लेखक

ॐ जितेन्द्र सिंह तोमर
(M.A., B. Ed., MASSCOM, DNYS )
(Specialist in Basic and Vedic Maths)
इन संख्याओं तक हो आर्य सीमित नही रहे वरन् इससे भी अत्यन्त बड़ी दशोत्तर संख्याओं का भी उल्लेख वेदों में किया है। यजुर्वेद सहिता 17/2 मे दशोत्तर श्रेणी इस प्रकार वर्णित हुई हैं।
इमा मे अग्न इष्टका धेनवः सन्त्येका च दश च दश च शतं च शतं च सहस्रं च सहस्र चायुतं च चायुतं च निरयुतं
च नियुतं च प्रयुतं च प्रयुतं चार्बुदं च चार्बुदं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्च परार्धश्चैता मे अग्न इष्टका घेनवः सन्त्वमुत्रामुप्मिंहल्लोके ॥ 3
अर्थ
हे अग्ने ज्योति स्वरूप परमेश्वर मेरी ये यज्ञादि क्रियायें अभीष्ट फल देने वाली हों तथा ये यज्ञादि क्रियाएं
एक और एक का दश गुणित होकर 10
दश और दश का दश गुणित होकर 100, और
सौ का दश गुणा होकर 1,000, हजार
हजार का दश गुणा होकर 10,000, दश हजार
दश हजार का दश गुना होकर 1,10,000 लाख
लाख का दश गुना होकर 10,00,000 दश लाख का
दस लाख दश गुना 1,00,00,000 प्रर्बुद ( करोड़)
प्रर्बुद ( करोड़) का दश गुना होकर 10,00,00,000 न्यर्बुद (दश करोड़)
न्यर्बुद (दश करोड़) का दश गुना होकर 1,00,00,00,000 समुद्र (अरब)
समुद्र (अरब) का दश गुना होकर 10,00,00,00,000 मध्य अरब
मध्य अरब का दश ना होकर 1,00,00,00,00,000 ग्रन्त (खरब)
ग्रन्त (खरब) का दश गुना होकर 10,00,00,00,00,000 (परार्ध) ।
उक्त प्रकार से बढी हुई ये मेरी यज्ञादि क्रियायें इस लोक ओर (परलोक) में प्रभीष्ट फल देने वाली हों !
इसी गणना में दाशमिक प्रणाली का मूल छिपा है। इस अंक श्रेणी में हमारे ऋषियों ने 1:10 के अनुपात से 10¹² तक की संख्याओं का वर्णन किया है। इसी प्रकार की दशगुणोत्तर संख्या श्रेणियों को हम तैत्तिरीय संहिता' काठक संहिता व मैत्रायणी संहिता में देख हैं । श्रोत सूत्र में भी इसी प्रकार की दश गुणोत्तर अंक श्रेणी प्रस्तुत की गई है, लेकिन उसमें संख्यायों हेतु भिन्न शब्दावली प्रयुक्त हुई है। व्यवुर्द तक संख्यामो को तो वे ही नाम दिये गये है जो बहुर्वेद को उक्त श्रेणी में है लेकिन उसके उपरान्त की देश गुणोत्तर संख्यामो हेतु क्रमशः निसर्व (समुद्र के लिए), समुद्र (मध्य के लिये), सलिला (अन्त के लिए), प्रन्त्य (पराध के लिए), व धनन्त परार्ध की दणगुणिता संख्या १०१८ के लिये) परिभाषिक शब्द प्रयुक्त हुए हैं । इसी प्रकार पंचविंश ब्राह्मण में न्यर्द के पश्चातुनि वाइन व पविति संज्ञाएं क्रमशः दशगुणोत्तर संख्यायों के लिए प्रयुक्त हुई है। सेतिशेष संहिता में अन्यत्र निम्न परिमापाए मिलती है।
एक 1(10⁰)
दश 10 (10¹)
पात 100 (10²)
सहस्र 1000 (10³)
प्रयुत 10000 (10⁴)
नियुत 100000 (10⁵)
प्रयुत 1000000 (10⁶)
प्रद 10000000 (10⁷)
न्यर्बुद 100000000 (10⁸)
समुद्र 1000000000 (10⁹)
मध्य 100000000000 (10¹⁰)
अन्त 100000000000 (10¹¹)
परार्ध 1000000000000 (10¹² )
उपात् 10000000000000 (10¹³)
उदेष्यत 100000000000000 (10¹⁴)
उद्यत् 100000000000000000 (10¹⁶)
१ - तै० सं० ४ ४० १११।४ । ७२ २०११ |
२ - का० सं० १७ १० यहां नियुक्त व प्रयुत का स्थान भेद हो गया है ।. ३ - मं० सं० २८ २१४ इसमें प्रयुक्त व प्रयुक्त के बाद पुनः प्रयुतमाया है,
सदनन्तर
न्ययुर्व, समुद्र, मध्य अन्त व पराधं शब्द प्रयुक्त किए हैं। ४- श्रो० सू० १५ १२४ ।
५- तं० सं० सप्तम काण्ड, प्रपाठक दो, बीसवां अनुवाक ।
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