुण्य 135 के अन्तके 5 को गुणक बारहसे गुणा तो 60 साठ हुए। तिसमेंसे साठके शून्यका गुण्य गुणक के नीचे इकाईके स्थानमें रक्खा और शेष छ 6 को स्मरण रक्खा, फिर गुणकसे अन्तके समीपके 3 तीन को गुणा तो 12 बारह तिया 36 छत्तीस हुए; इसमें पहले 60 साठ में छ जोड दिये तो 42 बयालीस हुए; इसमेंसे अन्तका दोका अंक पूर्व शून्य के वामभागमें दहाई के स्थान में रक्खा और शेष 4 चारको स्मरण रक्खा और तीसरे 1 एकके अंकको गुणकसे गुणा किया अर्थात् 12 एकान 12 बारहमें पहले बयालीसमें के चारको जोड दिया तब सोलह हुए इनको पहले रक्खे हुए अङ्कोंके वामभागमें रखखा तब 1620 एक हजार 6 छ सौ बीस 20 फल होता है । यह रीति सर्वत्र प्रचलित है ॥
और "अंकानां वामतो गतिः "-
अंकोंकी वामभागसे गिनती होती है इस रीतिसे गुण्यमें अंतका अंक 1 एक होता है उसको 12 बारह से गुणा तो 1235 एकहजार दोसौ पैंतीस हुए अर्थात् अंतके अंकको गुणक 12 बारहसे गुणा तो 12 बारह हुए। उनको अंतके 1 अंकके स्थान में रक्खा तब पूर्वोक्त फल हुआ, फिर अंतके समीपके 3 तीन द्वितीयांकको गुणकसे गुणा तव बारह तिया 36 छत्तीस हुए, उनमें से छ को गुण्य अंक 3 तीनके स्थान में रक्खा और 3 तीनको शतस्थानी 2 के नीचे लिखा और जोड दिया तब 1565 एक हजार पांचसौ पैंसठ हुआ. फिर तृतीयांक 5 पांचको गुणक 12 से गुणा तो बारह पांचे 60 हुए; इसमेंसे शून्यको गुण्य पांचके स्थान में लिखा और 6छको दशस्थानी 6 में जोडा तो 12 बारह हुए। दो 2 को दशस्थानमें लिखा और शेष १ एकको शतस्था- ५. पांच में जोड़ दिया तब ६ छ हुआ तब १६२० एक हजार छ सौ बीस फल हुआ।
अथ खण्डगुणा करनेकी रीति-
( सू० 3)
गुण्यस्त्वधोऽधो गुणखण्डतुल्य- स्तैः खंडकैः संगुणितो युतो वा ॥
अर्थः अथवा गुणकके जितने खंड (टुकडे) कल्पना करे, उतने ही जगह गुण्य को धरकर और नीचे रक्खे हुए गुणकके खंडोंसे गुण्यको अलग 2 गुणा करके जोड देय तब गुणनफल प्राप्त होता है |
न्यासः - अथवा गुणरूपविभागे खंडे कृते 8 | 4
आभ्यां पृथक गुण्ये गुणिते च जातं तदेव 1620
135 135
×8 × 4
1080 540
1080 + 540 = 1620
फैलाव - अथवा गुणक 12 वारहके दो खंड 8 आठ और 4 चार किये और गुण्य 135 को दो स्थानोंमें रक्खा और गुणकके दोनों खंडोंको गुण्यके नीचे दो जगह अलग 2 रक्खा और अलगर गुणा किया अर्थात् गुण्य 135 एकसौ पैंतीस को गुणक के खण्ड 8 आठसे गुणा किया तब 1080 एक हजार अस्सी हुए; और दूसरे खण्ड चारसे उसी गुण्य 135 का गुणा किया तो 540 पाँचसौ चालीस हुए. दोनों लब्धिको जोड दिया तब वही 1620 एक हजार छ सौ बीस फल हुआ।
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श्री गणेशाय नमः।
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