21.01 संख्या पद्धति के विशेष (सूत्र व जानकारी)

गणित के सूत्र (Math Formula’s in Hindi)

21.01 

संख्या पद्धति के विशेष (सूत्र व जानकारी)

प्राकृत संख्याएँ (Natural Number): गिनती में उपयोग की जाने वाली सभी खंख्याएँ प्राकृतिक संख्या कहलाती हैं।

Ex: 1, 2, 3, 4, 5,………


सम संख्याएँ (Even Number): ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः विभाजित होती हैं, उन्हें सम संख्या कहा जाता हैं।

Ex: 2, 4, 6, 8, 10,………

विषम संख्याएँ (Odd Numbers): ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः से विभाजित न हो उन्हें विषम संख्या कहते हैं।

Ex: 1, 3, 5, 7, 9,………

पूर्णांक संख्याएँ : धनात्मक त्रणात्मक और जीरों से मिलकर बनी हुई संख्याएँ पूर्णांक संख्या होती हैं।

Ex: -3, -2, -1, 0, 1, 2,………

यह तीन प्रकार की होती हैं।

* धनात्मक संख्याएँ : एक से लेकर अनंत तक की सभी धनात्मक संख्याएँ धनात्मक पूर्णांक हैं।Ex: +1, +2, +3, +4, +5,………

* ऋणात्मक संख्याएँ : 1 से लेकर अनंत तक कि सभी ऋणात्मक संख्याएँ ऋणात्मक पूर्णांक हैं। Ex: -1, -2, -3, -4, -5,………

* उदासीन पूर्णांक : ऐसा पूर्णांक जिस पर धनात्मक और त्रणात्मक चिन्ह का कोई प्रवाह ना पड़े। और यह जीरो होताा हैं। Ex: -3, -2, -1, 0, 1, 2, 3,………

पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers): प्राकृतिक संख्याएँ में 0 से सामिल कर लेने से पूर्ण संख्या बनती हैं।

Ex: 0, 1, 2, 3, ………

भाज्य संख्या (Composite Numbers): ऐसी प्राकृत संख्या जो स्वंय और 1 से विभाजित होने के अतिरिक्त कम से कम किसी एक अन्य संख्या से विभाजित हो उन्हें भाज्य संख्या कहते हैं।

Ex: 4, 6, 8, 9, 10, 12, ………

अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers): ऐसी प्राकृतिक संख्याएँ जो सिर्फ स्वंय से और 1 से विभाजित हो और किसी भी अन्य संख्या से विभाजित न हो उन्हें अभाज्य संख्याएँ कहेंगे।

Ex: 2, 3, 5, 11, 13, 17, ………

सह अभाज्य संख्या (Co-Prime Numbers): कम से कम 2 अभाज्य संख्याओ का ऐसा समूह जिसका (HCF) 1 हो।

Ex: (5, 7) , (2, 3)

परिमेय संख्याएँ  (Rational Numbers): ऐसी सभी संख्याएँ जिन्हें p/q के रूप में लिखा जा सकता हैं। उन्हें परिमेय संख्याएँ कहते है (q हर का मान जीरो नहीं होना चाहिए)

Ex: 5, 2/3, 11/4, √25

अपरिमेय संख्याएँ (Irrational Numbers): ऐसी संख्याएँ जिन्हें p/q के रूप में नही लिखा जा सकता और मुख्यतः उन्हें (”√”) के अंदर लिखा जाता हैं और कभी भी उनका पूर्ण वर्गमूल नहीं निकलता।

Ex: √3, √105, √11, √17,

नोट: π एक अपरिमेय संख्या हैं।

वास्तविक संख्या (Real Numbers): परिमेय और अपरिमेय संख्याओ को सम्मलित रूप से लिखने पर वास्तविक संख्याएँ प्राप्त होती हैं।

Ex: √3, 2/5, √15, 4/11,

अवास्तविक संख्या (Imaginary Numbers): ऋणात्मक संख्याओं का वर्गमूल लेने पर जो संख्याएँ बनती हैं, उन्हें काल्पनिक संख्याएँ कहते हैं।

जैसे: √-2, √-5

संख्या पद्धति के सूत्र :

* लगातार प्राकृत संख्याओं के योग 

= [n(n + 1)]/2

* लगातार सम संख्याओं के योग 

= n/2 [n/2 + 1]

* लगातार विषम संख्याओं के योग 

= (n/2 + 1)²

* दो क्रमागत पदों का अंतर समान हो तो योग 

= [पदों की संख्या (पहला पद + अंतिम पद)]/2


* लगातार प्राकृत संख्याओं के वर्गों का योग 

= [n(n + 1)(2n + 1)]/6

लगातार प्राकृत संख्याओं के घनों का योग 

= [n(n + 1)/2]²

* प्रथम से n तक कि सम संख्याओं का योग 

= n(n + 1)

* प्रथम से n तक कि विषम संख्याओं का योग 

= (n)²

* भागफल = भाज्य ÷ भाजक (पूर्ण विभाजन में)

* भाज्य = भागफल × भाजक (पूर्ण विभाजन में)

* भाजक = भाज्य ÷ भागफल (पूर्ण विभाजन में)

* भागफल = (भाज्य – शेषफल) ÷ भाजक (अपूर्ण विभाजन में)

* भाज्य = भागफल × भाजक + शेषफल (अपूर्ण विभाजन में)

* भाजक = (भाज्य – शेषफल) ÷ भागफल (अपूर्ण विभाजन में)

महत्वपूर्ण बिंदु :

* संख्या 1 न तो भाज्य है और न अभाज्य

* ऐसी संख्या जो अभाज्य हो एवं सम संख्या हो केवल 2 है।

* वे दो अभाज्य संख्याएँ जिनके बीच केवल एक सम संख्या होती है , अभाज्य जोड़ा कहलाती है, जैसे: 5 व 7, 3 व 5, 11 व 13, 17 व 19, 29 व 31 आदि

* सभी प्राकृत संख्याएँ, पूर्ण, पूर्णाक, परिमेय एवं वास्तविक होती हैं।

* सभी पूर्ण संख्याएँ, पूर्णांक, परिमेय एवं वास्तविक होती हैं।

* सभी पूर्णाक, परिमेय एवं वास्तविक होते हैं

* सभी पूर्णांक, परिमेय एवं अपरिमेय संख्याएँ वास्तविक होती हैं।

* अभाज्य (रूढ़) एवं यौगिक, सम तथा विषम संख्या होती हैं।

* सभी पूर्णाक, परिमेय एवं अपरिमेय संख्याएँ ऋणात्मक एवं धनात्मक दोनों होती हैं।

* प्राकृत ( अभाज्य, यौगिक, सम एवं विषम ) एवं पूर्ण संख्याएँ कभी भी ऋणात्मक नहीं होती हैं।

* भिन्न संख्याएँ परिमेय होती हैं।

" 2 के अतिरिक्त सभी अभाज्य (रूढ़) संख्याएँ विषम होती हैं।

* 0 ऋणात्मक एवं धनात्मक नहीं है।

* शून्य ( 0 ) में किसी भी संख्या का भाग देने पर शून्य आता है अतः 0/a = 0 (यहाँ पर a वास्तविक संख्या है)

* किसी भी संख्या में शून्य का भाग देना परिभाषित नहीं है अर्थात् यदि किसी भी संख्या में शून्य का भाग देते हैं , तो भागफल अनन्त (Infinite या Non Defined) आता है, अतः a/0 = ∞ (Infinite)

* किसी संख्या में किसी अंक का जो वास्तविक मान होता है , उसे जातीय मान कहते हैं, जैसे:- 5283 में 2 का जातीय मान 2 है।

* किसी संख्या में किसी अंक का स्थान के अनुसार जो मान होता है उसे उसका स्थानीय मान कहते हैं, जैसे – 5283 में 2 का स्थानीय मान 200 है।

* दो परिमेय संख्याओं का योगफल अथवा गुणनफल सदैव एक परिमेय संख्या होती है।

* दो अपरिमेय संख्याओं का योगफल अथवा गुणनफल कभी परिमेय संख्या तथा कभी अपरिमेय संख्या होता है।

* एक परिमेय संख्या तथा एक अपरिमेय संख्या का गुणनफल अथवा योगफल सदैव एक अपरिमेय संख्या होता है।

* π एक अपरिमेय संख्या है।

* दो परिमेय संख्याओं या दो अपरिमेय संख्याओं के बीच अनन्त परिमेय संख्याएँ या अनन्त अपरिमेय संख्याएँ हो सकती हैं।

* परिमेय संख्या को दशमलव निरूपण या तो सीमित होता है या असीमित आवर्ती होता है, जैसे:- 3/4 = 0.75 ( सीमित ) 11/3 = 3.666 (असीमित आवर्ती)

* अपरिमेय संख्या का दशमलव निरूपण अनन्त व अनावर्ती होता है, जैसे:- √3, √2

* प्रत्येक सम संख्या का वर्ग एक सम संख्या होती है तथा प्रत्येक विषम संख्या का वर्ग एक विषम संख्या होती है।

* यदि दशमलव संख्याएँ 0.x तथा 0.xy के रूप में दी होती हैं , तो इन्हें परिमेय संख्या p/q के रूप में निम्नवत् बदलते हैं।

* 0.x = x/10 तथा 0.xy = xy/100 अर्थात् दशमलव के बाद 1 अंक है , तो 10 का , दो अंक हैं, तो 100 का, तीन अंक हैं, तो 1000 का भाग देने पर दशमलव संख्या परिमेय (भिन्न) बन जाती है।

* यदि अशान्त ( अनन्त ) आवर्ती दशमलव संख्याएँ 0.x तथा xy के रूप की हैं , तो इन्हें परिमेय संख्या p/q के रूप में निम्नवत् बदलते हैं।

* 0.x̅ = x/9 तथा 0. x̅x̅ = xx/99 अर्थात् दशमलव के बाद 1 अंक बार सहित हो , तो 9 का , दो अंक बार सहित हों तो 99 का , तीन अंक हों तो 999 का भाग करके दशमलव संख्या परिमेय में बदल जाती है।

* यदि अशान्त आवर्ती दशमलव संख्याएँ 0.xy तथा 0.xyz के रूप की हों , तो इन्हें परिमेय संख्या p/q के रूप में निम्नवत् बदलते हैं – 0.x̅y̅ (xy – x)/90 तथा 0.x̅y̅z̅ = (xyz – x)/990 (यहाँ x , y , z प्राकृतिक अंक हैं)

* किसी भी पहाड़े का योग उस संख्या (पहाड़े) के 55 गुने के बराबर होता है । अर्थात् n के पहाड़े का योगफल = 55n

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